बैशाख गणेश चतुर्थी व्रत कथा,Baishakh Ganesh Chaturthi Vrat Katha
हिंदू धर्म में, गणेश जी की पूजा बुधवार को की जाती है. ऐसा माना जाता है कि गणेश जी अपने भक्तों को सौभाग्य और भाग्य के साथ-साथ स्वास्थ्य और वित्तीय प्रचुरता लाते हैं. भगवान गणेश की पूजा करने से सौभाग्य, स्थायी खुशी और शांत जीवन का आशीर्वाद मिलता है वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जाता है. इस दिन गणेश जी की पूजा की जाती है और रात में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से समस्याएं कम हो जाती हैं,भक्तों का मानना है कि इस दिन प्रार्थना करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं गणेश चतुर्थी का व्रत करने वालों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. तन के साथ मन की भी शुद्धता रखें, किसी को अपशब्द न बोलें न ही किसी से विवाद करें,
बैशाख गणेश चतुर्थी व्रत कथा
पार्वती जी ने पूछा-बैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की जो संकटा नामक चतुर्थी कही गई है, उस दिन किस गणेश का, किस विधि से पूजन करना चाहिए और उस दिन भोजन में क्या ग्रहण करना चाहिए? गणेशजी ने उत्तर दिया हे माता! बैशाख कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रत करना चाहिए। उस दिन 'वक्रतुण्ड' नामक गणेश की पूजा करके भोजन में कमलगट्टे का हलुवा लेना चाहिए। हे जननी! द्वापर युग में राजा युधिष्ठिर ने इस प्रश्न को पूछा था और उसके उत्तर में जो कुछ भगवान कृष्ण ने कहा था, मैं उसी इतिहास का वर्णन करता हूँ। आप श्रद्धायुक्त होकर सुनें। श्रीकृष्ण बोले-हे राजा युधिष्ठिर! इस कल्याण दात्री चतुर्थी का जिसने व्रत किया और उसे जो फल प्राप्त हुआ, मैं उसे ही कह रहा हूँ।
प्राचीन काल में एक रन्तिदेव नामक प्रतापी राजा हुए हैं। जिस प्रकार आग तृण समूहों को जला डालती है उसी प्रकार वे अपने शत्रुओं के विनाशक थे। उनकी मित्रता यम, कुबेर, इन्द्रादिक देवों से थी। उन्हीं के राज्य में धर्मकेतु नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे। उनके दो स्त्रियाँ थीं- एक का नाम सुशीला और दूसरी का नाम चंचला था। सुशीला नित्य ही कोई-न-कोई व्रत किया करती थी। फलतः उसने अपने शरीर को दुर्बल बना डाला था। इसके विपरीत चंचला कभी भी कोई व्रत-उपवास आदि न करके भरपेट भोजन करती थी। इधर सुशीला को सुन्दर लक्षणों वाली एक कन्या हुई और उधर चंचला को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह देखकर चंचला बारम्बार सुशीला को ताना देने लगी। अरी सुशीला ! तूने इतना व्रत उपवास करके शरीर को जर्जर बना डाला, फिर भी एक कृशकाय कन्या को जन्म दिया। मुझे देख, मैं कभी व्रतादि के चक्कर में न पड़कर हृष्ट-पुष्ट बनी हुई हूं और वैसे ही बालक को भी उत्पन्न किया है।
