Vijaya_Ekadashi_पद्म पुराण और स्कंद पुराण में विजया एकादशी का महत्व पूजा अनुष्ठान ,Importance of Vijaya Ekadashi in Padma Purana and Skanda Purana Worship Rituals
पद्म पुराण और स्कंद पुराण में विजया एकादशी का महत्व पूजा अनुष्ठान
विजया एकादशी 2024 की तिथि
हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी मनाई जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति को जीत हासिल होती है. हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, विजया एकादशी का महात्म्य और कथा सुनने और पढ़ने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं कब है विजया एकादशी 2024? हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 06 मार्च दिन बुधवार को सुबह 06 बजकर 30 मिनट से होगी. यह तिथि 07 मार्च दिन गुरुवार को प्रात: 04 बजकर 13 मिनट तक मान्य रहेगी.
Importance of Vijaya Ekadashi in Padma Purana and Skanda Purana |
पद्म पुराण और स्कंद पुराण में विजया एकादशी का महत्व
भगवान् विष्णुको विजया एकादशी तिथि, गंगाजल, काशीपुरी, तुलसी, ओंवलेका फल, भागवत शास्त्र, रामायण, द्वारकापुरी, चमेलीका फूल, एकादशीकी रातमें जागरण तथा कीर्तन ओर गायन- ये अधिक प्रिय है। कलिकालमें जिसके घरमे सदा गोपीचन्दनकी मृत्तिका विद्यमान है वरहो श्रीकृष्णसहित ह्वारकापुरी स्थित है। कृतघ्न, गोघाती तथा समस्त पापोंका आचरण करनेवाला मनुष्य भी गोपीचन्दनके सम्पर्कसे तत्काल पवित्र हो जाता है। जो किसी वैष्णवको गोपीचन्दनका एक टुकड़ा देता है वह अपने कुलका उद्धार करता है। जिसके मन्दिरमें द्वारकाकी तुलसी है, उससे यमराज भी डरते हैं। द्वारकाकी मृत्तिका, तुलसी तथा श्रीकृष्णका कीर्तन सौ करोड़ यज्ञोंसे भी अधिक पुण्यदायक बताया गया है। मैंने सब शास्त्रों और पुराणोंका बार-बार अवलोकन करके देख लिया, मुझे द्वारकाके समान दूसरी कोई पुरी नहीं दिखायी दी। जिसने द्वारकाकी यात्रा और श्रीकृष्णका कीर्तन किया है, उसने हजारों तीर्थोंमें स्नान और करोड़ों यज्ञोंका यजन कर लिया है। जिन मनुष्योंने द्वारकापुरीमें जाकर श्रीकृष्णके मुखारविन्दका दर्शन नहीं किया, वे मानव पंगु हैं, जन्मके ही अन्धे हैं। जिन्होंने द्वारकापुरीमें जाकर एकादशीकी रात्रिमें भक्तिपूर्वक जागरण और नृत्य किया है, वे कृतार्थ और धन्य हैं। जो श्रीकृष्णपुरी द्वारकामें जाकर गोमतीके तटपर पिण्डदान और यथाशक्ति दान करता है, उसके पितर तृप्त हो जाते हैं। जो द्वारकापुरीमें गया है, उस मनुष्यको सौ जन्मोंतक प्रेत और पिशाचकी योनि नहीं मिलती। जो मनुष्य वैशाखमासमें हिंडोलेपर बैठे हुए श्रीकृष्णका दर्शन करते हैं, उनके पुत्र, पौत्र, प्रपितामह, श्वशुर, दास, भृत्य और पशु भी भगवान् विष्णुके साथ क्रीड़ा करते हैं। जो मानव कलिकालमें श्रीकृष्णके समीप द्वादशीको उपवास करते हैं, उनमें तथा श्रीकृष्णमें मैं कोई अन्तर नहीं देखता। श्रीकृष्णके समीप द्वादशी तिथिके समान कोई दिन नहीं है। श्रीकृष्णके निकट सभी तिथियाँ युगादि तिथियोंके समान पुण्यदायिनी होती हैं। कलियुगमें अधिक पुण्यात्मा पुरुषोंको द्वारकापुरीका सेवन करना चाहिये। कलिमें श्रीकृष्णकी कृपाके बिना कोई द्वारकापुरीमें नहीं जा सकता। श्रीकृष्णका दर्शन करनेके लिये शिव आदि देवता सदा द्वारकापुरी जाते हैं। जो 'कृष्ण-कृष्ण' का कीर्तन करता है, उसका जीवन सफल है, उसको चेष्टा सफल है ओर उसीकी वाणी सफल है । द्वारकापुरीमें अपने पुत्रको देखकर नरकसे दूटे हुए पितर स्वरगमें स्थित होकर हँसते, गाते ओर उकछछलते हेँ। मनुष्योंका जो गुप्त पातक है, उसे गोमती अपना स्मरण ओर कीर्तन करनेसे भी नष्ट कर देती है, फिर उसको स्तुति की जाय, तब तो कहना ही क्या है? जो कलिकालमें बरद्धिनी एकादशीको उपवास करते है, वे दुर्लभ हैँ । द्वारका, गया ओर वद्धिनी एकादशी- इन तीनोंका पुण्यफलं एक- सा बताया गया है। वद्धिनी एकादशी सबसे बटढकर ठहै। क्योकि उस दिन उपवास करके द्रादशीको पारण करनेपर भगवान् विष्णुका परम पद अनायास ही प्राप्त हो जाता है। वरद्धिनी एकादशीको उपवास करनेसे घरमे ही तीर्थसेवन, तपस्याका अनुष्ठान ओर मोक्ष प्राप्त हो जाते हें। वद्धिनी एकादशी, द्वारकापुरी, गंगा, गया, गोविन्दजीका दर्शन, गोमती, गोकुल, गीता ओर गोपीचन्दन-ये दुर्लभ हैँ ।९
जो मनुष्य भगवान् श्रीकृष्णमें मन लगाकर इस प्रसंगको सुनता है, वह एक हजार अश्वमेधयक्ञका फल पाता है। जो एकादशीकी रातमें जागरण करते समय भगवान् केशवके इस माहात्म्यको सुनँगे, वे सब पापोंसे मुक्त हो वैकुण्ठधामको जार्यँगे। जो मानव इसे प्रतिदिन भक्तिपूर्वक पदेगे अथवा सुनगे, वे तुलादानका फल पा्वेगे, एकादशीको जो थोड़ा भी दान किया जाता है, वह कोरिगुना होता है, सा जानना चाहिये ।
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विजया एकादशी व्रत और पूजा अनुष्ठान
- एकादशी के दिन सात प्रकार के अनाज वेदी या सीमा के भीतर रखें।
- इसके भीतर सोना, चांदी, तांबा और मिट्टी से बना बर्तन या कलश रखें।
- सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
- पंच पल्लव कलश या कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
- धूप, चंदन, दीया, फूल, फल और तुलसी से श्रीहरि की पूजा करें।
- व्रत करने के साथ-साथ कथा भी सुनें।
- श्रीहरि के नाम पर जगराता करें और उनकी पूजा करें।
- बारहवें दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और पात्र या कलश दान करें।
- इसके बाद अपना व्रत खोलें.
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