11 Mukhi Hanuman Kavach श्री एकादशमुख हनुमद् कवचम्
11 मुखी हनुमान कवच को एकादश मुखी हनुमत् कवचम् भी कहा जाता है. यह कवच सर्व संकट, कष्ट, और दुःख निवारण के लिए है. कहा जाता है कि जहां भी शियां धीमी पड़ जाती हैं, वहां भी हनुमान जी की शियां चमकार कट करती हैं चैत्र पूर्णिमा के दिन, जो राक्षस कालकार के जन्म का दिन था और जिसे हनुमान के जन्म के दिन के रूप में भी मनाया जाता है, हनुमान एकादशी रूप लेते हैं और राक्षस को उसकी गर्दन से खींचकर स्वर्ग में ले जाते हैं और उसका वध करते हैं
Shree Ekaadashamukh Hanumatkavacham |
लोपामुद्रोवाच
कुम्भोद्भव दयासिन्धो श्रुतं हनुमतः परम्।यन्त्रमंत्रादिकं सर्व त्वन्मुखोदीरितं मया ॥
दयां कुरुमयि प्राणनाथ वेदितुमुत्सहे ।
कवचं वायुपुत्रस्य एकादशमुखात्मनः ॥
इत्येवं वचनं श्रुत्वा प्रियायाः प्रश्रयान्वितम्।
वक्तुं प्रचक्रमे तत्र लोपामुद्रापितः प्रभुः ॥
हे कुंभोद्भव, हे देवसिंधो, मैंने तुम्हारे मुंह से बोले गए हनुमान के सभी परम यंत्र-मंत्रादि सुने। हे प्राणनाथ, दया करके मुझे वायुपुत्र के एकादशमुख कवच के बारे में बताएं। प्रिया के ऐसे विनीत वचन सुनकर लोपामुद्रा से प्रभु (अगस्त्य) बोले !
अगस्त्योवाच
नमस्कृत्वा रामदूतं हनुमन्तं महामतिम् ।ब्रह्मप्रोक्तं तु कवचं शृणु सुन्दरि सादरम् ॥
कवचं कामदं दिव्यं सर्वराक्षोनिर्बहणम् ॥
सनन्दनाय सुमहच्चतुराननभाषितम् ।
सर्वसम्पत्प्रदं पुण्यं मर्त्यानां मधुरस्वरे ॥
हे सुंदरि, रामदूत महामति हनुमान को नमस्कार करके ब्रह्मप्रोक्त कवच के बारे में आदरपूर्वक सुनो। प्रिये, चतुरानन ब्रह्मा ने सर्वकामनाओं को पूरा करने वाले, सर्वराक्षसों का निवारण करने वाले और सर्वसंपत्तियों को प्रदान करने वाले इस पुण्य कवच के बारे में सनंदनादि से मधुर वाणियों में बताया है।
विनियोग
ॐ अस्य श्री एकादश मुखि हनुमत्कवच मन्त्रस्यसनन्दन ऋषिः, प्रसन्नात्मा एकादशमुखि श्री हनुमान देवता,
अनुष्टुप छन्दः, वायु सुत बीजम् | मम सकल कार्यार्थे
प्रमुखतः मम प्राण शक्तिर्वर्द्धनार्थे जपे वा पाठे विनियोगः !!
हृदयादि न्यासः
ॐ स्फ्रें हृदयाय नमः !!ॐ स्फ्रें शिर से स्वाहा !!
ॐ स्फें शिखायै वौषट् !!
ॐ स्फ्रें कवचाय हुम् !!
ॐ स्फ्रें नेत्र त्रयाय वौषट् !!
ॐ स्फ्रें कवचाय हुम् !!
करन्यासः
ॐ स्फें बीज शक्तिधृक पातु शिरो में पवनात्मजा अंगुष्ठाभ्यां नमः !!ॐ क्रौं बीजात्मानथनयोः पातु मां वानरेश्वरः तर्जनीभ्यां नमः !!
ॐ क्षं बीज रुप कर्णो मे सीता शोक निवाशनः मध्यमाभ्यां नमः !!
