वशीकरण मन्त्र के बारे में,About Vashikaran Mantra
वशीकरण मन्त्र
इस अध्याय मे आपको वशीकरण मन्त्र के बारे में बताने जा रहे हैं। वशीकरण एक मन्त्र है तज दे वचन कठोर' 'जुबां शीरी मुल्क गिरी' । यह कहावतें आपने सुनी होंगी। यदि आप मिष्ठभाषी है तो लोगों को मोहने की एक कला तो आपके पास है ही आप ने जीवन यात्रा के मध्य में कुछ ऐसे व्यक्ति भी देखे होगे जो बहुत मीठी वाणी बोलते हैं तथा जो सदा प्रसन्न रहते हैं, सदैव मुस्कराकर बात करते हैं तो पहला मन्त्र तो यह हुआ कि सदा प्रसन्न रहो और सबसे प्रेम से हंस कर मुस्कराकर बात करो। आप यदि किसी से क्रोध से बात करेगे तो सामने वाले व्यक्ति पर उसकी प्रतिक्रिया क्रोध की ही होगी। इसी प्रकार यदि आप किसी से प्रेम से बात करेंगे तो सामने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया भी प्रेम की ही होगी।आपने मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म के बारे में सुना होगा और अक्सर इन लोगों के तमाशे भी देखे होगे।
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About Vashikaran Mantra |
आपने देखा होगा कि इस विद्या के जानने वाला किस प्रकार अपने शरीर से निकलने वाली प्रभाव लहरों के द्वारा तथा अपनी प्रबल आत्मशक्ति के द्वारा किसी कमजोर आत्मशक्ति के व्यक्ति को अपने प्रभाव में लाकर बेहोश कर देता है सुता देता है या अपनी आज्ञा का पालन करवा लेता है। यदि किसी कीआत्मशक्ति प्रबल है और वह दूसरों के प्रभाव में नहीं आता या आसानी से नहीं आता तो ऐसे व्यक्तियों पर मेस्मेरिज्म करने वालों का प्रभाव नहीं पड़ता या मुश्किल से पड़ता है। मशहूर जादूगर गोगिया. पाशा एक बार लाल किले के सामने अपना प्रदर्शन कर रहा या ओर में भी उसे देखने गया था। वह दर्शको में से कुछ व्यक्तियों को बुलाता था और उन्हें हिप्नोटाइज़ करके उनसे मनमानी हरकतें अपनी आजा पर करवा कर दिखाता था। पब्लिक में से जो आदमी स्टेज पर जाते थे उनमे से कुछ को वह वापिस कर देता था यह कहकर लौटा देता था कि बहुत हो गए आप जाइये । गोगिया पाशा महान जादूगर था और आदमी पहचानने में भी माहिर था। जिनके बारे में समझता था कि वह जिद्दी किस्म के इन्सान हैं या प्रबल आत्म शक्ति का है और इनको हिप्नोटाइज करने में देर लगेगी मुश्किल होगी उनको छाँटकर वापस भेज देता था। मुझे भी उसने इसी प्रकार अयोग्य समझकर वापिस कर दिया था। तो तात्पर्य यह है कि किसी को प्रभावित करने के लिए यह आवश्यक है कि अपने अन्दर प्रबल आत्म शक्ति पैदा की जाय। इसको दृढ़ इच्छा शक्ति कहते हैं। मैस्मेरिज्म करने वाला दृढ़ता के साथ यह कहता है कि आप को नींद आ रही है आप सो रहे हैं और आप सचमुच सो जाते हैं। उस समय आप यदि उसके विचारो का विरोध करें और कहे या सोचें कि नहीं मुझे नींद आ रही है मैं नहीं सोऊंगा तो आप पर उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। अपने मन्त्र तन्त्र शास्त्र में भी यशीकरण की प्रक्रिया कमोवेश इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है। मैस्मेरिज्म की साधना में एक काले बिन्दु पर दृष्टि केन्द्रित करके ध्यान किया जाता है और इस प्रकार चित्तवृत्ति को एकाप्र करने का साधन किया जाता है। जैसे हमारे योग साधन मे राजयोग के अभ्यास में ध्यान को नासाग्र पर बाहर या अन्दर त्रिकुटी पर केन्द्रित करते हैं। दूसरा साधन अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से अपने शरीर में से अपनी मन चाही प्रभाव लहरें उत्पन्न करके फेकना होता है। किसी भी बात को बार-बार कहने से उसमें शक्ति उत्पन्न हो जाती है। अपने अन्दर वशीकरण की शक्ति उत्पन्न