अग्नि पुराण - एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 147 Chapter !
अग्नि पुराण - एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय गुह्यकुब्जिका, नवा त्वरिता तथा दूतियोंके मन्त्र एवं न्यास-पूजन आदिका वर्णन ! त्वरितापूजादिः !अग्नि पुराण - एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 147 Chapter ! |
अग्नि पुराण - एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 147 Chapter !
ईश्वर उवाच ।
ओं गुह्यकुब्जिके हुं फट्मम सर्वोपद्रवान् यन्त्रमन्त्रतन्त्रचूर्णप्रयोगादिकं येन कृतं कारितं कुरुते करिष्यति कारयिष्यति तान् सर्वान् हन २ दंष्ट्राकरालिनि ह्रैं ह्रीं हुं गुह्यकुब्जिकायै द्वाहा । ह्रौं ओं खे(१) वों गुह्यकुब्जिकायै नमः
ह्रीं सर्वजनक्षोभणी जनानुकर्षिणी ततः ।१४७.००१
ओं खें ख्यां, सर्वजनवशङ्करी तथा स्याज्जनमोहिनी ॥१४७.००१
ओं ख्यौं सर्वजनस्तम्भनी ऐं खं ख्रां क्षोभणी तथा ।१४७.००२
टिप्पणी
१ क्रीं ख ख ये ख्रौं इति छ..
२ ओं ख ख्यां इति छ.. । ओं स्फूं इति ग..
३ ओं ख ख्रौं इति छ.. । ओं स्फैं इति झ..
ऐं त्रितत्त्वं वीजं श्रेष्ठङ्कुलं पञ्चाक्षरी तथा ॥१४७.००२
फं श्रीं क्षीं श्रीं ह्रीं क्षें वच्छे क्षे क्षे ह्रूं फठ्रीं नमः । ओं ह्रां क्षे वच्छे क्षे क्षो ह्रीं फट्नवेयं त्वरिता पुनर्ज्ञेयार्चिता जये
ह्रीं सिंहायेत्यासनं स्याथ्रीं क्षे हृदयमीरितं ।१४७.००३
वच्छेऽथ शिरसे स्वाहा त्वरितायाः शिवः स्मृतः ॥१४७.००३
क्षें ह्रीं शिखायै वौषट्स्याद्भवेत्क्षें कवचाय हुं ।१४७.००४
ह्रूं नेत्रत्रयाय वौषठ्रीमन्तञ्च फडन्तकं ॥१४७.००४
ह्रीं कारी खेचरी चण्डा छेदनी क्षोभणी क्रिया ।१४७.००५
क्षेमकारी च ह्रीं कारी फट्कारी नवशक्तयः ॥१४७.००५
अथ दूरीः प्रवक्ष्यामि पूज्या इन्द्रादिगाश्च ताः ।१४७.००६
ह्रीं नले बहुतुण्डे च खगे ह्रीं खेचरे ज्वलानि ज्वल ख खे छ छे शवविभीषणे च छे चण्डे छेदनि करालि ख खे छे क्षे खरहाङ्गी ह्रीम् । क्षे वक्षे कपिले ह क्षे ह्रूं क्रून्तेजोवति रौद्रि मातः ह्रीं फे वे फे फे वक्रे वरी फे । पुटि पुटि घोरे ह्रूं फट् ब्रह्मवेतालि मध्ये
गुह्याङ्गानि च तत्त्वानि त्वरितायाः पुनर्वदे ॥१४७.००६
ह्रौं ह्रूं हः हृदये प्रोक्तं हों हश्च शिरः स्मृतं ।१४७.००७
फां ज्वल ज्वलेति च शिखा वर्म इले ह्रं हुं हुं ॥१४७.००७
टिप्पणी
१ क्रीं कारो इति छ.. २ ह्रीं नले वज्रतुण्डे इति ज..
३ खगे क्रीमिति छ.. ४ शरविभीषणे इति ज..
५ क्रूं फटिति छ.. ६ क्रीं ह्रूं ह इति छ..
१ क्रीं कारो इति छ.. २ ह्रीं नले वज्रतुण्डे इति ज..
३ खगे क्रीमिति छ.. ४ शरविभीषणे इति ज..
५ क्रूं फटिति छ.. ६ क्रीं ह्रूं ह इति छ..