अपनी सौत का व्यंग्य बाण सुशीला के हृदय में चुभने लगा। वह पतिव्रता विधिवत गणेशजी की उपासना करने लगी जब सुशीला ने भक्तिभाव से संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किया तो रात्रि में वरदायक गणेशजी ने उसे दर्शन दिया। श्री गणेशजी ने कहा-हे सुशीले! तेरी आराधना से हम अत्यधिक सन्तुष्ट हैं। मैं तुम्हें वरदान दे रहा हूँ कि तेरी कन्या के मुख से निरन्तर मोती और मूँगा प्रवाहित होते रहेंगे। हे कल्याणी! इससे तुझे सदा प्रसन्नता रहेगी।
हे सुशीले! तुझे वेद शास्त्र वेत्ता एक पुत्र भी उत्पन्न होगा। इस प्रकार का वरदान देकर गणेश जी वहीं अन्तर्धान हो गये। वरदान प्राप्ति के फलस्वरूप उस कन्या के मुँह से सदैव मोती और मूंगा झड़ने लगे। कुछ दिनों के बाद सुशीला को एक पुत्र उत्पन्न हुआ तदनन्तर धर्मकेतु स्वर्गगामी हो गया। उसकी मृत्यु के अनन्तर चंचला घर का सारा धन लेकर दूसरे घर में जाकर रहने लगी, परन्तु सुशीला पतिगृह में रहकर ही पुत्र और पुत्री का पालन पोषण करने लगी। उस कन्या के मुँह से मोती मूंगा गिरने के फलस्वरूप सुशीला के पास अल्प समय में ही बहुत-सा धन एकत्रित हो गया। इस कारण चंचला उससे ईर्ष्या करने लगी। एक दिन हत्या करने के उद्देश्य से चंचला ने सुशीला की कन्या को कुएँ में ढकेल दिया। उस कुएँ में गणेश जी ने उसकी रक्षा की और वह बालिका सकुशल अपनी माता के पास लौट आई। उस बालिका को जीवित देखकर चंचला का मन उद्विग्न हो उठा। वह सोचने लगी कि जिसकी रक्षा ईश्वर करता है उसे कौन मार सकता है? इधर सुशीला अपनी पुत्री को पुनः प्राप्त कर प्रसन्न हो गई। पुत्री को छाती से लगाकर उसने कहा-श्री गणेश जी ने तुझे पुनःजीवन दिया है। अनाथों के नाथ गणेश जी ही हैं। चंचला आकर उसके पैरों में नतमस्तक हुई। उसे देखकर सुशीला जी के आश्वर्य का ठिकाना न रहा। चंचला हाथ जोड़कर कहने लगी-हे बहिन सुशीले! मैं बहुत ही पापिन और दुष्टा हूँ। आप मेरे अपराधों को क्षमा कीजिए। आप दयावती हैं, आपने दोनों कुलों का उद्धार कर दिया। जिसका रक्षक देवता होता है उसका मानव क्या बिगाड़ सकता है? जो लोग सन्तों एवं सत्पुरुयों का दोष देखते हैं वे अपनी करनी से स्वयं नाश को प्राप्त होते हैं। इसके बाद चंचला ने भी उस कष्ट निवारक पुण्यदायक संकट नाशक गणेश जी के व्रत को किया। श्री गणेश जी के अनुग्रह से परस्पर उन दोनों में प्रेम भाव स्थापित हो गया। जिस पर गणेश जी की कृपा होती है उसके शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। सुशीला द्वारा संकटनाशन गणेश चतुर्थी व्रत किये जाने के कारण ही उसकी सौत चंचला का हृदय परिवर्तन हो गया। श्री गणेश जी कहते हैं कि हे देवी! पूर्वकाल का पूरा वृत्तान्त आपको सुना दिया। इस लोक में इससे श्रेष्ठ विघ्नविनाशक कोई दूसरा व्रत नहीं है। श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे धर्मराज! आप भी विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत कीजिए। इसके करने से आपके शत्रुओं का नाश होगा तथा अष्टसिद्धियां और नवनिधियाँ आपके सामने करबद्ध होकर खड़ी रहेंगी। हे धर्मपरायण ! युधिष्ठिर ! आप अपने भाईयों, धर्मपत्नी और माता के सहित इस व्रत को कीजिये। इससे थोड़े समय में ही आप अपने राज्य को प्राप्त कर लेंगे।
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