Vijaya_Ekadashi_2024_कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी की कथा,Story of Vijaya Ekadashi of Krishna Paksha

Vijaya_Ekadashi_2024 कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी की कथा

हिंदू धर्म में, हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी मनाई जाती है. साल 2024 में यह व्रत 6 मार्च को शुरू होकर 7 मार्च को खत्म होगा. हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है. विजया एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. शास्त्रों में लिखा है कि इस व्रत को करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान, और गौ दान से ज़्यादा पुण्य मिलता है
Story of Vijaya Ekadashi of Krishna Paksha

(Vijaya_Ekadashi)विजया एकादशी व्रत कैसे करें

आज है विजया एकादशी, जानें भगवान विजया एकादशी की पूजा विधि भगवान विष्णु की पजा में सबसे पहले उन्हें गंगाजल से स्नान कराना चाहिए. इसके बाद फल, फूूल, चंदन, धूप, दीप, मिष्ठान आदि को अर्पित करना चाहिए. भगवान विष्णु को एकादशी की पूजा में उनकी प्रिय तुलसी दल अवश्य चढ़ाना चाहिए.
(Vijaya_Ekadashi)विजया एकादशी पूजा

विजया एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत करने वाल व्यक्ति को सूर्योदय के समय उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उन्हें विदा करें फिर भोजन करें।

(Vijaya_Ekadashi)विजया एकादशी पूजा का फल

विजया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजया पाता है। प्राचीन काल में कई राजे महाराजे इस व्रत के प्रभाव से अपनी निश्चित हार को जीत में बदल चके हैं।

(Vijaya_Ekadashi)विजया एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए

जल और अन्न के बीना नहीं रह सकते तो फलाहार कर सकते हैं और जल पी सकते हैं। बालक, वृद्ध और रोगी व्रत न करें। 3. चावल न बनाएं और न हीं खाएं।

विजया एकादशी कथा (Vijaya_Ekadashi)

अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से एकादशी का महात्मय सुन कर आनन्द विभोर हो रहे हैं। जया एकादशी के महात्मय को जानने के बाद अर्जुन कहते हैं माधव फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महात्मय है आपसे मैं जानना चाहता हूं अत: कृपा करके इसके विषय में जो कथा है वह सुनाएं।अर्जुन द्वारा अनुनय पूर्वक प्रश्न किये जाने पर श्री कृष्णचंद जी कहते हैं प्रिय अर्जुन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है। हे अर्जुन तुम मेरे प्रिय सखा हो अत: मैं इस व्रत की कथा तुमसे कह रहा हूं, आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई। तुमसे पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पाए हैं। तुम मेरे प्रिय हो इसलिए तुम मुझसे यह कथा सुनो। त्रेतायुग की बात है श्री रामचन्द्र जी जो विष्णु के अंशावतार थे अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए सागर तट पर पहुंचे। सागर तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था। उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण ले गया है और माता इस समय आशोक वाटिका में हैं। जटायु द्वारा सीता का पता जानकर श्रीराम चन्द्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे परंतु सागर के जल जीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना प्रश्न बनकर खड़ा था। भगवान श्री राम इस अवतार में मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में दुनियां के समझ उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे अत: आम मानव की भांति चिंतित हो गये। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि हे लक्ष्मण इस सागर को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा अगर तुम्हारे पास कोई उपाय है तो बताओ। श्री रामचन्द्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले प्रभु आपसे तो कोई भी बात छिपी नहीं है आप स्वयं सर्वसामर्थवान है फिर भी मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास हैं हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए। भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। श्री रामचन्द्र जी ने तब उक्त तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया।

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