करने के लिए मेहनत तथा साधना करनी होती है। पहला काम तो वशीकरण मन्त्र को निश्चित संख्या तक जप करके उसमे शक्ति पैदा करना यानी उसको सिद्ध करना होता है। ' राजयोग के साधन से अपने अन्दर की प्रभाव लहरों को प्रेषित करने की शक्ति पैदा करनी होती है। तो सबसे पहले तो में आपको यह वशीकरण 'महामन्त्र बताता हूं जिसे श्री कृष्ण भगवान वंशी में बजाते थे और सारी सृष्टि वशीभूत हो जाती थी । गोपियां सुध-बुध बिसरा कर भागी चलीं आती थीं। जैसे शिकारी के तीर देखने मे छोटे लगते हैं परन्तु धाव करे गम्भीर उसी प्रकार यह महामन्त्र देखने में बहुत छोटा है परन्तु बहुत शक्तिशाली है। यह महाकाली का भी वीज मन्त्र है और श्री कृष्ण का भी इसको पहले विधिपूर्वक जप करने के बाद चलते-फिरते, उठते-बैठते निरन्तर भी जप किया 'जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण के चित्र के सामने या महाकाली के चित्र के सामने बैठकर गुरुदेव ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जी से दीक्षा ले लो और जिस प्रकार अन्य मन्त्र के बारे में बताया है उसी प्रकार देवता या देवी की पूजा अर्चना करके मन्त्र जाप करो। सवा लाख इसकी जाप संख्या और उसी के अनुसार दशांश हवन, उसका दशश तर्पण, दशांश मार्जन, दशाश ब्राह्मण भोजन सख्या है। महाकाली के इष्ट से करो तो दुर्गा सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करना विशेष लाभदायक रहेगा और श्रीकृष्ण भगवान के इष्ट से करो तो गोपाल सहस्रनाम का पाठ सहायता करेगा। अंगन्यास करन्यास सप्तशती में बताई विधि से या गोपाल सहस्रनाम के अनुसार कर लिया जाता है। तो वह महामन्त्र यह है :
ओ३म् क्लीं क्लीं नमः । इसका उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। कृ त ई और म् की संयुक्त ध्वनि निकलनी चाहिए ( किलीम ) । इसका जाप बाणी से, कंठ से, स्वांस से, सुरति से करने से अपार शक्ति पैदा होती है। इसका जप करते समय पूर्व की ओर मुख करके बैठना चाहिए। आसन देवी की उपासना में लाल रंग की ऊन का तथा श्रीकृष्ण की उपासना में पीते या श्वेत रंग की ऊन का या कुशा का हो । आचमन मन्त्र श्रीकृष्णोपासना में ॐ केशवाय नमः स्वाहा, ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, ओइन् माधवाय नमः स्वाहा, ओइम गोविन्दाय नमः स्वाहा । अथवा महाकाली की उपासना मे ॐ ऐं आत्म तत्व शोधयामि नमः स्वाहा, ओम ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ओश्म् क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामि नमः स्वाहा । पवित्रीकरण, संकल्प, शिखाबन्धन यज्ञोपवीत पहनने का मंत्र दोनों में एक जैसे हैं। पूजन मंत्र शोडषोपचार के दोनो के एक जैसे हैं। पदार्थों में भिन्नता है। देवी को लाल तिलक श्री कृष्ण को कस्तूरी केसर का तिलक, देवी को सात पुष्प, श्रीकृष्ण को मीते पुष्प देनी को कुंकम तथा वैसे ही वस्त्र आदि अर्पण करते हैं । अगन्यास करन्यास आदि में इस मंत्र का बीज लगाकर किया जाता है। करन्यास, अक्षरन्यास, दिग्न्यास, सब इसी बीज मंत्र को लगाकर करने चाहिए। माला तुलसी की या मोती की तातं पीते या सफेद रंग के धागे में पिरोई होनी चाहिए। देवी भक्त विन्दी या त्रिशूल चिन्ह का लाल रंग का तिलक लगाये, कृष्ण भक्त श्री का उर्ध्वपुण्ड्रतिलक मस्तक भुजा वक्षस्थल पर लाल पीला या. श्वेत लगाएं।
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- महाकाली का ध्यान मंत्र-
खडग चक्र गदेपु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर शंख संदधतीं करेस्त्रिनयनां सर्वांग भूमावृताम् ।। नीलाश्मद्युति मास्य पाद दशक सेवे महा कालिकां यामस्तोत्स्वपितो हरी कमलजो हन्तुं मधुकैटभं
