होलिका दहन (होली अग्नि) द्वारकाधीश मंदिर डोला,Holika Dahan (Holi Fire) Dwarkadhish Temple Dola

होलिका दहन (होली अग्नि) द्वारकाधीश मंदिर डोला

2024 में देशभर में 25 मार्च को होली मनाई जाएगी. होली का उत्सव आमतौर पर 2 दिनों तक चलता है - 24 मार्च को होलिका दहन है और 25 मार्च को रंगों के साथ मनाया जाएगा। लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में कुछ असाधारण परंपराएँ हैं। उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में लोगों का मानना ​​है कि होली का त्योहार भगवान कृष्ण से संबंधित है। होली उत्सव एक सप्ताह पहले 17 मार्च को शुरू होता है और 26 मार्च तक जारी रहता है। उत्सव 10 दिनों तक चलता है। इन 10 दिनों के दौरान मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, नंदगांव और बरसाना के ब्रज क्षेत्रों में होली की रस्में सबसे प्रसिद्ध मानी जाती हैं।
होलिका दहन (होली अग्नि) द्वारकाधीश मंदिर डोला

उत्सव 10 दिनों तक चलता-

खजूर        स्थानों      आयोजन
17 मार्च 2024 दिन रविवार को नंदगांव में फाग आमंत्रण उत्सव होगा और इसी दिन बरसाना के श्रीजी मंदिर में लड्डू होली होगी.
18 मार्च 2024 दिन सोमवार को बरसाना की मुख्य लट्ठमार होली खेली जाएगी.
19 मार्च 2024 दिन मंगलवार को नंदगांव के नंद भवन में लट्ठमार होली खेली जाएगी.
20 मार्च 2024 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर लट्ठमार होली खेली जाएगी.
21 मार्च 2024 दिन गुरुवार को वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में फूलवालों की होली खेली जाएगी.
21 मार्च 2024 ही को गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाएगी और इसी दिन मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान मंदिर और पूरे मथुरा में विशेष आयोजन होगा और होली भी मनाई जाएगी.
24 मार्च 2024 दिन रविवार को होलिका दहन (होली अग्नि), द्वारकाधीश मंदिर डोला और मथुरा विश्राम घाट, बांके बिहारी वृन्दावन में होलिका दहन किया जाएगा.
24 मार्च 2024 को ही फालैन का पंडा जलती होली से निकलेगा.
25 मार्च 2024 दिन सोमवार को द्वारकाधीश बृज में धुलंडी होली मनाई जाएगी. इसमें टेसू फूल/अबीर गुलाल होली और रंग-बिरंगे पानी की होली खेली जाएगी.
26 मार्च 2024 को दाऊजी हुरंगा होगा और 26 मार्च को ही जाव का हुरंगा होगा. इसी दिन मुखराई में चरकुला नृत्य होगा.

होलिका दहन समय

समय: पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 24 मार्च 2024 को प्रातः 09:54 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 25 मार्च 2024 को दोपहर 12:29 बजे

होलिका दहन का सही समय क्या है?

होलिका दहन की तिथि 24 मार्च यानी आज सुबह 9 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और समापन 25 मार्च यानी कल दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगी.

होलिका दहन में क्या जलाएं?

होलिका दहन से पूर्व सभी को हल्दी व चावल को पीसकर उबटन लगाकर उसे छुड़ाने के बाद होलिका की अग्नि में डालना चाहिए। इससे परिवार की दुख व दरिद्रता को दूर भगाया जा सकता है। बताया कि होलिका की अग्नि में लोगो को अपने ऊपर से काले तिल या नारियल को उल्टा उतारकर जलाने से भय, बाधाएं दूर होती है।

कैसे शुरू हुई ये परंपरा

कहा जाता है कि लट्ठमार होली की ये परंपरा राधारानी और श्रीकृष्‍ण के समय से चली आ रही है. नटखट कान्हा उस समय अपने सखाओं को साथ लेकर राधा और अन्य गोपियों के साथ होली खेलने और उन्हें सताने के लिए नंदगांव से बरसाना पहुंच जाया करते थे. परेशान होकर राधारानी और उनकी सखियां कन्‍हैया और उनके गोप-ग्‍वालों पर लाठियां बरसाती थीं. लाठियों के वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके सखा ढालों प्रयोग करते थे. तब से राधा और कृष्‍ण के भक्‍त आज भी उस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. हर साल बरसाने में बड़े स्‍तर पर लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता है.

