मंगलवार-व्रत माहात्म्य और विधि मंगलवार- व्रत कथा ,Tuesday-Vrat importance and method Tuesday-Vrat story

मंगलवार-व्रत माहात्म्य और विधि मंगलवार- व्रत कथा

मंगलवार के दिन हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप किया जाता है-

  • ओम नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा 
  • ऊँ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिमुखाय गरुडानना, मं मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा
  • ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहारणाय स्वाहा
  • ॐ हं हनुमते नम:। ' 
बजरंगबली का ये चमत्कारी मंत्र वाणी से संबंधित कार्य में सफलता पाने के लिए किया जाता है. जैसे वाद-विवाद, न्यायालय आदि के काम में कोई बाधा आ रही है तो इस मंत्र का मंगलवार को विधि पूर्वक जाप करें. 'ॐ नमो भगवते हनुमते नम:।
Tuesday-Vrat importance and method Tuesday-Vrat story

मंगलवार-व्रत माहात्म्य और विधि

सूतजी बोले- हे ब्राह्मणों, जब सृष्टि के आरम्भ में सर्वज्ञ दयालु और सर्व-समर्थ महादेवजी सब लोगों के उपकारार्थ वारों की कल्पना की तो उन सबके अलग-अलग देवता भी निश्चित किये। इनमें उन सर्वसमर्थ महादेव ने आलस्य और पाप की निवृत्ति के लिये भगवान् विष्णु का मंगल नामक वार बनाया। मंगल व्याधियों का निवारण करते हैं। आलस्य और पाप को दूर करते हैं, यही इनका फल है। देव-पूजन की पद्धति से जो इनकी आराधना एवं पूजा करता है उनके सब मनोरथ पूर्ण होते हैं। मंगलवार को रोगों की शान्ति के लिये काली आदि की पूजा करें तथा उड़द मूँग एवं अरहर से युक्त अन्न से ब्राह्मणों को भोजन करावें। ऐसा करने से वह आरोग्य आदि फल का भागी होता है। साधारण मंगलवार का व्रत करने में एक ही समय गेहूँ और गुड़ का भोजन उत्तम कहा गया है। इक्कीस सप्ताह तक मंगलवार का व्रत करने से उपासक मंगल के दोषों से निवृत्त हो जाता है और यदि उसे रक्त विकार होता है तो वह दूर होकर उसके शरीर में बल की वृद्धि होती है। उसके सारे विघ्न दूर हो जाते हैं और वह राज-सम्मान का भी लाभ करता है। मंगल के व्रती को उचित है कि वह लाल रंग के पुष्प देवता पर चढ़ावे और लाल ही वस्त्र धारण करें। मुख्यतः इस दिन हनुमान्जी की पूजा करें और निम्नलिखित मंगलवार की कथा सुनें।

मंगलवार- व्रत कथा

पूर्वकाल की बात है कि एक ब्राह्मण तथा एक ब्राह्मणी थे जिसके कोई सन्तान न थी। इस कारण वे दिन-रात भगवान् से प्रार्थना करते थे कि उन्हें कोई पुत्र हो जाय। पुत्र की कामना करने वाला वह ब्राह्मण तो वन में रहकर हनुमानजी की आराधना किया करता था। उसकी स्त्री घर में ही रहकर पुत्र के लिए हनुमान्जी की पूजा करती थी और हर मंगलवार को व्रत करके हनुमान्जी को भोग लगाने के पश्चात् ही भोजन करती थी। परन्तु एक दिन कोई ऐसा व्रत पड़ गया जिसमें ब्राह्मणी को भोजन नहीं बनाना था, इस कारण उसने न भोजन बनाया और न ही भोग लगाया, जिसके कारण वह कुछ खा-पी भी न सकी। उसने मन में यह प्रण किया कि छः दिन के बाद जब मंगलवार आयेगा तब भोजन निश्चय करूँगी। वह छः दिन तक लगातार व्रत कर गई। जब मंगलवार आया और ज्योंही वह कुछ करने को उठी कि त्योंही मूर्च्छा आ गयी और वह अचेत होकर गिर पड़ी। उसी समय हनुमान्जी ने ब्राह्मणी को दर्शन दिया और कहने लगे - हे ब्राह्मणी ! तेरी पूजा सफल हुई, मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ और तुझे यह सुन्दर बालक देता हूँ, जो हर समय तुम्हारी सेवा करेगा तथा जिसके कामों से तुझे सर्वदा यश मिलता रहेगा। ऐसा कह हनुमान्जी ने एक खूब सुन्दर पुत्र उसे प्रदान किया और अन्तर्धान हो गये।
ब्राह्मणी पुत्र पाकर अति प्रसन्न हो अपने काम में लग गयी। उसी समय ब्राह्मण भी वन से पूजा करके आये और उन्होंने बालक को देखकर ब्राह्मणी से उसके विषय में पूछा कि यह बालक कौन है तथा किसका पुत्र है। ब्राह्मणी ने कहा- यह अपना ही पुत्र है। ब्राह्मण बहुत क्रुद्ध हुआ और स्त्री को कुलटा, पापिनी इत्यादि कहकर लांछित करने लगा। तब ब्राह्मणी ब्राह्मण को क्रोध करते देखकर समझाने लगी, परन्तु वह नहीं समझा। उस बालक को अपने साथ वन में ले गया तथा धोखे से उसे कुएँ में धक्का - देकर गिरा दिया और घर चला आया। पुत्र मंगल को स्वामी के साथ न देखकर ब्राह्मणी पूछने लगी- मंगल कहाँ है? वह बोला- मैं क्या जानूँ, परन्तु माँ ने ज्योंही मंगल कहकर आवाज दिया कि त्योंही मंगल एक तरफ से हँसता हुआ चला आया। इस प्रकार ब्राह्मण ने कई बार मंगल को मारना चाहा, परन्तु वह बालक तो हनुमान्जी का था, अतः हमेशा ही बचता रहा और ब्राह्मणी के आवाज देने पर वह बालक तुरंत उपस्थित हो जाता, जिससे वह ब्राह्मण अत्यन्त आश्चर्य में पड़ा था। किसी समय वह ब्राह्मण सो रहा था कि रात्रि में उसे हनुमान्जी ने दर्शन दिया और कहा कि- हे ब्राह्मणदेव! तुम अपनी स्त्री पर तथा बालक मगल पर किसी भी प्रकार का संदेह मत करो, क्योंकि वह बालक मेरा है। तुम्हारी स्त्री मेरी भक्ति बड़ी श्रद्धा से करती है इसलिए मैंने उसे पुत्र दिया है। पश्चात् नींद खुलने पर उस ब्राह्मण ने अपनी स्त्री से भला-बुरा कहने के कारण क्षमा माँगा तथा पुत्र मंगल को बहुत प्यार किया और प्रसन्नता से श्रीहनुमान्जी का पूजन करने लगा। इस प्रकार जो भी मनुष्य इस कथा को पढ़ता, सुनता या मंगलवार का व्रत करता है उसके समस्त कष्ट हनुमान्जी की कृपा से दूर होते हैं और वह मनोवांछित फल पाता है

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