विनायक चतुर्थी व्रत विधि व्रत कथा चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी Vinayaka Chaturthi fasting method fasting story
विनायक चतुर्थी व्रत विधि व्रत कथा
हिंदी पंचांग के अनुसार सावन अधिकमास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. जो कि भगवान गणेश को समर्पित है और गणपति को हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय भगवान का दर्जा दिया गया है. किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य से पहले भगवान गणेश का पूजन करने से कार्य में सफलता मिलती है. भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए लोग विनायक चतुर्थी के दिन उनका विधि-विधान से पूजन किया जाता है
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मोदक आदि से गणपति का पूजन करें तो विघ्न-बाधाओं का नाश होता है तथा कामनाओं की पूर्ति होती है।
Vinayaka Chaturthi fasting method fasting story |
विनायक चतुर्थी का महत्व
- हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं में सबसे प्रथम भगवान गणेश को पूजनीय माना जाता है।
- यह उत्सव भारत के महाराष्ट्र राज्य में बहुत उत्साह और जोश से मनाया जाता है।
- इस दिन व्रत करने से साधक सभी परेशानियों और कष्टों से मुक्त हो जाता है।
- पूरी आस्था और श्रद्धा से की गई गणेश जी की पूजा से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा करने से वैवाहिक और पारिवारिक जीवन हमेशा सूखी बना रहता है।
- महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का पालन करती हैं।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा इस प्रकार है – एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर बैठे कर चौपड़ खेल रहे थे। सवाल था कि इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा। तब भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित किए। और उसका एक पुतला बनाया। फिर पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, इसलिए तुम बताना कि दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’ उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती ने चौपड़ का खेल शुरू किया। उन्होंने तीन बार खेला और संयोग से तीनों बार माता पार्वती विजयी हुईं। खेल समाप्त होने के बाद जब उस बालक से हार-जीत का फैसला पूछा। तो उसने महादेव को विजयी बता दिया। यह सुन माता पार्वती क्रोधित हो गईं। और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। श्रापित होने पर बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी। तब माता ने कहा कि तुम श्री गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम्हारी सज़ा माफ़ हो जाएगी। एक वर्ष बाद उस स्थान पर कुछ नागकन्याएं आईं, तब उस बालक ने उनसे श्री गणेश व्रत की विधि पता करी। और 21 दिन तक लगातार गणेशजी का व्रत किया। उसकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। तब उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझे अपने पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर पहुंचना है।’ तब श्री गणेश ने बालक को वरदान दिया। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर गया और अपनी कथा भगवान शिव तथा माता पार्वती को सुनाई। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला यह व्रत एक परंपरा बन गया।
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विनायक चतुर्थी पूजा विधि
- इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। फिर व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थल में भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
- उसके बाद श्री गणेश की प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव करें। फिर विधि विधान से पूजा करें।
- पूजा में रोली, अक्षत, धूप, पान का पत्ता, फूल, नैवेद्य, फल इत्यादि अर्पित करें।
- अंत में श्री गणेश मंत्र का जाप करें। फिर भगवान गणेश जी की आरती करें।
- गणेश चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें। इस प्रकार विनायक चतुर्थी पूजा विधि संपन्न हो जाएगी।
- पूजा के बाद फल और मिठाई को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है. राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था. वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाता था. किसी कारणवश उसके बर्तन सही से आग में पकते नहीं थे और वे कच्चे रह जाते थे. अब मिट्टी के कच्चे बर्तनों के कारण उसकी आमदनी कम होने लगी क्योंकि उसके खरीदार कम मिलते थे. इस समस्या के समाधान के लिए वह एक पुजारी के पास गया. पुजारी ने कहा कि इसके लिए तुमको बर्तनों के साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना चाहिए. पुजारी की सलाह पर उसने अपने मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए आंवा में रखा और उसके साथ एक बालक को भी रख दिया. उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी. बालक के न मिलने से उसकी मां परेशान हो गई. उसने गणेश जी से उसकी कुशलता के लिए प्रार्थना की. उधर कुम्हार अगले दिन सुबह अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि सभी अच्छे से पक गए हैं और वह बालक भी जीवित था. उसे कुछ नहीं हुआ था. यह देखकर वह कुम्हार डर गया और राजा के दरबार में गया. उसने सारी बात बताई. फिर राजा ने उस बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया. तब उस महिला ने गणेश चतुर्थी व्रत के महात्म का वर्णन किया.
विनायक चतुर्थी व्रत के नियम
- यह व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होता है। और अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
- इस दिन व्रत करने वाले साधक पूरे दिन केवल फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
- अन्न, मांसाहारी भोजन, शराब आदि का सेवन वर्जित होता है।
- इस शुभ दिन पर पूजा करने के बाद गरीबों को दान अवश्य दें।
- भगवान गणेश को मोदक और लड्डू अत्यंत ही प्रिय होते हैं। इसलिए इस दिन उन्हें इसका भोग ज़रूर लगायें।
- गणेश जी की पूजा में दूर्वा ज़रूर अर्पित करें।
विनायकी गणेश चतुर्थी व्रत फल
हिन्दू मान्यतानुसार गणेश जी विघ्नहर्ता हैं, वह प्रथम पूजनीय देव हैं। विनायकी गणेश चतुर्थी का व्रत पूरे श्रद्धाभाव से रखा जाए तो वह प्रसन्न हो जाते है तथा व्यक्ति के सारे कष्ट हर लेते हैं। "विनायक" भगवान श्री गणेश का ही नाम है। गणेश जी की आराधना से व्यक्ति की सम्पूर्ण इच्छाएं पूरी हो जाती है तथा उसे बल- बुद्धि, ऋद्धि-सिद्ध, सुख-शांति आदि की प्राप्ति होती हैं।
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