अग्नि पुराण - सौवाँ अध्याय ! Agni Purana - 100 Chapter !

अग्नि पुराण - सौवाँ अध्याय ! अग्नि पुराण - 100 अध्याय !

अग्नि पुराण सौवाँ विधि अध्याय  द्वार-प्रतिष्ठा कीका वर्णन ! द्वारप्रतिष्ठा!

अग्नि पुराण - सौवाँ अध्याय ! अग्नि पुराण - 100 अध्याय !

अग्नि पुराण - सौवाँ अध्याय ! अग्नि पुराण - 100 अध्याय !

ईश्वर उवाच
श्रीविधिप्रतिष्ठाया वक्ष्यामिप्यतः। 
द्वारङ्गानि कषायद्यैः संस्कृति श्येन न्यसेत् ॥ 1

मूलमध्याग्रभागेषु त्रयमात्मादिश्वरं।
विन्यासस्य सन्निवेष्यतः हुत्वा जप्त्वात्र रूपतः 2

द्वारादतो यजेदवस्तुन्तत्रैवनन्तमनत्रितः।
रत्नादिपञ्चकं न्यायस्य शांतिहोमं विधाय च ॥ 3

यवसिद्धार्थकाक्रान्ता ऋद्धिभवान्महातिलाः।
गोमृतसर्षप्रागेन्द्रमोहनाक्षालामृतः ॥ 4

रोचना रुग्वचो दूर्वा प्रसादधाश्च पोटलिं।
प्राकृत्योदुम्बरे बद्ध्वा रक्षार्थं प्रणवेन तु॥ 5

द्वारमुत्तरतः किञ्चिदाश्रितं सन्निवेशयेत्। 
आत्मतत्त्वमधो न्यस्य विद्यातत्त्वञ्च शखयोः ॥ 6

शिवमकादेशे च व्यापकं सर्वमंगले।
ततो महेशनाथं च विन्यासेनमूलमंत्रतः ॥ 7

श्रीतान्श्च तल्पादीन कृतयुक्तैः स्वनामभिः। 
जुहुयाच्छतम्र्धं वा द्विगुणं शक्तितोथ्वा 8

न्यूनादिदोषमोषार्थं हेतितो जुहुयाच्छतं
दिग्ब्लिम्पूर्ववधूत्व प्रदद्यद्ददक्षिणादिकं ॥ 9

इत्य अग्निये महापुराणे द्वारप्रतिष्ठा नाम शतमोऽध्यायः 

अग्नि पुराण - सौवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -अग्नि पुराण - 100 अध्याय !-हिन्दी में

भगवान शंकर कहते हैं- स्कन्द! अब मैं प्रवेश प्रतिष्ठा की विधि का वर्णन करता हूँ। द्वारके अङ्गभूत समायका कसैले जल आदिसे संस्कार करके उन्हें शायपर राखे। द्वारके मूल, मध्य और अग्रभागों में आत्मतत्त्व, विद्यातत्त्व और शिवतत्त्वका न्यास करके सन्निरोधिनी मुद्राद्वारा उनका निरोध करें। फिर तदनुरूप होम और जप करके, द्वारके अधोभागें अनंत देवताके मंत्रसे वास्तु-देवताकी पूजा करें। वहीं रत्नादि-पंचक स्थापित करके शांति-होम करे। ऋद्धि (ओषधिविशेष), ऋद्धि (ओषधिविशेष), ऋद्धिगुण, महतिल, गोमृत (गोपीचंदन), दरद (हिङ्गुल या सिंगरफ), नागेंद्र (नागकेसर), मोहिनी (त्रिपुरमाली या पोई), लक्ष्मणा (सफेद कटहरी) ), अमृता (गुरुचि), गोरोचन या लाल कमल, आर्ग्वध (अमलताश) और दूरवा - इन ओषधियोंकोके मंदिर के नीचे स्थापित और विशिष्ट पोटली द्वारके ऊपरी हिस्से में उनकी रक्षा के लिए छोड़े गए। जीविते समयव प्रण मंत्रा उच्चारण करे ॥ 1-5 ॥ 
दरवाजे को कुछ उत्तर दिशा का आश्रय लेकर स्थापित करना मन्दिर। द्वारके अधोभागमें आत्मतत्त्वका, दोनों बाजुओं में विद्यातत्त्वका, आकाशदेश (खाली स्थान) में तथा सम्पूर्ण द्वार-मण्डलमें सर्वसम्बन्ध शिवतत्त्वका न्यास करे। इसके बाद मूलमंत्र से महेशनाथ का नामांकन नामांकन। द्वारका आश्रय लेकर निवासवाले नंदी आदि द्वारपालोंके लिए 'नमः' पदसे युक्त उनके नाम मंत्रोंदेव सौ या अवकाश आहुति दे। या शक्ति हो तो इससे दूनी आहुति दे ॥ 6-8॥ 
नवीनतिरिक्तता-संबन्धी दोषसे, इनवेस्टमेंट प्राप्त करने के लिए अस्त्र-मंत्रसे सौ आहुति दे। तदनंतर पहले बताएं दिशा में बलि डेक दक्षिण आदि प्रदान करें ॥य॥ 
सोमशम्भुकी 'कर्मकाण्ड-क्रमावली' में इन मन्त्रोंके स्वरूप और बीज कुछ भिन्न रूपमें मिलते हैं। अतः उन्हें अविकल रूपमें यहाँ उद्भुत किया जाता है- ॐ आं आधारशक्तये नमः। ॐ ई कन्दराय नमः। ॐ ॐ नालाय नमः । ॐ ऋ धर्माय नमः। ॐ ऋ ज्ञानाय नमः । ॐ लूं वैराग्याय नमः। ॐ लूं ऐश्वर्याय नमः। ॐ क्रू अधर्माय नमः। ॐ श्रृं अज्ञानाय नमः। ॐ लूं अवैराग्याय नमः। ॐ अनैश्वर्याय नमः । ॐ अः ऊर्ध्वच्छदनाय नमः। ॐ हां पद्याय नमः। ॐ हं केसरेभ्यो नमः। ॐ हं कर्णिकायै नमः । ॐ हं पुष्करेभ्यो नमः । ॐ हं प्राम्ब्यै नमः । ॐ ह्रीं ज्ञानवत्यै नमः। ॐ हूं क्रियायै नमः। ॐ हं वामायै नमः। ॐ हं वागीश्वर्ये नमः। ॐ ह्रीं ज्वालिन्यै नमः । ॐ हों ज्येष्ठायै नमः । ॐ हाँ रौद्रयै नमः इति सर्वशक्तयः। ॐ गां गौर्यासनाय नमः। ॐ गों गौरीमूर्तये नमः। ॐ ह्रीं सः महागौरि रुद्रदयिते स्वाहा। - इति मूलमन्त्रः। गां हृदयाय नमः। गीं शिरसे स्वाहा। गूं शिखायै वषट्। मैं कवचाय हुम्। गाँ नेत्रेभ्यो वौषट्। गः अस्त्राय फट् । ॐ सर्ती ज्ञानशक्तये नमः । ॐ सूं क्रियाशक्तये नमः। लोकपालमन्त्रास्तु पूर्वोक्ताः। ऐं स्टैं सुभगायै नमः। ॐ स्हें ललितायै नमः। ॐ रहे कामिन्यै नमः । ॐ स्हाँ काममालिन्यै नमः। इत्येता गौरीसमानसख्यः ।
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें ' द्वार-प्रतिष्ठाकी विधिका वर्णन' नामक सौवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १००॥

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