- भगवान कृष्ण का ध्यान मन्त्र-
कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभं । नासाने वर मौक्तिक करतते वेणुः करे कंकणम् ।। सर्वांगे हरि चंदन सुतलितं कण्ठे च मुक्तावली गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूड़ामणिः ।।
- हृदयादिन्यास-
ॐ क्लीं हृदयाय नमः, ॐ क्लीं शिरसे स्वाहा, ॐ क्लू शिखाये वपट, ॐ क्लै कवचाय हुम्,ॐ क्लो नेत्रत्रयाय वौषट्, ॐ क्तः अस्त्राय फट् ।।
- ऋष्यादिन्यास -
नारद ऋषये नम: शिरसि, ॐ बृहति छन्दसे नमः मुले, ॐ श्रीकृष्णः परमात्मा देवताये नमः हृदयेः, ॐ क्लीं बीजाय नमः गुहये, ॐ क्लीं शक्तये नमः पादयो, ॐ क्लीं कीलकाय नमः नाभी । यह न्यास तब करो जब आप भागवत या गोपाल सहस्रनाम का पाठ करो।
- महाकाली के इष्ट मे ऋष्यादिन्यास -
ब्रह्मा विष्णु रुद्र ऋभ्यो नमः शिरसि, गायत्रपुष्णिगनुष्टुप छन्दोभ्यो नमः मुखे, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदि, क्ली वीजाय नमः गुह्ये, क्लीं शक्तये नमः पादयो। क्लीं कीलकाय नमः नाभी।
- करन्यास -
ॐ क्लां अगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ वसीं तर्जनीभ्यां नमः, ॐ क्तुं मध्यमाभ्यां नमः, ॐ क्ले अनामिकाभ्यां नमः, ॐ क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ॐ क्लीं क्लीं महाकाली करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । अथवा ॐ कृष्णाय गोविन्दाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
- अक्षरन्यास-
ॐ क्लां नमः शिखायाम, ॐ क्र्ती नमः दक्षिण, नेत्रे, ॐॐ क्लीं नमः वाम नेत्रे, ॐ क्लूं नमः दक्षिण कर्णे, ॐ क्तुं नमः वामं कर्णे, ॐ नमः याम नासापुटे, ॐ क्लै नमः दक्षिण नासापुटे, ॐ क्लीं नमः मुखे, ॐ क्लीं नमः गुहो ।
- दिगन्यास -
ॐ क्लां प्राच्ये नमः ॐ क्लां आग्नेये नमः ॐ क्लीं दक्षिणायै नमः, ॐ क्लो नैत्रात्यै नमः ॐ क्लू प्रतीच्यै नमः, ॐ क्लू वायध्यै नमः ॐ क्लीं उदीच्यै नमः, ॐ क्लीं ऐशान्यै नमः, ॐ क्लीं क्लीं उर्ध्वा नमः, ॐ क्ले क्लीं भूम्यै नमः ।
न्यासो के बाद उपरोक्त ध्यान मन्त्र पढ़ कर देवता का ध्यान करो।इसके बाद देवी या देवता की पोडसोपचार से पूजा फरो ।' श्री महाकाली देव्यै नमः आवाहन समर्पयामि अथवा श्री कृष्ण परमात्मने नमः आवाहनं समर्पयामि, आसनं समर्पयामि, पादयं समर्पयामि, अर्थ्य समर्पयामि, आचमनं समर्पयामि, स्नान समर्पयामि, पंचामृत स्नानं उबटन स्नानं समर्पयामि, वस्त्र उपवस्त्रसमर्पयामि, गन्धं समर्पयामि, अक्षतं समर्पयामि, देवी की पूजा में सौभाग्य सूत्र कुंकुम सिन्दूर कज्जलं समर्पयामि, पुष्पं समर्पयामि, पुष्पमालां समर्पयामि, धूपं आधापयामि, दीपं दर्शयामि, नैवेद्य ऋतुफलं समर्पयामि, ताम्बूलं पुंगीफल सुदक्षिणां समर्पयामि, इसके बाद पुष्पांजलि मन्त्र पढ़ कर पुष्प अर्पित करो अथवा आरती उतारो। फिर पुष्पाजति करो । प्रदक्षिणा करो । नित्य हवन करने का नियम रखो तो जोत जलाकर ऊं क्लीं क्लीं नमः स्वाहा की आहुतियां जप के दशांश संख्या की दे दो ।
हवन घी नारियल का गोला बतासे धूप आदि से करते हैं। कुछ बड़ा हवन हो तो अर्थात बाद में इकट्ठा करना हो तो आम पीपल अ शोकं बेलपत्र छोड़कर अन्य वृक्षो की लकड़ी की समिधा से जो चावल चीनी हवन सामग्री धूप 'सफेद तिलों मे मिलाकर सफेद गोंगची चिरमिटी मिला कर हवन करते हैं। देवी को लाल वस्त्र, कृष्ण भगवान को पीले वस्त्र देवी को सिन्दूर रोती सात चन्दन का गन्ध कृष्ण भगवान को पीले चन्दन कस्तूरी गोपी चन्दन का गन्ध अर्पण करते हैं।. यदि महाकाली तथा श्रीकृष्ण दोनों के ही चित्र सामने रखकर पूजा की जाय तो भी कोई हानि नहीं