होलिका दहन की कथा ( अग्निपरीक्षा )

एक बार एक राजा हिरण्यकश्यप था। उसने भगवान शिव की पूजा की और वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई नहीं मार सकता। भगवान शिव ने उसे वरदान दिया कि उसे कोई भी देवता, भगवान या मनुष्य नहीं मार सकता, उसे घर के अंदर या बाहर नहीं मारा जा सकता, उसे रात में या दिन में नहीं मारा जा सकता। यह वरदान मिलने के बाद, हिरण्यकश्यप ने सोचा कि यह अपरिहार्य है और वह अभिमान से भर गया। उसने सभी को केवल उसकी पूजा करने के लिए कहा, भगवान विष्णु या किसी अन्य देवता की नहीं। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसके पिता ने उसे भगवान विष्णु की पूजा न करने के लिए कहा लेकिन उसने जारी रखा। अब हिरण्यकश्यप इतना क्रोधित हो गया कि उसने अपने ही बेटे प्रह्लाद को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसने प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की लेकिन वह असफल रहा। एक दिन उसने अपनी बहन होलिका को इसके बारे में कुछ करने के लिए बुलाया। होलिका का शरीर अग्निरोधी था। वह चिता में बैठ गई और प्रह्लाद को अपनी गोद में ले लिया। प्रह्लाद जप करता रहा और जल्द ही होलिका आग में जल गई और प्रह्लाद बच गया। बाद में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया। इसीलिए होली को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।

द्वारकाधीश मंदिर डोला

मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में 40 दिनों तक चलने वाले होली उत्सव का आयोजन होता है. इस दौरान भक्त भगवान कृष्ण के साथ होली खेलते हैं. साल 2024 में 24 फ़रवरी को पिचकारी में टेशू के फूलों को भरकर भक्तों पर रंगों की बौछार की गई थी द्वारकाधीश मंदिर, कृष्ण को समर्पित एक हिंदू मंदिर है. इस मंदिर को जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. पुरातात्विक निष्कर्ष बताते हैं कि यह मंदिर 2,200-2,500 साल पुराना है. 15वीं-16वीं शताब्दी में इस मंदिर का विस्तार किया गया था
द्वारकाधीश मंदिर में होली से जुड़ी कुछ और बातें
  • मान्यताओं के मुताबिक, पुष्टिमार्ग संप्रदाय में पूर्णिमा के दिन होली का डांढा गढ़ा जाता है.
  • पड़वा के दिन से रसिया गायन शुरू होता है.
  • 25 फ़रवरी से 25 मार्च तक सुबह 10 बजे से 11 बजे के बीच राजभोग के दर्शन में बृज के प्रसिद्ध रसियाओं का गायन होता है.
  • मंदिर के प्रांगण में बड़े ढप को रखकर भगवान को होली के रसिया के साथ-साथ गुलाल और छोटी-छोटी पिचकारियों से रंग लगाया जाता है.

विश्राम घाट,

विश्राम घाट, यमुना नदी के किनारे बना एक प्रसिद्ध घाट है. यह स्नान और पूजा स्थल है. किंवदंतियों के मुताबिक, अपने मामा कंस का वध करने के बाद भगवान कृष्ण ने इसी घाट पर विश्राम किया था मथुरा विश्राम घाट पर साल 2024 में होलिका दहन 24 मार्च को हुआ था. होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया गया. 
मथुरा में विश्राम घाट पर होलिका दहन होता है. 24 मार्च, 2024 को विश्राम घाट और बांके बिहारी वृंदावन में होलिका दहन किया गया था. 25 मार्च, 2024 को द्वारकाधीश बृज में धुलंडी होली मनाई गई थी

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