अग्नि पुराण - सड़सठवाँ अध्याय ! Agni Purana - 67 Chapter !

अग्नि पुराण -  सड़सठवाँ  अध्याय ! Agni Purana - 67 Chapter !

अग्निपुराण सड़सठवाँ अध्याय जीर्णोद्धारविधि-कथन'का वर्णन ! , जीर्णोद्धारविधानं !

अग्नि पुराण -  सड़सठवाँ  अध्याय ! Agni Purana - 67 Chapter !

अग्नि पुराण -  सड़सठवाँ  अध्याय ! Agni Purana - 67 Chapter !

भगवानुवाच
जीर्णाद्धारविधिं वक्ष्ये भूषितां स्नपयेद्गुरुः(१) । १
अचलां विन्यसेद्गेहे अतिजीर्णां परित्यजेत् ॥ 

व्यङ्गां भग्नां च शैलाढ्यां न्यसेदन्यां च पूर्ववत् । २
संहारविधिना तत्र तत्त्वान् संहृत्य देशिकः ॥

सहस्रं नारसिंहेन हुत्वा तामुद्धरेद्गुरुः ।३
दारवीं दारयेद्वह्नौ शैलजां प्रक्षिपेज्जले ॥

धातुजां रत्नजां वापि अगाधे वा जलेऽम्बुधौ ।४
यानमारोप्य जीर्णाङ्गं छाद्य वस्त्रादिना नयेत् ॥

वादित्रैः प्रक्षिपेत्तोये गुरवे दक्षिणां ददेत् । ५
यत्प्रमाणा च यद्द्रव्या तन्मानां स्थापयेद्दिने ।

कूपवापीतडागादेर्जीर्णोद्धारे महाफलं ॥ ६ ॥
भूषिताञ्च यजेद्गुरुरिति घ, चिह्नितपुस्तकपाठः 

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये जीर्णोद्धारकथनं नाम सप्तषष्टितमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण -  सड़सठवाँ  अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 67 Chapter!-In Hindi

श्रीभगवान् कहते हैं- ब्रह्मन् ! अब मैं जीर्णोद्धारकी विधि बतलाता हूँ। आचार्य मूर्तिको विभूषित करके स्नान करावे। अत्यन्त जीर्ण, अङ्गहीन, भग्न तथा शिलामात्रावशिष्ट (विशेष चिह्नसे रहित) प्रतिमाका परित्याग करे। उसके स्थानपर पूर्ववत् देवगृहमें नवीन स्थिर-मूर्तिका न्यास करे। आचार्य वहाँपर (भूतशुद्धि-प्रकरणमें उक्त) संहारविधिसे सम्पूर्ण तत्त्वोंका संहार करे। गुरु नृसिंह-मन्त्रकी सहस्र आहुतियाँ देकर मूर्तिको उखाड़ दे। फिर दारुमयी मूर्तिको अग्निमें जला दे, प्रस्तरनिर्मित विसर्जित प्रतिमाको जलमें फेंक दे, धातुमयी या रत्नमयी मूर्ति हो तो उसे समुद्रकी अगाध जलराशिमें विसर्जित कर दे। जीर्णाङ्ग प्रतिमाको यानपर आरूढ़ कर, वस्त्र आदिसे आच्छादित करके, गाजे-बाजेके साथ ले जाय और जलमें छोड़ दे। फिर आचार्यको दक्षिणा दे। उसी दिन पूर्व प्रतिमाके प्रमाण तथा द्रव्यके अनुसार उसी प्रमाणकी मूर्ति स्थापित करे। इसी प्रकार कूप, वापी और तड़ाग. आदिका जीर्णोद्धार करनेसे भी महान् फलकी प्राप्ति होती है॥ १-६ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'जीर्णोद्धारविधि-कथन' नामक सड़सठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ६७ ॥

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