है। तन्त्र में काली व कृष्ण मे कोई भेद नहीं है। महाकाली का चित्र वह तो जिसमे शिवजी शव रूप में लेटे हुएहें और 'चर्तभुजा महाकाली उनके ऊपर नृत्य कर रही हैं तथा कृष्ण भगवान का चित्र त्रिभागी मुद्रा मे खड़े हुए वशीवादन कर रहे हैं यह तो शिवजी के शरीर से जब महाशक्ति काली निकल कर बाहर आ जाती है तो शिवजी शव रूप हो जाते हैं। पूजा में एक यन्त्र भी रखा जाता है । इसमें १५ का यन्त्र भोजपत्र या ताम्रपत्र पर लिख कर रखो । १५ का यन्त्र बनाने व सिद्ध करने का विधान आगे अध्याय में दिया गया है। मन्त्र की दीक्षा देवी से या गुरु रूप में भगवान रामकृष्ण परमहंस जी के चित्र से विधिपूर्वक ले लेनी चाहिए। पूजा का क्रम वही होगा जो पहले अध्यायों में अन्य मन्त्रों को सिद्ध करने के बारे मे बताया गया है । यथा- पहले आचमन करके आत्म शुद्धि फिर सकल्प कि आप इस मन्त्र को सिद्ध करने के लिये सवा लाख जप करने का तथा उसका पुरश्चरण | करने का संकल्प लेते हैं। उसके बाद देवी या देवता की षोडसोपचार पूजा हवन आरती माता की पूजा अंगन्यास करन्यास आदि करके मंत्र का जप आरम्भ कर दो। जैसे कि बताया गया है इस मन्त्र का पुरश्चरण सवा लाख का है । ९ दिन २१ दिन ४१ दिन जितने दिन में जप संख्या पूरी की जा सके उतने दिन के हिसाब से नित्य जप की संख्या निश्चित कर लो और उसी | हिसाव से नित्य का जप पूरा कर देना चाहिए। इसके लिए एक बैठक में - पूरा न हो सके तो २ या ३ वार बैठकर भी पूरा किया जा सकता है। दीपक अखण्ड नहीं जला सको तो केवल जप के समय ही जलाना चाहिए। जाप जिहा से फिर कण्ठ से फिर श्वास से फिर प्राणायाम पर सुरति से करोगे तो शीघ्र सिद्धि प्राप्त होगी। जप के समय दीपक की लौ से ज्योति निकलकर तुम्हारे शरीर में प्रवेश करती प्रतीत हो, अतर में ध्यान करते हुए ज्योति 'के दर्शन या देवीदेवता का आवेश शरीर में हो जाये, श्वेदपसीना शरीर कम्पन अआँसू छाती हृदय प्रदेश लाल हो जाये तो घबराना नहीं चाहिए। समझो तुम्हारी साधना ठीक तरह से प्रगति कर रही है ।
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यदि कभी शरीर की सुधि जाती रहे तो अन्य जनो को बता दो कि कोई सात्मिक जीव ही स्पर्श करे और कृष्ण काली कृष्ण काली नाम से हृदय पर हाथ फेरे तो सुधि वापस आ जायेगी। यह नम्म कान के पास लेने से भी चेतना लौट आती है । जब -जप संख्या पूरी हो जाये तो उसका दशश हवन तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोजन जैसा कि पहले मन्त्रों के साधन में बताया गया है करके पुरश्चरण पूरा कर दो । उसके बाद इस मन्त्र का जाप चलते फिरते उठते बैठते सोते खाते पीते सब समय मन मे किया जा सकता है और अन्दर की शक्ति बढ़ती रहती है! जब भी किसी के काम के लिए इसका अनुष्ठान करने की आवश्यकता पड़ जाय तब देवी या देवता के चित्र के सामने दीपक जलाकर बैठकर उस व्यक्ति का नाम साथ लगाकर जप करने से तत्काल वशीकरण होता है। जैसे ॐ क्लीं क्लीं अमुक व्यक्ति वशीकरण कुरु कुरु स्वाहा। इसमें अमुक व्यक्ति के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लगाकर जप व हवन करना चाहिए। हवन घी और नारियल के गोले द बताशों से करना चाहिए। जैसे किसी व्यक्ति का नाम रामदास है तो उसका जप हवन इस प्रकार से होगा। ऊं क्लीं क्ली रामदास मम वश्य कुरु स्वाहा रामदास नाम के व्यक्ति को आपने अपने अनुकूल करना है उससे कोई काम अपने मन माफिक कराना है, या वह आपका पैसा लेकर नहीं देता या उससे अपने अनुकूल कोई आज्ञा पत्र लिखवाना है या आप किसी से प्रेम करते हैं। उससे विवाह करना चाहते हैं उसके माता-पिता राजी नहीं हैं तो इस प्रयोग को कर सकते हैं। इन