विजया एकादशी - व्रत कथा ! महत्व ,Vijaya Ekadashi - fasting story! Importance

विजया एकादशी - व्रत कथा ! महत्व 

हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी मनाई जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति को जीत हासिल होती है. हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, विजया एकादशी का महात्म्य और कथा सुनने और पढ़ने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं कब है विजया एकादशी 2024? हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 06 मार्च दिन बुधवार को सुबह 06 बजकर 30 मिनट से होगी. यह तिथि 07 मार्च दिन गुरुवार को प्रात: 04 बजकर 13 मिनट तक मान्य रहेगी.

Vijaya Ekadashi - fasting story! Importance

विजया एकादशी का महत्व

हिंदू ग्रंथों के अनुसार, विजया एकादशी का उपवास न केवल एक प्राचीन अनुष्ठान माना जाता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए भी लाभकारी होता है। साथ ही, विजया शब्द का शाब्दिक अर्थ विजय है, जिसका अर्थ है कि विजया एकादशी का व्रत करने से कठिन परिस्थिति में सफलता और विजय प्राप्त होती है। यह सभी प्रकार की बाधाओं और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है।
इसके अलावा पद्म पुराण के अनुसार भगवान महादेव ने नारद को उपदेश दिया और कहा कि विजया एकादशी का व्रत करना बड़ा पुण्यदायी और फलदायी होता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त इस व्रत को करता है वह अपने पूर्वजों को नरक के जाल और दर्द से बचने और स्वर्ग जाने में मदद करता है। साथ ही यदि भक्त इस दिन दान-पुण्य और दान-पुण्य करते हैं तो उन्हें अपने पिछले और वर्तमान पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें फल की प्राप्ति भी होती है।

ऋषि के सुझाव के अनुसार

भगवान राम ने विजया एकादशी व्रत का पालन किया जिससे उन्हें एक समाधान मिला। उन्हें याद आया कि उनकी वानरों की सेना में नल और नील नाम के दो शानदार वानर हैं जिन्हें एक ऋषि ने श्राप दिया था कि वे जो कुछ भी पानी में फेंकेंगे वह डूबेगा नहीं बल्कि तैरेगा। इसलिए, भगवान राम के निर्देशानुसार, सेना ने शिलाखंड और बहुत सारे पत्थर एकत्र करना शुरू कर दिया और उनकी मदद से एक विशाल पुल का निर्माण किया और इस प्रकार वे सभी समुद्र पार करने में सक्षम हो गए।
उसके बाद, भगवान राम और रावण के बीच युद्ध हुआ, जहाँ राम द्वारा रावण का वध किया गया था। विजया एकादशी का व्रत करने से भगवान राम की विजय हुई। उस समय से, भक्तों ने विजया एकादशी व्रत का पालन करना शुरू कर दिया और पूरे समर्पण के साथ उपवास किया और इसके सफल समापन के लिए विजया एकादशी की व्रत कथा भी सुनी।

विजया एकादशी व्रत कथा

अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से एकादशी का महात्मय सुन कर आनन्द विभोर हो रहे हैं। जया एकादशी के महात्मय को जानने के बाद अर्जुन कहते हैं माधव फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महात्मय है आपसे मैं जानना चाहता हूं अत: कृपा करके इसके विषय में जो कथा है वह सुनाएं।
अर्जुन द्वारा अनुनय पूर्वक प्रश्न किये जाने पर श्री कृष्णचंद जी कहते हैं प्रिय अर्जुन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है। हे अर्जुन तुम मेरे प्रिय सखा हो अत: मैं इस व्रत की कथा तुमसे कह रहा हूं, आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई। तुमसे पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पाए हैं। तुम मेरे प्रिय हो इसलिए तुम मुझसे यह कथा सुनो।
त्रेतायुग की बात है श्री रामचन्द्र जी जो विष्णु के अंशावतार थे अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए सागर तट पर पहुंचे। सागर तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था। उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण ले गया है और माता इस समय आशोक वाटिका में हैं। जटायु द्वारा सीता का पता जानकर श्रीराम चन्द्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे परंतु सागर के जल जीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना प्रश्न बनकर खड़ा था।
भगवान श्री राम इस अवतार में मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में दुनियां के समझ उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे अत: आम मानव की भांति चिंतित हो गये। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि हे लक्ष्मण इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा अगर तुम्हारे पास कोई उपाय है तो बताओ। श्री रामचन्द्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले प्रभु आपसे तो कोई भी बात छिपी नहीं है आप स्वयं सर्वसामर्थवान है फिर भी मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास हैं हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए।
भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। श्री रामचन्द्र जी ने तब उक्त तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया।

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