Hanuman Kavach : श्री एकमुखी हनुमान कवच,Shri Ekmukhi Hanuman Kavach

Shri Hanuman Kavach : श्री एकमुखी हनुमान कवच

एक मुखी हनुमान कवच स्तोत्र को सुनने से सारे बिगड़े काम बन जाते हैं. हनुमान जी की पूजा से जीवन में बड़े से बड़े दुखों से मुक्ति मिलती है. धार्मिक मान्यता है कि मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा और व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही सूर्य भी मजबूत होता है. मान्यता है कि मंगलवार के दिन हनुमान कवच का पाठ करने से बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है


एकदा सुखमासीनं शङ्करं लोकशङ्करम्।
प्रपच्छ गिरिजा कान्तं कर्पूरधवलं शिवम् ॥
  • पार्वत्युवाच

भगवन्देवदेवेश लोकनाथ जगत्प्रभो ।
शोकाकुलानां लोकानां केन रक्षा भवेद्ध्रुवम् ॥
संग्रामे सङ्कटे घोरे भूतप्रेतादिके भये ।
दुःखदावाग्निसन्तप्तचेतसां दुःखभागिनाम्॥

जगत के कल्याणकारी शंकर एक बार सुख से बैठे थे। तभी गिरिजा ने कांतिमान व कर्पूर से धवल शिव से पूछा हे भगवन, देवदेवेश, लोकनाथ, जगतप्रभो, हे शोकाकुल लोगों की कैसे रक्षा हो सकती है। संग्राम, संकट, गनघोर भूत-प्रेत के भय और दुधदावाग्नि से संतप्त लोगों की रक्षा का कोई उपाय है ?

महादेवोवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
विभीषणाय रामणे प्रेम्णा दत्तं च यत्पुरा ॥
कवचं कपिनाथस्य वायुपुत्रस्य धीमतः ।
गुह्यं तत्ते प्रवक्ष्यामि विशेषाच्छृणु सुन्दरि ॥
उद्यदादित्यसङ्काशमुदारभूजविक्रमम् ।
कन्दर्पकोटिलावण्यं सर्वविद्याविशादम् ॥ 
श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम् ।
अभयं वरदं दोर्भ्यां कलये मारुतात्मजम् ॥
हनूमानंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फाल्गुन सखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च  दशग्रीवस्य दर्पहा ॥
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः ।  
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत् ॥
तस्य सर्वं भयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ।
 राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ॥
 उल्लंघ्य सिन्धो सलिलं सलीलं यः सोकवह्निं जनकात्मजायाः ॥
आदाय तेनैव ददाह लड्का नमामि तं प्राञ्चलिरराञ्जनेयम् ॥

हे देवि, सुनो, जगत की हितकामनार्थ मैं तुम्हें वायुपुत्र कपिनाथ कवच के बारे में बताता हूं। इसे राम ने प्रेमवश विभीषण को प्रदान किया था। यह गुह्य कवच है, पर भी मैं तुम्हें विशेष इच्छा से बताता हूं। सुनो, हे सुंदरि, सद्य उदित आदित्य की तरह आलोकित, भारी भुजाधारी व विक्रमी, कोटि कामदेव-से लावण्यमय, सर्वविद्या विशारद, श्रीराम के हृदय के आनंद, भक्तों के कल्पवृक्ष, अभय और वरदायक मारुतात्मज, हनुमान, अंजनीपुत्र, वायुपुत्र, महाबल को मैं दोनों हाथ जोड़ता हूँ । राम के इष्ट, अर्जुन के सखा, पिंगलाक्षी, अमित विक्रमी, सागर को पार करने वाले, सीताशोक के विनाशक, लक्ष्मण के प्राणदाता, दशग्रीव के दर्पहारी, कपींद्र के इन बारह नामों को सोते-जागते या आते-जाते पढ़ने वाले को कोई भय नहीं सताता । यह रण में विजयी होता है। राजद्वार को अथवा गह्वर, उसे कहीं भी रंचमात्र भय नहीं होता। जिसने सिंधु सलिल को एक छलांग में पार किया और जनकात्मजा सीता की शोकाग्नि लेकर लंका को जला डाला, ऐसे हनुमान को हाथ जोड़कर मैं नमन करता हूँ।