सभी प्रयोगों में आपका पक्ष न्यायोचित होना चाहिए। यह वशीकरण महामन्त्र देवताओ तथा महादेवियों को वश में करने के लिए शास्त्रो मे बताये गए हैं। देवताओं को वश मे करने से तात्पर्य यह है कि उनको अपने पर कृपालु करने के लिए होते हैं। जिस देवता का बीजमंत्र लगा कर जप किया जाता है उसी देवता की कृपा प्राप्त होती है। इनका असली ध्येय तो निर्माण पद की मोक्ष की प्राप्ति इष्ट देवता का दर्शन है और सात्विक साधना तो यही है जो इस ध्येय को सामने रखकर की जाती है। परन्तु संसार में रहकर हम ससारी जीव धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चार पदार्थों में से अर्थ व काम के लिए भी सकाम साधना कर सकते हैं। परन्तु उसमें भी यह आवश्यक है कि अपने बुद्धि विवेक से यह निर्णय अवश्य कर लेना चाहिए कि जिस कामना से साधन किया जा रहा है वह धर्म समाज लोकाचार न्याय आदि की दृष्टि से उचित की तंज्ञा में आती है या नहीं। पाप व पुण्य की व्याख्या व्यास जी ने इस श्लोक मे की है : अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयं । परोपकाराय पुण्याय पापाय परिपीडिनम् । जिस काम को करने से किसी को दुख पहुँचे किसी की हानि होती हो वह पाप है। जिस काम को करने से किसी को सुख पहुँचे बिना किसी को हानि पहुँचाये वह पुण्य है। इस मंत्र का प्रयोग जीवन मे आने वाली बहुत-सी समस्याओं को हल करने में किया जा सकता है। मान तो किसी का बालक या युवा पुत्र पुत्री घर से रूठ कर भाग गया है या किसी का पति या पत्नी घर छोड़ कर चली गई है या किसी को आप किसी गंतव्य स्थान पर वापस बुलाना चाहते हैं। अथवा कोई आप से इस प्रकार का प्रयोग करने की प्रार्थना करता है
तो आप उस व्यक्ति विशेष का कोई पहना हुआ कपड़ा मंगवायें। कोई ऐसा वस्त्र जो उसने पहना हो और उसके बाद धुला न हो जिसमें उस व्यक्ति के शरीर की गन्ध हो मंगवायें। ऐसा वस्त्र न मिले तो घुला हुआ भी चल सकता है। " यानी पहन कर घुल गया हो उसमे भी कुछ न कुछ गन्ध उसके शरीर की होगी ही । भोजपत्र पर पन्द्रह का यन्त्र तथा इस मन्त्र को उस व्यक्ति के नाम के साथ लिखो । प्राय तो ऐसा होता है कि मन्त्रवेता लोग होली - दिवाली शिवरात्रि ग्रहण आदि के अवसरों पर इस प्रकार के यन्त्र अष्टगन्ध की स्याही अनार की कलम से लिखकर इकट्ठे बनाकर रख लेते हैं तथा उनको समय आने पर प्रयोग में लाते रहते हैं। इन विशेष अवसरों पर बनाए गए यन्त्र मन्त्र तन्त्र आदि अधिक प्रभावशाली होते हैं । जब किसी के लिए उपरोक्त प्रकार का प्रयोग करना होता है तो उस व्यक्ति के नाम के साथ तन्त्र व मन्त्र किसी साफ कागज पर लिखकर भोजपत्र वाला यंत्र हो तो उसके साथ उस वस्त्र के अन्दर रख दिया जाता है। अब मान लो कोई प्रदीप कुमार नाम का लड़का घर छोड़ कर चला गया है तो उसके लिए भोजपत्र पर या कागज पर पन्द्रह का यंत्र बनाओ। उसके चारों ओर अपने इस वशीकरण मन्त्र के चारों अक्षरों को लिल दी। उसके साथ-साथ प्रदीपकुमारं वशीकरण कुरु कुरु स्वाहा शब्द जोड़ दो। इस प्रयोग में यदि आपने पहले बताया हुआ श्री बटुक भैरव जी का मन्त्र सिद्ध किया हुआ है तो वह भी या केवल वही मन्त्र भी लिख सकते हो। यह सब लिखकर भोजपत्र तथा कागज पर लिखें यन्त्र व मन्त्रों को भगवती के सामने धूप जला कर उसे धूप दो प्रार्थना करो कि माँ उस | जो व्यक्ति आपके पास आया है उसे कुछ द्रव्य भगवती के सामने रखने को कहो। क्योकि ऐसा विधान है कि यंत्र को खाली हाथ नहीं लेते। इस लिए जो श्रद्धा हो उसे रखने को कहो। इस द्रव्य को आप दान, पुण्य, प्रसाद आदि में लगा दे। उस व्यक्ति को भगवती के सामने खड़ा करके उससे ' कहो कि वह अपने मन मे