ॐ ग्लौं बीज वाच्यो नासां में लक्ष्मण प्राण प्रदायकः अनामिकाभ्यां नमः !!
ॐ व बीजार्थश्च कण्ठं मे अक्षय क्षय कारकः कनिष्ठिकाभ्यां नमः !!
ॐ रां बीज वाच्यो हृदयं पातु में कपि नायकः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः !!
!! कवचारम्भः !!
वंबीजकीर्तितः पातु बाहू में चाञ्जनीसुतःह्रां बीजो राक्षसेन्द्रस्य दर्पहापातु चोदरम् ॥
ह्रसौं बीजमयो मध्यं पातु लङ्काविदाहकः ।
ह्रीं बीजधरो मां पातु गुह्यं देवेन्द्रवन्दितः ॥
रं बीजात्मा सदा पातु चोरुवारिधिलड्ङ्घनः ।
सुग्रीवसचिवः पातु जानुनी मे मनोजवः ॥
पादौ पादतले पातु द्रोणाचलधरो हरिः ।
आपदमस्तकंपातु रामदूतो महाबलः ।!
पूर्वे वानरवक्त्रो मामग्नेयां क्षत्रियान्कृत् ।
दक्षिणे नारसिंहस्तु नैर्ऋत्यां गणनायकः ॥
वारुण्यां दिशि मामव्यात्खगवक्त्रो हरीश्वरः ।
वायव्यां भैरवमुखः कौबेर्यां पातु मां सदा ॥
क्रोडास्यः पातु मां नित्यमी शान्यां रुद्ररूपधृक् ।
ऊर्ध्वं हयाननः पातु त्वध; शेषमुखस्तथा।!
रामास्यः पातु सर्वत्र सौम्यरूपी महाभुजः ।
इत्येवं रामदूतस्य कवचं प्रपठेत्सदा ॥
एकादशमुखस्यैतद् गोप्यंवैकीर्तितं मया ।
राक्षोघ्नं कामदं सौम्यं सर्वसम्पद्विधायकम् ॥
पुत्रदं धनंद चोग्रशत्रुसंघविमर्द्दनम् ।
स्वर्गापदर्गदं दिव्यं चिन्तितार्थप्रदं शुभम् ॥
एतत्कवचमज्ञात्वा मंत्रसिद्धिर्न जायते ।
एक वारं पठेन्नित्यं कवचं सिद्धिदं पुमान् ।!
!!अथ फलश्रुतिः!!
चत्वारिंशत्सहस्त्राणि पठेच्छुद्धात्मना नरः ।एक वारं पठेन्नित्यं कवचं सिद्धिदं पुमान् ।!
द्विवारं वा त्रिवारं वा पठन्नायुष्यमाप्नुयात् !
क्रमादेकादशादेवमावर्तनजपात्सुधीः ।!
वर्षान्ते दर्शनं साक्षाल्लभते नात्र संशयः
यंयं चिन्तयते चार्थं तंतं प्राप्नोति पुरुषः ।!
ब्रह्मोदीरितमेतद्धि तवाग्रे कथितं महत् !
इत्येव मुक्तत्वा कवचं महर्षिस्तूष्णी वभूवेन्दुमुखी निरीक्ष्य !
संहृष्ट चिताऽपि तदा तदीय पादौ ननामाऽति मुदास्व भर्तृ: !!
इन मंत्रों से रामदूत के कवच का सदा पाठ करना चाहिए । मैंने इस गोपनीय एकादशमुख कवच के बारे में तुम्हें बता दिया । यह राक्षसों का नाशक, फलदायक, सौम्य और सर्वसंपत्तिदायक है । यह पुत्र और धन देता है और उग्र शत्रुओं का दमन करता है। इससे स्वर्ग व मोक्ष की सिद्धि होती है। यह दिव्य और शुभ कवच समस्त इच्छित कामनाएं पूरी करता है । इस कवच के ज्ञान बिना मंत्र सिद्धि संभव नहीं । प्रत्येक नर को शुद्धात्म होकर इस कवच को चालीस हजार बार पढ़ना चाहिए। नित्य एक बार पढ़ने से यह समस्त सिद्धियां पूरी करता है ।
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