ॐ नमो हनुमते सर्वसर्वग्रहान् भूतभविष्यद्वर्तमानान् समीपस्थान सर्वकालदुष्टबुद्धिनुच्चाटयोच्चाटय परबलान् क्षोभयक्षोभय मम सर्वकार्याणि साधक साधय ॐ ह्रां ह्रीं हूं ॐ ह्रः स्वाहा परकृत्ययन्त्रमन्त्रपराहङ्कार भूतप्रेतपिशाचदृष्टिसर्वविघ्न दुर्जनचेष्टाकुविद्यासर्वोग्रभयानि निवारय निवारय बन्ध बन्ध लूंठ लूंठ विलुंच विलुंच किलि किलि सर्वकुयन्त्राणि दुष्टवांच ॐ फट् स्वाहा ।

विनियोग

ॐ अस्य श्रीहनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः।श्रीहनुमान् परमात्मा देवता अनुष्टुप्छन्दः। मारुतात्मज इति बीजम् । अञ्जनीसूनुरिति शक्तिः । लक्ष्मणप्राणदातेति कीलकम् ।रामदूतायेत्यस्त्रम्। हनुमान् देवता इति कवचम् । पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम इति मन्त्रः । श्रीरामचन्द्रप्रेरणया रामचन्द्रप्रीत्यर्थं मम सकल कामनासिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः ।

करन्यास

ॐ ह्रीं अञ्जनीसुताय अंगुष्ठाभ्यां नमः ॥ ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ॥ ॐ हूंरामदूताय मध्यमाभ्यां नमः ॐ हैंवायुपुत्राय अनामिकाभ्यां नमः ॥ ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय केनिष्ठिकाभ्यां नमः ॥ ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्रनिवारणाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥

 हृदयादिषडंगन्यास

ॐ ह्रां अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ॥ ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ॥ ॐ हूं रामदूताय शिखायै वषट् ॥ ॐ हैं वायुपुत्राय कवचाय हुम् ॥ ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय नेत्रत्रयाय वौषट् ॥ ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्रनिवारणाय अस्त्राय फट् ॥
  • ध्यान
ध्यान ध्यायेद्वालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदर्पापहं 
देवेन्द्रप्रमुखं प्रशस्तयशसं  देदीप्यमानं रुचा । 
सुग्रीवादिसमस्तवानरयंतु सुव्यक्ततत्त्वप्रियं 
संरक्तारुणलोचनं  पवनजं पीताम्बरालंकृतम् ॥ 
उद्यन्मार्तण्डकोटिप्रकटरुचियुतं चारुवीरासनस्थं 
मोञ्जीयज्ञोपवीताभरणरुचिशिखं शोभितंकुण्डलाङ्कम् ।  
भक्तानामिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनादप्रमोदं 
ध्यायेद्देवं विधेमं प्लवगकुलपतिं गोष्पदीभूत-वार्धिम् ॥ 
वज्राङ्गं पिङ्गकेशाढ्यं स्वर्णकुण्डलमण्डितम् । 
निगूढमुपसङपारावारपराक्रमम् ॥ 
स्फटिकाभंह स्वर्णकान्तिं द्विभुजं च कृताञ्जलिम् । 
कुण्डलद्वयसंशोभिमुखाम्भोजं हरि भजे ॥ 
सवयहस्ते गदामुक्तं वामहस्त कमण्डलुम्। 
उद्यद्दक्षिणदोर्दण्डं हनूमन्तं विञ्चितयेत् ॥
प्रातः कालीन दिवाकर के आलोक के समान प्रखर तेजस्वी, राक्षसों के दर्पहारी, देवों में प्रमुख देव, प्रशस्त यशस्वी, देदीप्यमान, रुचिकर, आदि समस्त वानरों से युक्त, सुव्यक्तत्त्वप्रिय, लाल अरुण लोचन वाले, पीले वस्त्रों से अलंकृत कपींद्र का मैं ध्यान धरता हूँ । सद्य उदित कोटि मार्तंडों के प्रकाश से दीप्तिमान, मनमोहन वीरासन की मुद्रा में स्थिति, मौंजी, यज्ञोपवीत व आभूषणों से विभूषित, कुंडलों से सुशोभित, भक्तों के इष्टदायक, मुनिजनों द्वारा प्रणत, वेद-नाद से प्रमुदित, वानर कुलपति तथा सागर को गोखुर जितना मानने वाले कपींद्र ध्यान धरना चाहिए। वज्रांग, शीश पर पिंगल केशधारी, स्वर्ण कुंडल से मंडित, असीम पराक्रमी, स्वर्ण की स्फटिक कांतियुक्त, दोनों भुजाएं जोड़ें, दोनों कानों में कुंडल धारण किए, कमलमुखी कपींद्र का मैं ध्यान धरता हूँ । दाएं हाथ में गदा व बाएं हाथ में कमंडल धारण किए व दाईं भुजा को तनिक ऊपर उठाए हनुमंत का सदैव ध्यान धरना चाहिए।
ॐ नमो हनुमते शोभिताननाय यशोलंकृताय अञ्जनीगर्भसम्भूताय रामलक्ष्मणानन्दकाय कपिसैन्सप्रकाशन पर्वतोत्पाटनाय सुग्रीवसाह्रकरण परोच्चाटनकुमार ब्रह्मचर्यगम्भीर शब्दोदय ॐ ह्रीं सर्वदुष्टग्रहनिवारणाय स्वाहा। ॐ नमो हनुमते एहि एहि एहि सर्वग्रभूतानां शाकिनीडाकिनीनां विषमदुष्टानां सर्वेषामाकर्षयाकर्षय मर्दय मर्दय छेदयच्छेदय मर्त्यान्मारय मारय शोषय शोषय प्रज्वल प्रज्वल भूतमण्डलपिशाचमण्डल निरसनाय भूतज्वरप्रेतज्वर चातुर्थिक ज्वरब्रह्मराक्षस पिशाचच्छेदनक्रिया विष्णुज्वरमहेशज्वरान् छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि अक्षिशूले शिरोभ्यन्तरे हक्षिशूले गुल्मशूले पित्तशूले ब्रह्मराक्षस कुलप्रबल नागकुल विनिर्विषझटिति झटिति ॐ ह्रीं फट् घेघे स्वाहा । ॐ नमो हनुमते पवनपुत्र वैश्वानरमुख पापदृष्टि षोढाद्दष्टिहनुमते का आज्ञा फुरे स्वाहा स्वगृहे द्वारे पट्टके तिष्ठ तिष्ठेति तत्र रोगभयं राजकुलाभयं नास्ति तस्योच्चारणमात्रेण सर्वे ज्वरा नश्यन्ति ॐ ह्रां ह्रीं हूं घे घे स्वाहा ।

।। श्रीराम उवाच ।।

हनुमान पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः ।
पातु प्रतीच्यां रक्षोघ्नः पातु सागरपारगः ।।

उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरी प्रियनन्दनः ।
अधस्ताद विष्णुः भक्तस्तु पातु मध्यं च पावनिः ।।

अवान्तरः दिशः पातु सीता शोकविनाशकः ।
लङ्काविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरन्तरम ।।

सुग्रीव सचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः ।
भालं पातु महावीरो भ्रुवोर्मध्ये निरन्तरम ।।

नेत्रेच्छायापहारी च पातु नः प्लवगेश्वरः ।
कपोले कर्णमूले च पातु श्रीराम किङ्करः ।।

नासाग्रमञ्जनीसुनू पातु वक्त्रं हरीश्वरः ।
वाचं रुद्रप्रिय पातु जिह्वा पिङ्गल लोचनः ।।

पातु दंतान फाल्गुनेष्टाश्चिबुकं दैत्यापादहा ।
पातु कण्ठं च दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः ।।

भुजौ पातु महातेजाः करौ तो चरणायुधः ।
नखान नखायुधः पातु कुक्षिं पातु कपीश्वरः ।।

वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुधः ।
लङ्काविभंजनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम ।।

वाभिं च रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः ।
गुह्यं पातु महाप्राज्ञो लिङ्गपातु शिवप्रियः ।।