मनौती माने कि उनका भाया हुआ लडका लड़की या सम्बन्धी वापस आ जाएगा तो वह माता के प्रसाद के लिए इतना दे या अमुक वस्तु चढ़ायेगा। यह वह अपने मन मे ही संकल्प कर ले आपके न बताये। इसके बाद उस यन्त्र मन्त्र के भोजपत्र व कागज को आप उ व्यक्ति के वस्त्र में रखकर लपेट दीजिए और उसके अभिभावक से कहिए कि उस वस्त्र को घर जाकर किसी भारी वस्तु के नीचे दबा कर रख दे। जैसे कि बड़े बक्से के नीचे या घर मे चक्की या मसाले पीसने की सित हो तो उसके नीचे और वह यत्र इसी प्रकार रखा रहना चाहिए। अनुभव तो यह है कि वह भागा हुआ व्यक्ति बहुत शीघ्र इस यन्त्र के प्रभाव से घर वापस आ जाता है।
बशर्ते कि वह रोगी अशक्त न हो, बन्धन मे न हो और घर वापस आने के लिए स्वतन्त्र हो । इस यन्त्र का असर ४० दिन तक रहता है। यदि इतने दिन तक गया हुआ व्यक्ति वापस न आये तो यन्त्र को निकाल लेना चाहिए और वापस आ जाये तो भी यन्त्र को कपड़े मे से निकाल लेना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना होगा कि यन्त्र ते जाने वाला यन्त्र को इस प्रकार न फेक दे कि उसका अपमान हो और वह पैरों मे या गन्दी जगह मे न फेका जाए। यदि यन्त्र के द्वारा कार्य हो जाता है तो उस व्यक्ति को मनौती की राशि देने के लिए कहो। वह स्वयं ही देगा । उसका प्रसाद आदि वितरण कर दो। अक्सर होता यह है कि अभिभावक लोग एक से अधिक यंत्र और उपाय कराते हैं और भगोड़े के वापस आ जाने की खुशी मे सारे सकल्प और वायदे भूल जाते हैं तथा यत्र को लौटाना तक भूल जाते हैं। अपने यत्र को अपमान से बचाने के लिए तुमको इसका ध्यान रखना होगा कि उसे वापिस ले लिया जाए, काम होने पर भी और किसी कारणवश कार्य न हो तो भी, क्योकि यदि भागा हुआ व्यक्ति बन्धन में है, किसी ने रोक रखा है, किसी मजबूरी मे है, वापिस आने की राह नहीं है, रोगी है, अशक्त है, सूचना तक नहीं दे सकता है तो उसका वापिस आना संभव नहीं होता। ऐसी दशा मे प्रश्न लग्न द्वारा भगोड़े व्यक्ति की वर्तमान दशा का ज्ञान कर लेना चाहिए। यदि भगोड़े व्यक्ति का फोटो प्राप्त है तो उस को सामने रखकर उसका ध्यान करते हुए मंत्र जाप व अन्तर में त्राट्फ करते हुए उसका आकर्षण प्रयोग किया जा सकता है। किसी अन्य व्यक्ति का अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए आकर्षण वशीकरण प्रयोग करने के लिए मंत्र का जाप उस व्यक्ति या व्यक्तियो के नाम के साथ करना चाहिए। जैसे मान लो आप किसी रूप किशोर नाम के व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित या अनुकूल करना चाहते हैं तो आप इस प्रकार से यंत्र का जाप करेगे : ओ३म् क्लीं क्लीं रूपकिशोर मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा, और यदि रूपकिशोर को शान्ति बाई की ओर आकर्षित करने का प्रयोग करना है तो मंत्र जाप इस प्रकार से होगा : ॐ क्लीं वल रूपकिशोर शान्तिघाई वश्य कुरु कुरु स्वाहा। इसमें रूप किशोर को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कहो। बार-बार मंत्र जप करते हुए भावना व धारणा इसी प्रकार की करो। फोटो सामने रखने का कारण यह है कि उस व्यक्ति का ध्यान बराबर रहे। यदि तुमने उस व्यक्ति यानी रूपकिशोर को अच्छी तरह देखा है तो उसका स्वरूप ध्यान में अंतर नेत्र के सामने स्वयमेव आ जायेगा। देखा नहीं है तो फोटो जरूरी है। फोटो के ऊपर दृष्टि जमाकर ध्यान करने से त्राटक करने से और साथ-साथ जप करने से भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। मतलब यह कि ध्यान चाहे अन्तर मे करो या बाहर करो दोनो का ही फल होता है। यों फोटो न हो तो भी प्रयोग तो किया जा सकता है और फलदायक भी रहता है