क्रों क्षूं श्रीं नेत्रमित्युक्तं क्षौं अस्त्रं वै ततश्च फठुं खे वच्छे क्षेः ह्रीं क्षें हुं फट्वा
हुं शिरश्चैव मध्ये स्यात्पूर्वादौ खे सदाशिवे ।१४७.००८
व ईशः छे मनोन्मानी मक्षे तार्क्षो ह्रीं च माधवः ॥१४७.००८
क्षें ब्रह्मा हुं तथादित्यो दारुणं फट्स्मृताः सदा ॥९॥१४७.००९
इत्याग्नेये महापुराणे युद्धजयार्णवे त्वरितापूजादिर्नाम सप्तचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 147 Chapter!-In Hindi
भगवान् महेश्वर कहते हैं- स्कन्द ! (अब मैं गुह्य-कुब्जिका, नवा त्वरिता, दूती तथा त्वरिताके गुह्याङ्ग एवं तत्त्वोंका वर्णन करूँगा-) 'ॐ गुह्यकुब्जिके हुं फट् मम सर्वोपद्रवान् यन्त्रमन्त्रतन्त्रचूर्णप्रयोगादिकं येन कृतं कारितं कुरुते करिष्यति कारयिष्यति तान् सर्वान् हन हन ग्रंष्ट्रा करालिनि हैं ह्रीं हूं गुह्यकुब्जिकायै स्वाहा हाँ, ॐ खें वों गुह्यकुब्जिकायै नमः।' (इस मन्त्रसे गुह्यकुब्जिकाका पूजन एवं जप करना चाहिये।) 'ह्रीं सर्वजनक्षोभणी जनानुकर्षिणी ॐ खें ख्यां ख्यां सर्वजनवशंकरी जनमोहनी, ॐ ख्याँ सर्वजनस्तम्भनी, ऐं खं खां क्षोभणी, ऐं त्रितत्त्वं बीजं श्रेष्ठं कुले पञ्चाक्षरी, फं श्रीं श्रीं ह्रीं क्षे वच्छे क्षे क्षे हूं फद, ह्रीं नमः। ॐ ह्रां वच्छे क्षे थें क्षों ह्रीं फट् ॥ १-४॥
यह 'नवा त्वरिता' बतायी गयी है। इसे बारंबार जानना (जपना) चाहिये। इसकी पूजा की जाय तो यह विजयदायिनी होती है। 'ह्रौं सिंहाय नमः।' इस मन्त्रसे आसनकी पूजा करके देवीको सिंहासन समर्पित करे। 'ह्रीं क्षे हृदयाय नमः ।' बोलकर हृदयका स्पर्श करे। 'वच्छे शिरसे स्वाहा।' बोलकर सिरका स्पर्श करे-इस प्रकार यह 'त्वरितामन्त्र' का शिरोन्यास बताया गया है। 'शें ह्रीं शिखायै वषट्।' ऐसा कहकर शिखाका स्पर्श करे। 'शें कवचाय हुम्।' कहकर दोनों भुजाओंका स्पर्श करे। 'हूं नेत्रत्रयाय वौषट्।' कहकर दोनों नेत्रोंका तथा ललाटके मध्यभागका स्पर्श करे। 'ह्रीं अस्त्राय फट्।' कहकर ताली बजाये। हींकारी, खेचरी, चण्डा, छेदनी, क्षोभणी, क्रिया, क्षेमकारी, हुंकारी तथा फट्ङ्कारी- ये नौ शक्तियाँ हैं ॥ ५-७ ३ ॥
अब दूतियोंका वर्णन करता हूँ। इन सबका पूर्व आदि दिशाओंमें पूजन करना चाहिये-'ह्रीं नले बहुतुण्डे च खगे ह्रीं खेचरे ग्वालिनि ज्वल ख खे छ च्छे शवविभीषणे चच्छे चण्डे छेदनि करालि ख खे खे खे खरहाङ्गी ह्रीं क्षे वक्षे कपिले ह क्षे हूं कूं तेजोवति रौत्रि मातः ह्रीं फे वे फे फे वक्त्रे वरी के पुटि पुटि घोरे हूं फट् ब्रह्मवेतालि मध्ये।' (यह दूती-मन्त्र है) ॥ ८-९ ॥
अब पुनः त्वरिताके गुह्याङ्गों तथा तत्त्वोंका वर्णन करता हूँ। 'ह्रौं हूं हः हृदयाय नमः।' इसका हृदयमें न्यास करे। 'ह्रीं हः शिरसे स्वाहा।' ऐसा कहकर सिरमें न्यास करे। 'फां ज्वल ज्वल शिखायै वषट्।' कहकर शिखामें, 'इले हूं हूं कवचाय हुम्।' कहकर दोनों भुजाओंमें 'क्रों धुं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।' बोलकर नेत्रोंमें तथा ललाटके मध्यभागमें न्यास करे। 'क्षौं अस्त्राय फट्।' कहकर दोनों हाथोंसे ताली बजाये अथवा 'हुं खे वच्छे क्षे ह्रीं शें हुं अस्त्राय फट्।' कहकर ताली बजानी चाहिये ॥ १०-१२ ॥
मध्यभागमें 'हुं स्वाहा।' लिखे तथा पूर्व आदि मनोन्मनी, मक्षे तार्क्षः, ह्रीं माधवः, शें ब्रह्मा, हुम् आदित्यः, दारुणं फट् 'का उल्लेख एवं पूजन करे। ये आठ दिशाओंमें पूजनीय देवता बताये गये हैं ॥ १३ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'त्वरिता-पूजा आदिकी विधिका वर्णन' नामक एक सौ सैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १४७
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