ग्रह शांति के लिए अनुष्ठान,Grah Shaanti Ke Lie Anushthaan
शनि ग्रह :-
गोचर में जब जौनसा ग्रह प्रतिकूल चलता है तब वह राशि से किस भाव में चल रहा है उसी के अनुसार उसी भाव सम्बन्धी चिन्ता बाधा पीड़ा आदि उत्पन्न करता है तथा उस ग्रह की शान्ति के उपाय करना जरूरी हो जाता है। हमारे जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव शनि का पड़ता है और यह ग्रह बहुधा प्रतिकूल चलता है। जब इसकी साढ़े साती आती है तब कम ज्यादा यह साढ़े सात वर्षे तक प्रतिकूल ही रहता है। इसके अतिरिक्त चौथा सातवां आठवां दसवा भी कण्टक शनि के नाम से खराब ही होता है। यह ग्रह ३, ६. ११वे भाव मे ही अच्छा फल देने वाला रहता है। इसकी शान्ति के उपायों जोशी को शनिवार के दिन तांबे के पैसे ( अब ताबे के पैसे प्रचलित नहीं हैं अतः कोई भी छोटे सिक्के या तांबे का कोई टुकड़ा) सरसों के तेल में अपना मुख देख कर तेल दान करना चाहिए। इसके अलावा लोहे की बनी हुई कोई उपयोगी वस्तु जैसे चिमटा, सडासी चाकू-छुरी आदि साबत उड़द काला कपड़ा काले या नीले फूल पुराने उतरे हुए जूते सतनजा भी जोशी को शनिवार के दिन यथाशक्ति यदा कदा देते रहना चाहिए। मंगलवार, शनिवार को हनुमार जी का पूजा प्रसाद चढ़ाते रहना चाहिए। सुन्दर काण्ड का या हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। हो सके तो मंगल का व्रत भी रख लेना चाहिए।
Grah Shaanti Ke Lie Anushthaan |
शनि का मन्त्र : ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः है-इसका २३००० जाप है । जप समय सन्ध्या काल है। शमी यानी छोकर के वृक्ष की समिधा से २३०० आहुतिया देकर हवन करने से शनि का दोष निवारण हो जाता है । ऊपर बताये गये उपायों में से जितने भी कर सको उत्तम रहते हैं। जब शनि खराब होता है तब नीलम धारण करने से लाभ होता है परन्तु इस नाम को धारण करने से पहिले यह देखना पड़ता है कि आपको माफिक है या नहीं। नीलम के नग को पंचामृत में बोकर रात को सोते समय अपने सिरहाने तकिये के नीचे रखकर हो जाओ। वह स्वप्न में सकेत देगा और स्वप्न के अनुसार ही विचार करो या कराओ कि यह कैसा फल देगा शुभ या अशुभ | यह तीन घंटे में या तीन दिन में ही अपना कोई न कोई चमत्कार शुभ या अशुभ प्रभाव दिखा देता है । परन्तु जोखिम लेने से पहिले अच्छा है कि इसके स्वप्न के संकेत समझ लिए जाएं और यदि सकेत ठीक नहीं है. तो दूसरा नग लेकर उसकी इसी प्रकार परीक्षा की जाए। इसके स्थान पर यदि सिद्ध रक्षा कवच पहना जाए या लोहे का कड़ा या अष्टधातु की अंगूठी ही जाए तो सुरक्षित रहती है। नीलम प्रायः ४ रत्ती पन - स्टील की अंगूठी में दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली में (स्त्रियों के बायें हाथ में) सूर्यास्त से दो घण्टे पूर्व शनिवार के दिन प्रथम बार धारण किया जाता है । धारण करने से पहिले अंगूठी को पंचामृत में धोकर गंगाजल या शुद्ध जल से साफ करके पहनना चाहिए।
- राहु-केतु :