परन्तु फोटो होने से अधिक प्रभावशाली प्रयोग हो जाता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय इस मंत्र का सम्पुट लगा कर पाठ करने से देवी की प्रसन्नता शीघ्र होती है। किसी अनुष्ठान को करने के लिए सी पाठो की शतचण्डी या हजार पाठों की सहस्र चण्डी की जाती है या कराई जाती है। लक्ष चण्डी और अधिक पाठों की सहस्र लक्ष चण्डी भी कराई जाती है । सप्तशती दुर्गापाठ की पुस्तक है जिसमें ७०० श्लोक हैं इसी कारण नाम सप्तशती है। इसका प्रत्येक श्लोक ही मन्त्र है। कुछ श्लोको से अनुष्ठान भी किये कराये जाते हैं। यह श्लोक अधिक प्रभावशाली हैं। सम्पुट लगाकर पाठ करना हर एक पण्डित जानता है। फिर भी इस मन्त्र का सम्पुट लगाकर पाठ कैसे होता है अथवा इस मन्त्र का सम्पुट लगाकर मन्त्र श्लोको को कैसे जपा जाता है यह नीचे उदाहरण देकर समझाया गया है। यथा : ॐ क्लीं सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ सरधिके शरण्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते क्लीं नमः ।।
यह सम्पुट लगा कर श्लोक मन्त्र की एक आवृत्ति हुई । इस मन्त्र श्लोक का जाप करने से सब प्रकार का कल्याण प्रगति वैभव प्राप्ति होती है। आपत्ति विपत्ति से छुटकारा पाने शत्रुपीड़ा भय आदि से त्राण | पाने के लिए निम्न मन्त्र श्लोकों का जाप करने से तत्काल लाभ होता है। ॐ क्लीं शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे । सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तुते क्लीं नमः ।। अथवा ॐ क्लीं सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्व शक्ति समन्विते भयेभ्यस्त्राहिनो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते क्लीं नमः ॥ "रोग नाश के लिए निम्न मन्त्रों का जाप करने से तत्काल लाभ होता है। कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि आपका कोई निकट सम्बन्धी जीवन मृत्यु में लटक जाय तो आप नीचे लिखे मन्त्रों को या इनमें से किसी एक का निरन्तर जाप आरम्भ कर दीजिये। विश्वास रखिए संकट टल जायेगा, रोग का डाक्टरी या वैद्यक इलाज बद न करिये। यह आध्यात्मिक इलाज साथ में चालू रखिए। वे ही दवायें जो प्रभावहीन थीं आपके इस प्रयोग से लाभ करना आरम्भ कर देंगी।
इन मंत्रों का चमत्कारी प्रभाव मैंने अपने जीवन में कितनी ही बार देखा है। जैसा कि इन अध्यायों में ही कई बार वर्णन आया है कि में अपने गुरु की सेवा में ८ वर्ष तक रहा था। उन दिनो प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत्त होना कुंए से जल निकालना, स्नान करना, काली के मंदिर में सफाई करना पूजा करना आरती करना तथा सप्तशती का एक पाठ नित्य करना और प्रसाद पाकर अपनी नौकरी पर चले जाना, यह मेरा नित्य नियम थी। इस प्रकार सप्तशती के सभी श्लोकों की हजारों ही आवृत्तियाँ स्वयंमेव हो गयी थीं तथा विशेष मन्त्रों को अलग से भी कहता रहता था। यों विधिपूर्वक किसी श्लोक का पुरश्चरण नहीं किया घा ।कहने का तात्पर्य यह है कि इन मन्त्र श्लोकों की भी सहस्रों आवृत्तियाँ मेरे द्वारा हो चुकी थीं और उनमें कुछ न कुछ शक्ति आ ही गयी थी। कई बार मेरे -पौत्री के जीवन पर संकट आया, डाक्टरो ने भी निराशा सी पुत्र ही व्यक्त कर दी तब हारे को हरिनाम, मैंने इन्हीं मन्त्रों का जाप सम्पूर्ण मनः शक्ति के साथ किया और मां की कृपा से संकट टल गया था। हाँ उस समय में इन मंत्रो का जाप करते हुए साथ-साथ अपने हाथ से उनके शरीरों को स्पर्श द्वारा भी अपने शरीर की जीवनी शक्ति पहुंचा रहा था यानी अपने हाथो से उनके शरीर को पकड़े हुए जाप कर रहा था यह याद आता है। कहने का भावार्थ है कि इन या अन्य मन्त्रों का सफलतापूर्वक प्रयोग करने से पहले आपने इनको काफी संख्या में जप करके कुछ सिद्धता तक पहुँचाया हुआ है तो इनका प्रभाव तत्काल होता है और निश्चित रूप से होता है। रोगनाश के लिए सप्तशती के महामन्त्र श्लोक : ॐ क्लीं रोगान शेषान पहसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान सकतान भीष्टान। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणा त्वामाश्रिताहाश्रयतां प्रयान्ति क्लीं नमः । ॐ क्लीं जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते क्लीं नमः ।।
यदि किसी व्यक्ति का विवाह नहीं होता और उसको विवाह की इच्छा है गृहस्थ धर्म का पालन करने के लिए एक सुलक्षणा पत्नी की चाह है तो वह विश्वासपूर्वक निम्न मन्त्र श्लोक का जाप करें, केवल ४० दिन, और निश्चित है कि उसे मन चाही पत्नी की प्राप्ति होगी। जिन दिनों में अपने गुरुद्वारे पर माँ की साधना में निमग्न था उस समय मेरी पहली पत्नी का स्वर्गवास यक्ष्मा की भयंकर बीमारी के फलस्वरूप हो चुका था। उस जमाने के रिवाज के अनुसार मेरा पहला विवाह १४ वर्ष की छोटी आयु में ही हो. गया था। मेरे परिवार में मेरी माताजी, चाचीजी, ताईजी, मेरी पत्नी और | बाद में मेरी तीन छोटी बहिनें इसी रोग से ग्रसित होकर काल कवलित हुई। | उस समय यह राजरोग सचमुच ही असाध्य था । चिकित्सा विज्ञान ने इतनी प्रगति नहीं की थी और उस छोटे शहर में चिकित्सा सुविधाएँ भी आज की तरह उपलब्ध नहीं थीं तो जब में दुर्गा सप्तशती का पाठ नित्य करता और | उसमे जब वह श्लोक पाठ आता था उस समय अनायास ही मेरा ध्यान इस ओर चला जाता था और में भी इस श्लोक के अर्थ के साथ अपने को तदाकार लेता था कि मां मुझे भी संसार से तारने वाली सुलक्षणा पत्नी दे। वह लोक इस प्रकार से है-
ॐ क्लीं पत्नी मनोरमा, देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्ग ससार गरस्य कुलोद्भवाम् क्लीं नमः ।।
और सचमुच माँ ने मुझे जैसी ही पत्नी दी। वह अब भी मुझसे अधिक की पूजा पाठ व्रत उपवास करने वाली है और ससार सागर को पार करने बहुत सहायक रही है। इसके बाद मैंने इस मन्त्र श्लोक को कई व्यक्तियों को बताया और उनका विवाह मनोनुकूल शीघ्र हो गया था । कन्याओ को मनोनुकूल पति प्राप्त करने के लिए जो अनुष्ठानं व तन्त्र आज तक कितने ही व्यक्तियों को बताया और वे लोग सफल हुए हैं। हमें अपनी पुस्तक 'तन्त्रविधा' में लिख चुका हूं। तो अब सप्तशती के ही कुछ अन्य अनुभूत मन्त्र श्लोक लिखकर इस आठ को समाप्त करूँगा ।
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- आरोग्य तथा सौभाग्य के लिए :-
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि क्लीं नम ।।
- वाघा शांति के लिए :-
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् वलीं नमः ।।
- 'दारिद्रय दुःख नाश के लिए :-
दारिद्रय दुःख भय हारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदा चित्ता क्ली नमः ।.
- विद्या प्राप्ति के लिए :-
सकता जगत्सु त्वये कया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तन्न परा परोक्तिः ह्रीं नमः । ॥
- स्वप्न में उत्तर पाने के लिए :-
मम सिद्धमसिद्धिं वा 'स्वप्ने सर्व प्रदर्शय क्लीं नमः ।
- बघा शांति तथा धन पुत्रादि के लिए :-
ओ३म् क्लीं सर्वा बाघा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः क्लीं नमः ।।
ओ३म् क्ल देवि प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद प्रसीद मातर जगतो अखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य वर्तीीं नमः ।।
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