अग्नि पुराण - एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 139 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 139 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय साठ संवत्सरोंमें मुख्य-मुख्यके नाम एवं उनके फल-भेदका कथन ! षष्टिसंवत्सराः !

अग्नि पुराण - एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 139 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 139 Chapter !

ईश्वर उवाच
षष्ट्यब्दानां प्रवक्ष्यामि शुभाशुभमतः शृणु ।१३९.००१
प्रभवे यज्ञकर्माणि विभवे सुखिनो जनाः ॥१३९.००१

शुक्ले च सर्वशस्यानि प्रमोदेन प्रमोदिताः ।१३९.००२
प्रजापतौ प्रवृद्धिः स्यादङ्गिरा भोगवर्धनः ॥१३९.००२

श्रीमुखे वर्धते लोको भावे भावः प्रवर्धते ।१३९.००३
पूरणो पूरते शक्रो धाता सर्वौषधीकरः ॥१३९.००३

ईश्वरः क्षेम आरोग्यबहुधान्यसुभिक्षदः ।१३९.००४
प्रमाथी मध्यवर्षस्तु विक्रमे शस्यसम्पदः ॥१३९.००४

वृषो वृष्यति सर्वांश्च चित्रभानुश्च चित्रतां ।१३९.००५
स्वर्भानुः क्षेममारोग्यं तारणे जलदाः शुभाः ॥१३९.००५

पार्थिवे शस्यसम्पत्तिरतिवृष्टिस्तथा जयः ।१३९.००६
सर्वजित्युत्तमा वृष्टिः सर्वधारी सुभिक्षदः ॥१३९.००६

विरोधी जलदान् हन्ति विकृतश्च भयङ्करः ।१३९.००७
खरे भवेत्पुमान् वीरो नन्दने नन्दते प्रजा ॥१३९.००७

विषयः शत्रुहन्ता च शत्रुरोगादि मर्दयेत् ।१३९.००८
ज्वरार्तो मन्मथे लोको दुष्करे दुष्करा प्रजाः ॥१३९.००८

दुर्मुखे दुर्मुखो लोको हेमलम्बे न सम्पदः ।१३९.००९
संवत्सरो महादेवि विलम्बस्तु सुभिक्षदः ॥१३९.००९

विकारी शत्रुकोपाय विजये सर्वदा क्वचित् ।१३९.०१०
प्लवे प्लवन्ति तोयानि शोभने शुभकृत्प्रजा ॥१३९.०१०

राक्षसे निष्ठुरो लोको विविधन्धान्यमानने ।१३९.०११
सुवृष्टिः पिङ्गले क्वापि काले ह्युक्तो धनक्षयः ॥१३९.०११

सिद्धार्थे सिद्ध्यते सर्वं रौद्रे रौद्रं प्रवर्तते ।१३९.०१२
दुर्मतौ मध्यमा वृष्टिर्दुन्दुभिः क्षेमधान्यकृत् ॥१३९.०१२

स्रवन्ते रुधिरोद्गारी रक्ताक्षः क्रोधने जयः ।१३९.०१३
क्षये क्षीणधनो लोकः षष्टिसंवत्सराणि तु ॥१३९.०१३

इत्याग्नेये महापुराणे युद्धजयार्णवे षष्टिसंवत्सराणि नाम ऊनचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 139 Chapter!-In Hindi

