होली क्यों मनाई जाती है कुछ प्रमुख कथा हैं
होली भारत का बहुत ही लोकप्रिय और हर्षोल्लास से परिपूर्ण त्यौहार है। लोग चन्दन और गुलाल से होली खेलते हैं। प्रत्येक वर्ष मार्च माह के आरंभ में यह त्यौहार मनाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि होली के चटक रंग ऊर्जा, जीवंतता और आनंद के सूचक हैं। होली की पूर्व संध्या पर बड़ी मात्रा में होलिका दहन किया जाता है और लोग अग्नि की पूजा करते हैं।
Why Holi is celebrated? Some major stories are |
होली क्यों मनाई जाती है
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यक्श्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अभिमान में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यक्श्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यक्श्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने विष्णु की भक्ति नही छोड़ी। हिरण्यक्श्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यक्श्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन कहा जाता है। प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।
होली की कथा
बहुत समय पहले हिरण्यकश्यप नाम के राक्षस ने ब्रह्मा देव की तपस्या करके अमर होने का वरदान मांगा। जब बह्मा देव ने अमरता का वरदान देने से मना कर दिया, तो उसने मांगा कि उसे संसार में रहने वाला कोई भी जीव जन्तु, राक्षस, देवी, देवता और मनुष्य मार न पाए। साथ ही न वो दिन में मरे और न ही रात के समय, न तो पुथ्वी पर मरे और न ही आकाश में, न तो घर के अंदर और न ही बाहर और न ही शस्त्र से मरे और न ही अस्त्र से। हिरण्यकश्यप की तपस्या से ब्रह्मा देव खुश थे ही, इसलिए अमरता के एक वरदान के बदले उन्होंने ये सारे वरदान उसे दे दिए। इसे पाकर उसने हर जगह तबाही मचाना शुरू कर दिया। उससे मनुष्य ही नहीं, देवता भी परेशान रहने लगे। वह अपनी शक्ति से दुर्बलों को सताने लगा।
हिरण्यकश्यप से बचने के लिए लोगों को हिरण्यकश्यप की पूजा करनी पड़ती थी। भगवान की जगह जो भी हिरण्यकश्यप की पूजा करता वह उसे छाेड़ देता और जो उसे भगवान मानने से मना करता, उसे मरवा देता या अन्य सजा देता।समय के साथ राक्षस हिरण्यकश्यप का आंतक बढ़ता गया। कुछ वक्त बीतने पर हिरण्यकश्यप के घर विष्णु भगवान के परम भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई बार विष्णु भगवान की पूजा करने से मना किया और कहा, “मैं ही भगवान हूं। तुम मेरी आराधना करो। हर बार हिरण्यकश्यप की बात सुनकर प्रहलाद कहते, “मेरे सिर्फ एक ही भगवान हैं और वो भगवान विष्णु हैं। प्रहलाद की बातें सुनकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने की कई कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। भगवान विष्णु अपनी शक्ति से हर बार हिरण्यकश्यप के सारे प्रयास विफल कर देते थे।
एक दिन हिरण्यकश्यप के घर उसकी बहन होलिका आई। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उसके पास एक कंबल था, जिसे लपेटकर यदि वह आग में चली जाए, तो आग उसे नहीं जला सकती थी। हिरण्यकश्यप को अपने बेटे से परेशान देखकर होलिका ने कहा, “भैया, मैं अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाऊंगी, जिससे वह जल जाएगा और आपकी परेशानी खत्म हो जाएगी।” हिरण्यकश्यप ने इस योजना के लिए हामी भर दी। उसके बाद होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को बैठाकर आग पर बैठ गई। उसी वक्त भगवान की कृपा से हाेलिका का कम्बल प्रहलाद के ऊपर आ गया और होलिका जलकर खाक हो गई। प्रहलाद एक बार फिर प्रभु विष्णु की कृपा से बच गए।आग में जिस दिन होलिका जलकर भस्म हो गई थी, उसी दिन को आज तक लोग होलिका दहन के नाम से जानते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखते हुए खुशी में होलिका दहन के अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है।
होली की दूसरी कथा -
एक अन्य कथा शिव और पार्वती से जुड़ी है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो, लेकिन शिव उनकी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आए और उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी. शिव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव भस्म हो गये। तब शिव ने पार्वती को देखा और पार्वती की पूजा सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपने आधे मुख के रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार इस कथा के आधार पर होली की अग्नि में कामुक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर सच्चे प्रेम की जीत का जश्न मनाया जाता है।
होली की तीसरी कहानी -
आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले का जन्म गोकुल में हुआ है। इसलिए कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को मारने का आदेश दिया। इस आकाशवाणी से भयभीत कंस ने भी अपने भतीजे कृष्ण को मारने की योजना बनाई और इसके लिए उसने पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। पूतना चाहे तो कोई भी रूप धारण कर सकती थी। उसने सुन्दर रूप धारण करके अपने विषैले स्तनपान से अनेक शिशुओं को मार डाला। तब वह बाल कृष्ण के पास गई लेकिन कृष्ण को उसकी सच्चाई पता थी और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। वह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था, इसलिए पूतनावध के अवसर पर होली मनाई जाने लगी।
टिप्पणियाँ