नवरात्रि के नौवां दिन मां सिद्धिदात्री की कथा और स्वरूप,Navratri Ke Ninth Day -Maa Siddhidatri Kee Katha Aur Svaroop
नवरात्रि के नौवां दिन मां सिद्धिदात्री की कथा और स्वरूप
नवरात्रि का नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है. मां सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य है. मां का वाहन सिंह है और देवी कमल पर भी आसीन होती हैं. इनकी चार भुजाएं हैं. दाहिने ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा और बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है.
Navratri Ke Ninth Day -Maa Siddhidatri Kee Katha Aur Svaroop |
सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।
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मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
- मां लक्ष्मी की तरह कमल पर विराजमान हैं.
- चार भुजाओं वाली हैं.
- दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प और ऊपर वाले हाथ में शंख सुशोभित है.
- बाएं तरफ के नीचे वाले हाथ में गदा और ऊपर वाले हाथ में चक्र सुशोभित है.
- मां दुर्गा इस रूप में लाल वस्त्र धारण करती हैं.
- इनका वाहन सिंह है
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नवरात्रि के नौवां दिन मां सिद्धिदात्री की कथा
नवरात्रि के अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। ये मां दुर्गा की नौवीं शक्ति है। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। हिमाचल के नंदापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है।
पुराणों के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव माँ सिद्धिदात्री के घोर तप में लीन थे। तभी माँ सिद्धदात्री उनके कठिन तप से प्रसन्न होकर, भगवान शिव को आठ सिद्धियों की प्राप्ति का वरदान देती हैं। तभी इस वरदान के फलस्वरूप भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में बदल गया। जिसके बाद से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के नाम से जगत में विख्याति प्राप्त हुई। शिवजी का ये रूप पूरे ब्रम्हांड में पूजनीय हुआ। एक बार जब पृथ्वी पर अनेकों राक्षसों का जन्म होने लगा और ऋषि मुनियों व लोगो का पृथ्वी पर रहना मुश्किल हो गया था। इसी के साथ-साथ पृथ्वी पर महिषासुर नाम के राक्षस के अत्याचारों की अति हो गई, तब उस राक्षस के वध हेतु सभी देवतागण भगवान शिव तथा विष्णु जी से सहायता लेने पहुंचते हैं। महिषासुर के अंत के लिए सभी देवताओं ने मिलकर तेज उत्पन्न किया जिससे माँ सिद्धिदात्री की उत्पत्ति हुई। माँ सिद्धदात्री ने ही महिषासुर का वध किया। इसलिए वे महिषासुर मर्दनी भी कहलायी।
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