भगवान् महेश्वर कहते हैं- पार्वति ! अब मैं साठ संवत्सरों (मेंसे कुछ) के शुभाशुभ फलको कहता हूँ, ध्यान देकर सुनो। 'प्रभव' संवत्सरमें यज्ञकर्मकी बहुलता होती है। 'विभव' में प्रजा सुखी होती है। 'शुक्ल' में समस्त धान्य प्रचुर मात्रामें उत्पन्न होते हैं। 'प्रमोद' से सभी प्रमुदित होते हैं। 'प्रजापति' नामक संवत्सरमें वृद्धि होती है। 'अङ्गिरा' संवत्सर भोगोंकी वृद्धि करनेवाला है। 'श्रीमुख' संवत्सरमें जनसंख्याकी वृद्धि होती है और 'भाव' संज्ञक संवत्सरमें प्राणियोंमें सद्भावकी वृद्धि होती है। 'युवा' संवत्सरमें मेघ प्रचुर वृष्टि करते हैं। 'धाता' संवत्सरमें समस्त ओषधियाँ बहुलतासे उत्पन्न होती हैं। 'ईश्वर' संवत्सरमें क्षेम और आरोग्यकी प्राप्ति होती है। 'बहुधान्य' में प्रचुर अन्न उत्पन्न होता है। 'प्रमाथी' वर्ष मध्यम होता है। 'विक्रम 'में अन्न-सम्पदाकी अधिकता होती है। 'वृष' संवत्सर सम्पूर्ण प्रजाओंका पोषण करता है। 'चित्रभानु' विचित्रता और 'सुभानु' कल्याण एवं आरोग्यको उपस्थित करता है। 'तारण' संवत्सरमें मेघ शुभकारक होते हैं ॥ १-५॥ 
'पार्थिव' में सस्य-सम्पत्ति, 'अव्यय' में अति वृष्टि, 'सर्वजित्' में उत्तम वृष्टि और 'सर्वधारी' नामक संवत्सरमें धान्यादिकी अधिकता होती है। 'विरोधी' मेघोंका नाश करता है अर्थात् अनावृष्टिकारक होता है। 'विकृति' भय प्रदान करनेवाला है। 'खर' नामक संवत्सर पुरुषोंमें शौर्यका संचार करता है। 'नन्दन' में प्रजा आनन्दित होती है। 'विजय' संवत्सर शत्रुनाशक और 'जय' रोगोंका मर्दन करनेवाला है। 'मन्मथ' में विश्व ज्वरसे पीड़ित होता है। 'दुष्कर' में प्रजा दुष्कर्ममें प्रवृत्त होती है। 'दुर्मुख' संवत्सरमें मनुष्य कटुभाषी हो जाते हैं। 'हेमलम्ब' से सम्पत्तिकी प्राप्ति होती है। महादेवि ! 'विलम्ब' नामक संवत्सरमें अन्नकी प्रचुरता होती है। 'विकारी' शत्रुओंको कुपित करता है और 'शार्वरी' कहीं-कहीं सर्वप्रदा होती है। 'प्लव' संवत्सरमें जलाशयोंमें बाढ़ आती है। 'शोभन' और 'शुभकृत्' में प्रजा संवत्सरके नामानुकूल गुणसे युक्त होती है ॥ ६-१०॥ 
राक्षस' वर्षमें लोक निष्ठुर हो जाता है। 'आनल' संवत्सरमें विविध धान्योंकी उत्पत्ति होती है। 'पिङ्गल' में कहीं-कहीं उत्तम वृष्टि और 'कालयुक्त' में धनहानि होती है। 'सिद्धार्थ' में सम्पूर्ण कार्योंकी सिद्धि होती है। 'रौद्र' वर्षमें विश्वमें रौद्रभावोंकी प्रवृत्ति होती है। 'दुर्मति' संवत्सरमें मध्यम वर्षा और 'दुन्दुभि' में मङ्गल एवं धन-धान्यकी उपलब्धि होती है। 'रुधिरोद्‌गारी' और 'रक्ताक्ष' नामक संवत्सर रक्तपान करनेवाले हैं। 'क्रोधन' वर्ष विजयप्रद है। 'क्षय' संवत्सरमें प्रजाका धन क्षीण होता है। इस प्रकार साठ संवत्सरों (मॅसे कुछ) का वर्णन किया गया है॥ ११-१३॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'साठ संवत्सरों (मेंसे कुछ) के नाम एवं उनके फल-भेदका कथन' नामक एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १३९

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