शनि के बाद जो सबसे अधिक अनिष्टकारक ग्रह हैं वे राहु और केतु हैं। जो अपने इष्ट देव की पूजा-पाठ करते हैं उनके अनन्य शरणागत हैं, हनुमान जी या बटुक भैरव जी की या देवी की पूजा करते हैं उन पर ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। यह निश्चित बात है। यदि देश का राजा आपसे प्रसन्न हो जाए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जी ही आप पर प्रसन्न हो जायें तो नगर के कोतवाल दरोगा सिपाही और छोटे-मोटे अधिकारी नाराज होकर भी कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचा सकते। यो दुष्ट प्रकृति के अधिकारीगण कभी-कभी अपना दाव लगने पर शैतानी से बाज नहीं आते। फिर भी उनको भय रहता है कि यह तो राजा का आदमी है । अस्तु सभी ग्रहों के दुष्ट प्रभाव से बचने के लिए जरूरी है कि किसी बड़ी ताकत का सहारा लिया जाए। देवों के देव परम पिता परमात्मा या जगन्माता या इनके ही रूपों की शरण ली जाए। जिसका कोई सहारा नहीं होता ऐसे कमजोर असहाय व्यक्ति को सभी सताते व ठोकर मारते हैं। फिर भी मान लो आपको किसी बड़ी शक्ति का सहारा है और आप उस के बलबूते पर निशक हैं तो भी अच्छा है कि छोटे-मोटे अधिकारीगणों को भी संतुष्ट कर दिया जाय उनका अहं भी संतुष्ट हो जायेगा और वे अपनी दुष्टता आप पर नहीं चलायेंगे। इससे क्या लाभ कि जब यह ग्रह कोई दुष्टता करे व आप इनकी शिकायत लेकर अपने इष्टदेव के पास जायें। किसी सरकारी दफ्तर में आप अपना कोई काम निकलवाने जाते हैं और मान तो आपकी उस कार्यालय के सबसे बड़े अफसर से जान पहचान है तो आपका काम सरलता से हो जायेगा। परन्तु उस दफ्तर में यदि कोई छोटा बांबू या अधिकारी आप से किसी कारण रुष्ट है तो वह कोई विघ्न बाधा डाल ही देगा इसलिये इन छोटे अधिकारियों को भी उचित आदर मान दे देने में ही भलाई होती है ।
- राहू का मंत्र :
ॐ भ्रां श्रीं श्रीं सः राहवे नमः सख्या १८००० हवन सूखी दूब मिला कर १८०० आहुतियां सरसो काले तिल आदि की हवन सामग्री से करें । दान पदार्थ- सीसा (लैंड) काले तिल, सरसों, सरसों का तेल, नीले फूल, नीला कपड़ा, चाकू-छुरी या लोहे का खड्ग या. खिलौनेनुमा तलवार, कम्बल या ऊनी बिछावन का टुकड़ा, घोड़ा या घोड़े के प्रतीक लकड़ी या लोहे का बना घोड़े का खिलौना यह सब चीजें नीले कपड़े में बांध कर छाज या सूप में रख कर शनिवार के दिन जोशी को दान कर देनी चाहिए। सतनजे का दान भी कर देना चाहिए। सतनजा में यह सात धान्य होते है- साबत उड़द, साबत भूग, गेहूं, चने, जौ, चावल और कंगनी या बाजरा ।
केतू मंत्र :
ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः संख्या १७००० जप समय राहू केतु का रात्रि में है। हवन सामग्री मे कुशा का विशेष मिश्रण किया जाता है। दान पदार्थ लोहा काले तिल सतनजा सरसों का तेल, धूम्रवर्ण के वस्त्र का टुकड़ा व इसी रंग के पुष्प नारियल कंबल, ऊनी कपड़ा, कोई हथियार या उसका प्रतीक बकरा या उसका प्रतीक एक लकड़ी का खिलौना बकरा । राहू का रत्न गोमेद है जिसको चांदी या अष्टधातु की अंगूठी में पहना | जाता है। सूर्यास्त के दो घण्टे बाद दाहिने हाथ की मध्यमा में पहनना चाहिये । वजन ४ रती । केतु के लिए लहसुनिया पहना जाता है। वजन ४ रती । दाहिने हाथ की कनिष्ठिका या मध्यमा में अर्धरात्रि के समय पहनना चाहिए। शनि राहू व केतु के रत्न शनिवार के दिन ही प्रथम बार पहनना आरंभ करना चाहिये। आम तौर से इन रत्नो का जो वजन लिया जाता है वह दे दिया है । परन्तु राशि के हिसाब से प्रत्येक व्यक्ति के लिये इनकी कम या ज्यादा रती भी बताई जाती है। राहू केतु के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए हाथी- दांत पहनने से भी काम होता है।
- बृहस्पति :
महत्व की दृष्टि से अगला ग्रह बृहस्पति ही है। गुरु एक शुभ ग्रह है। परन्तु गोचर मे कभी-कभी यह भी खराब आ जाता है और विघ्न, बाधा, पीड़ा, व्यर्थ व्यय आदि कराने वाला हो जाता है । इसकी शान्ति के लिए इसका मन्त्र है - ॐ या ग्रीं प्रौं सः गुरवे नमः इसकी जप संख्या १९००० है। हवन में पीपल के वृक्ष की समिधाये विशेष प्रयोग की जाती हैं। दान पदार्थों में कासा, धातु का टुकड़ा, चने की दाल, खांड, चीनी, घी, पीला कपड़ा, पीला फूल, हल्दी, पुस्तक पीले फल, केले, अमरूद आदि घोड़ा या घोड़े का प्रतीक खिलौना । बृहस्पति जब खराब हो या जन्म पत्री में गुरु नीच या शत्रु राशि का हो या बृहस्पति की दशा खराब चल रही हो अथवा जन्म सूर्य की राशि का हो तो पुखराज धारण कराया जाता है। यह आम तौर से सवा पांच रत्ती का सोने की अंगूठी में दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में पहना जाता है। सूर्यास्त से एक घंटे पहिले प्रथम बार गुरुवार के दिन पहनना आरम्भ करे । शनि एक राशि पर ढाई वर्ष रहता है। राहू केतु करीब डेढ़ वर्ष तक रहते हैं और प्रायः प्रतिकूल रहते हैं। गुरु भी एक राशि पर एक वर्ष तक रहता है और प्रतिकूल भी हो जाता है। राशि से तीसरा चौथा छठा आठवा बारहवां तो खराब होता ही है अतएव इन चारो ग्रहो के अनुष्ठान उपाय कराने की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। अब अन्य ग्रहो के उपाय लिखते हैं।
- सूर्य :
सूर्य सव ग्रहो का राजा है। यदि जन्मपत्री मे नीच राशि का पड़ जाय 'सब ग्रहो के शुभ फलों में न्यूनता ला देता है। इच्छा शक्ति कम कर देता है। क्योंकि एक राशि पर केवल एक मास तक रहता है, इस कारण गोचर में एक साथ बहुत दिन तक खराब नहीं चलता, परन्तु दशा अन्तरदशा | अधिक दिन तक खराब आ सकती है। तब सूर्य का उपाय करना चाहिए। किसी जमाने मे सूर्य की पूजा मुख्य देवता के रूप में प्रचलित थी । सूर्य भगवान की नित्य प्रातःकाल पूजा करने से बल बुद्धि तेज की वृद्धि होती है। इनका जप मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः है जिसकी जप संख्या केवल सात हजार है । समय प्रातः काल है । अर्क ( अकौआ ) या आक की समिधाओं से लाल चन्दन मिलाकर हवन किया जाता है । नित्य न कर सकें तो रविवार के दिन ही करें। प्रातः सूर्य को जल चढ़ाने से भी बहुत लाभ होता है। स्नानं करके पूर्व की ओर मुख करके खड़े हो जाओ और सूर्य को एक लोटा जल से अर्घ्य दो । सूर्य की किरणें जल के द्वारा तुम्हारे शरीर में प्रवेश