उरु च जानुनी पातु लङ्का प्रासाद भञ्जनः ।
जङ्घे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबलः ।।

अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्कर सन्निभः ।
अङ्गान्यमित सत्वाढ्यः पातु पादांगुलिस्तथा ।।

सर्वाङ्गानि महाशूरः पातु रामाणि चात्मवान ।
हनुमत्कवच यस्तु पठेद विद्वान् विचक्षणः ।।

स एव पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।
त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं सदा ।।

सर्वानरिपुक्षणाजित्वा स पुमानश्रियमाप्नुयात ।
मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद यदि ।।

महाशूर सभी अंगों की,आत्मवार रोगों से सर्वदा रक्षा करें ।
जो विद्वान इस विचक्षण कवच का पाठ करता है वह भक्ति एवं मुक्ति को प्राप्त करता है ।
एक समय या तीनों समय प्रतिदिन जो साधक तीन मास तक इसका पाठ करता है वह क्षणमात्र में ही शत्रु वर्ग को जीत कर लक्ष्मी प्राप्त करता है ।
आधी रात के समय जल के मध्य स्थित होकर इसके सात पाठ करने से क्षय, अपस्मार, कुष्ठ तथा का निवारण होता है ।

क्षयाऽपस्मार कुष्ठादि ताप ज्वर निवारणम ।
अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थितवा पठति यः पुमान ।।

अचलाँ श्रियमाप्नोति संग्रामे विजयं तथा ।
लिखित्वा पूजयेद यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत् ।।

यः करे धारयेन्नित्यं स पुमान श्रियमाप्नुयात ।
विवादे द्यूतकाले च द्यूते राजकुले रणे ।।
 
दशवारं पठेद रात्रौ मिताहारो जितेन्द्रियः ।
विजयं लभते लोके मानुषेषु नराधिपः ।।

रविवार के दिन अश्वत्थ वक्ष की जड़ के पास बैठकर इसका पाठ करने से संग्राम में विजय तथा अचल लक्ष्मी प्राप्त होती है ।
इसे लिखकर फिर इसकी पूजा करने पर सर्वत्र विजय मिलता है । इसे धारण करने से लक्ष्मी प्राप्त होती है ।
 वाद - विवाद जुआ राज - घराने एवं युद्ध में इसके दश पाठ करने से विजय प्राप्त होती है ।

भूत प्रेत महादुर्गे रणे सागर सम्प्लवे ।
सिंह व्याघ्रभये चोग्रे शर शस्त्रास्त्र पातने ।।

श्रृंखला बन्धने चैव काराग्रह नियन्त्रणे ।
कायस्तोभे वह्रि चक्रे क्षेत्रे घोरे सुदारणे ।।

शोके महारणे चैव बालग्रहविनाशनम ।
सर्वदा तु पठेत्रित्यं जयमाप्नुत्यसंशयम ।।

भूत, प्रेत, महादुख, रण, सागर, सिंह, व्याघ्र, शस्त्रास्त्र के मध्य फंस जाने पर, जंजीरो से बाँधे जाने पर, कारागार में जाने पर, आग में फँसने, शरीर में पीड़ा होने, शोकादि व ब्रह्म ग्रह के निवारण के लिए इसे प्रतिदिन पढ़ना चाहिए ।
भूर्जे ( च ) व वसने रक्ते क्षीमे व ताल पत्रके

त्रिगन्धे नाथ मश्यैव विलिख्य धारयेन्नरः ।।
पञ्च  सप्त त्रिलोहैर्वा गोपित कवचं शुभम ।

गले कटयाँ बहुमूले कण्ठे शिरसि धारितम ।।
सर्वान कामान वाप्नुयात सत्यं श्रीराम भाषितं ।।

भोजपत्र, लाल रेशमी वस्त्र, ताड़पत्र पर इस कवच को त्रिगन्ध की स्याही से लिखकर इसे धारण करना चाहिए ।
पाँच, सात तथा तीन लोहे के मध्य रखकर गले पर, कमर पर, भुजा पर या सिर पर धारण करने से धारक की समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं । 
यह श्री राम जी ने कहा ।

।। एकमुखी हनुमत्कवच सम्पूर्णम ।।

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