अग्नि पुराण - एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 136 Chapter !
एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय नक्षत्रोंके त्रिनाडी-चक्र या फणीश्वर-चक्रका वर्णन ! नक्षत्रचक्रं !अग्नि पुराण - एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 136 Chapter ! |
अग्नि पुराण - एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय ! Agni Purana - 136 Chapter !
ईश्वर उवाच
अथ चक्रं प्रवक्ष्यामि यात्रादौ च फलप्रदम् ।१३६.००१
अश्विन्यादौ लिखेच्चक्रं त्रिनाडीपरिभूषितं ॥१३६.००१
अश्विन्यार्द्रादिभिः पूर्वा ततश्चोत्तरफल्गुनी ।१३६.००२
हस्ता ज्येष्ठा तथा मूलं वारुणं चाप्यजैकपात् ॥१३६.००२
नाडीयं प्रथमा चान्या याम्यं मृगशिरस्तथा ।१३६.००३
पुष्यं भाग्यन्तथा चित्रा मैत्रञ्चाप्यं च वासवं ॥१३६.००३
अहिर्बुध्न्यं तृतीयाथ कृत्तिका रोहिणी ह्यहिः ।१३६.००४
चित्रा स्वाती विशाखा च श्रवणा रेवती च भं ॥१३६.००४
नाडीत्रितयसंजुष्टग्रहाज्ज्ञेयं शुभाशुभं ।१३६.००५
चक्रम्फणीश्वरन्तत्तु[१] त्रिनाडीपरिभूषितं ॥१३६.००५
रविभौमार्कराहुस्थमशुभं स्याच्छुभं परं ।१३६.००६
देशग्रामयुता भ्रातृभार्याद्या एकशः शुभाः ॥१३६.००६
अ, भ, कृ, रो, मृ, आ, पु, पु, अ, म, पू, उ, ह, चि, स्वा, वि, अ, ज्ये, मू, पू, उ, अ, ध, श, पू, उ, रे ।
अत्र सप्तविंशतिनक्षत्राणि ज्ञेयानि
इत्याग्नेये महापुराणे युद्धजयार्णवे नक्षत्रचक्रं नाम षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 136 Chapter!-In Hindi
महेश्वर कहते हैं- देवि ! अब मैं नक्षत्र सम्बन्धी त्रिनाडी-चक्रका वर्णन करूँगा, जो यात्रा आदिमें फलदायक होता है। अश्विनी आदि नक्षत्रोंमें तीन नाडियोंसे भूषित चक्र अङ्कित करे। पहले अश्विनी, आर्द्रा और पुनर्वसु अङ्कित करे; फिर उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा और पूर्वभाद्रपद-इन नक्षत्रोंको लिखे। यह प्रथम नाडी कही गयी है। दूसरी नाडी इस प्रकार है- भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढा, धनिष्ठा तथा उत्तराभाद्रपदा। तीसरी नाडीके नक्षत्र ये हैं- कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती ॥१-४॥
इन तीन नाडियोंके नक्षत्रोंद्वारा सेवित ग्रहके अनुसार शुभाशुभ फल जानना चाहिये। इस 'त्रिनाडी' नामक चक्रको 'फणीश्वर-चक्र' कहा गया है। इस चक्रगत नक्षत्रपर यदि सूर्य, मङ्गल, शनैश्चर एवं राहु हों तो वह अशुभ होता है। इनके सिवा, अन्य ग्रहोंद्वारा अधिष्ठित होनेपर वह नक्षत्र शुभ होता है। देश, ग्राम, भाई और भार्या आदि अपने नामके आदि अक्षरके अनुसार एक नाडीचक्रमें पड़ते हों तो वे शुभकारक होते हैं॥५-६ ॥
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा तथा रेवती-ये सत्ताईस नक्षत्र यहाँ जानने योग्य हैं॥ ७-८ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'नक्षत्रचक्र-वर्णन' नामक एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १३६ ॥
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