करें। फिर अपने स्थान पर ही एक बार घूमकर परिक्रमा दो और पृथ्वी पर गिरे हुए जल को अपने शरीर के मुख्य भागों से स्पर्श कराओ । मस्तक हृदय बाहुओं पर लगाओ। सूर्य भगवान को नमस्कार करो । जन्मकुंडली में जिनका सूर्य नीच का था और जिनके उत्तम ग्रहों का प्रभाव नहीं हो रहा था ऐसे कितने दी लोगों को मैंने सूर्य पूजा जल चढ़ाना बताया और और केवल रविवार को ही यह नियम करने से उनको अप्रत्याशित लाभ हुआ है।
सूर्य के प्रभाव को ठीक करने के लिए माणिक पहना जाता है। इसे सोने की अंगूठी में दाहिने हाथ की तर्जनी में सूर्योदय के समय रविवार के दिन से पहनते हैं। वजन सवा रती से लेकर तीन रत्ती तक होता है। सूर्य का दान ब्राह्मण को दिया जाता है जिसमें तांबा, गेहूं, गुड़, घी, लाल कपड़ा, लाल फूल, केसर, मूंगा, लाल गाय (सजीव न हो सके तो मिट्टी की बनी गाव), लाल चन्दन इन पदार्थों का दान किया जाता है।
- चन्द्रमा :
चन्द्रमा गोचर में एक राशि पर केवल ढाई दिन के लगभग रहता है। परंतु जन्मकुंडली मे आठवां हो घातक पीड़ादायक हो मा नीच राशि में हो इसी प्रकार के चन्द्रमा की दशा हो तो निम्न उपाय किये जाते हैं। बच्चों के गले में चांदी का चन्द्रमा बनवाकर पहनाया जाता है। चन्द्रमा की शान्ति के लिए उसके प्रभाव को शुभ करने के लिए चांदी में मोती पहना जाता है। दो सवा दो रत्ती का सच्चा मोती दाहिने हाथ की कनिष्ठिका अंगुली मे संध्या के समय सोमवार के दिन से पउनते हैं। यह चित्त को शांत करता है । और चन्द्रमा सम्बन्धी रोगो पर भी शुभ प्रभाव डालता है। मेरे पास एक डाक्टर साहब मिलने आये थे जालन्धर से। वे बताते थे कि वे रत्नों से ही बहुत से रोगो का सफलतापूर्वक इलाज करते हैं। यदि ठीक नग पहनाया जाय तो बहुत से असाध्य रोग भी इनसे दूर हो जाते हैं।
- चन्द्रमा का जप मंत्र :
"ॐ यं री रौं सः चन्द्राय नमः" है । जप संख्या ११००० है । जप समय संध्याकाल । हवन सामग्री में पलाश वृक्ष की समिधाओं का विशेष प्रयोग किया जाता है। सफेद चन्दन की लकड़ी भी मिलानी चाहिये । दान पदार्थों में-चांदी, चावल, मिश्री, दही, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, शंख, कपूर, श्वेत बैल, श्वेत चन्दन ब्राह्मण को दान किया जाता है। सजीव बैल के स्थान पर मिट्टी का बना खिलौना सफेद बैल का दिया जा सकता है। चन्द्रमा मन मस्तिष्क का स्वामी होने से जब विपरीत फल देने वाला हो जाता है. तो विक्षिप्तता मिरगी हिस्टीरिया आदि के दौरे बुद्धिभ्रश आदि उत्पन्न करता है। कैफ के रोग स्वास दमा आदि भी देता है । उपरोक्त उपाय करने से लाभ होता है।
- मंगल :
मंगल नीच राशि का पड़ा हो, नीच राशि का गोचर में अशुभ चल रहा हो, अथवा अशुभ मंगल की दशा अन्तरदशा आये तो उसमें यह ग्रह शरीर से रक्त निकालने वाली बीमारी, बवासीर या चोट अथवा आपरेशन आदि से रक्त बहाने वाले कुयोग बनाता है। मामूली सी चोट से अधिक रक्त बहता है। इसके कुप्रभाव को कम करने के लिए या दूर करने के लिये हनुमानजी की पूजा प्रसाद उपासना बहुत लाभदायक होती है। इसके लिये बच्चो के गले में या बाहू पर मूंगा डाला जाता है। सच्चा न हो तो नकली मूंगा भी बच्चो को पहनाया जा सकता है। वयस्क लोग दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में सोने मे सवा पाच रती का मूंगा मंगलवार के दिन से सूर्योदय के एक घण्टे बाद प्रथम प्रहर में धारण करें।
इसका जप मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः है। जप संख्या १०००० है । जप समय प्रात: प्रथम प्रहर । हवन में खैर की लकड़ी व रक्त- चन्दन की समिधा विशेष रूप से प्रयोग में लाई जाती हैं। दान पदार्थों में तांबा, मलका मसूर की दाल, गुड़, घी, लाल कपड़ा, लाल कनेर के फूल, केसर कस्तूरी, ताल बैल (या प्रतीक स्वरूप खिलौना बैल) लाल चन्दन आदि का मंगलवार के दिन ब्राह्मण को दान करना चाहियें। हनुमान जी को चोला भी चढ़ाया जाता है। पी सिंदूर आदि लेपन कराया जाता है।
- बुध-
बुध का रत्न पन्ना है। तीन रत्ती वजन का पन्ना दाहिने हाथ की सबसे छोटी उंगली में जिसे कनिष्ठिका कहते हैं पहना जाता है। सोने या चांदी में दिन के प्रथम प्रहर में बुधवार के दिन से पहनें। चांदी सोना मिश्रित या कांसा धातु मे भी पहना जा सकता है।
दान पदार्थ - कांसा धातु, मूंग साबत, खांड या चीनी, घी, हरा कपड़ा, चम्पा पुष्प या सब तरह के मिश्रित पुष्प, हाथी दांत का टुकड़ा, कंपू ऋतुफल, कोई हथियार या उसका प्रतीक बुधवार के दिन दान करना चाहिए। यह दान ब्राह्मण या किसी विद्वान को देना चाहिये ।
जप मन्त्र है - ॐ ब्रां ह्रीं ह्रौं सः बुधाय नमः जप संख्या ९००० है । जप समय मध्यान्हकाल । हवन में हरी गिलोय और वनस्पतियों की जड़ें मिलाई. जाती हैं। चावल गोरोचन शहद भी मिलाया जाता है। एक राशि पर एक मास के लगभग रहता है। सूर्य के आसपास ही चलता है । गोचर खराब हो, कुण्डली में खराब पड़ा हो, नीच राशि में हो दशा अन्तर दशा खराब हो तो बुध की शान्ति कराई जाती है। हाथी दाते पहनने से भी लाभ प्राप्त होता है।
- शुक्र :
गोचर में अनिष्ठ कारक हो कुंडली में बुरे भावों में पड़ा हो नीच का हों अस्त हो दशा अन्तर दशा खराब हो तो शुक्र ग्रह की शान्ति करानी पड़ती है। यह ग्रह सूर्य के सबसे पास में है। और एक राशि पर एक मास के लगभग ही रहता है। गोचर में तो ज्यादा देर तक खराब नहीं रहता परन्तु दशाअन्तर्य दशा लम्बी हो सकती है ।
शुक्र का जप मन्त्र-ॐ ग्रां प्रीं प्रौं सः शुक्राय नमः जप संख्या १८००० समय संध्याकाल । हवन सामग्री मे पीपल के वृक्ष की समिधायें, इलायची केसर भी मिलाई जाती है। दान पदार्थ-चादी, चावल, मिसरी, दूध, सफेद कपड़ा, सफेद फूल खुशबूदार तेल या इत्र की शीशी या फाया। दही सफेद घोड़ा या उसका प्रतीक, सफेद चन्दन शुक्रवार के दिन किसी पंडित ब्राह्मण को दान किया जाता है। इसका रत्न हीरा है जो चांदी या सोने में करीब सवा रत्ती का दाहिने हाथ की कनिष्ठिका अंगुली में शुक्रवार के दिन प्रात काल से पहनना चाहिये । वीर्यवान बनाता है पुरुपत्य को बढ़ाता है । सन्तानोत्पत्ति की शक्ति देता है ।
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