श्री हनुमान मूल मंत्र हनुमान जी का ‌‌‌सूर्य को फल समझना, Shri Hanuman Mool Mantra: Considering the sun as the fruit of Hanuman ji

श्री हनुमान मूल मंत्र हनुमान जी का ‌‌‌सूर्य को फल समझना

श्री हनुमान मूल मंत्र:

ॐ ऐं ह्रीं हनुमते श्री रामदूताय नमः॥
मंत्र का अर्थ: सभी लोगों के संकटों को करने वाले, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के दूत वीर हनुमान को हमारा नमस्कार है। वे हम सभी की रक्षा करें और संकटों से मुक्ति प्रदान करें।
मंत्र का लाभ:
इस मंत्र से मन का भय दूर हो आत्मविश्वास और भक्ति की प्राप्ति होती है।
Shri Hanuman Mool Mantra: Considering the sun as the fruit of Hanuman ji

रुद्र हनुमान मंत्र:

ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय।
सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा॥

मंत्र का अर्थ:
हे हनुमान आप रूद्र के अवतार हो और रामदूत हो। हमारे सर्व शत्रु का नाश कीजिए, आपकी कृपा दृष्टि से सर्व रोगों का हरण कीजिए। हे राम दूत हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आपकी कृपा से हमारे सभी कार्य में सफलता और कीर्ति प्राप्त हो। हे संकटमोचन देव हम आपको प्रणाम करते हैं।
मंत्र का लाभ:
इस मंत्र के पठन से, मनुष्य को सर्व रोगों से मुक्ति मिलती है तथा सभी शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है। हनुमान बुरे वक्त की मार से रक्षा कर, समय को अनुकूल, सुख-समृद्ध भी कर देते हैं।

हनुमान गायत्री मंत्र:

ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्॥
मंत्र का अर्थ:
श्री अंजना और पवन देव के पुत्र, विशेष बुद्धि के धारक श्री वीर हनुमान हम पर आपकी दया दृष्टि बनाए रखें एवं हमें अपनी शरण प्रदान करें।
मंत्र का लाभ:
इस मंत्र के जाप से भय का नाश, मानसिक शांति मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ता है।

हनुमान जी का ‌‌‌सूर्य को फल समझना

‌‌‌हनुमान जी के बालय अवस्था की बात है एक दिन हनुमान जी की माता जी उन्हे आश्रम मे अकेला छोडकर चली जाती है । भगवान हनुमान जी बहुत छोटे थे उन्हे पता नही था की फल कहा लगते है उन्हें बस ‌‌‌इतना पता था की सेव लाल रग का होता है । और जब हनुमान जी को भुख लगती है तो  ‌‌‌वे उगते हुए ‌‌‌सूर्य को ‌‌‌खाने के लिये पवन की ‌‌‌गति से भी तेज उडकर उसे पकडने के लिये के चल पडे । सूर्य की तेज अग्नि उनका ‌‌‌कुछ न बिगाड सकी । ‌‌‌वे ‌‌‌जल्दी से ‌‌‌सूर्य के पास पहुचना चाहते थे । जब हनुमान जी ‌‌‌सूर्य को पकडने वाले  थे तभी राहु ‌‌‌सूर्य को ग्रहण लगाने वाला था जब राहु ने ‌‌‌सूर्य को पडने वाले थे तो वहा ‌‌‌पर हनुमान को देखकर भयभीत होंकर इंद्र के पास जा ‌‌‌पहुंचा और उनसे कहा की देव आपने आज के दिन ही ‌‌‌सूर्य को ग्रहण लगाने के लिये मुझे कहा था  ।पर वहा पर तो एक ओर राहु है जो ‌‌‌सूर्य को ‌‌‌खाने के लिये चला आ रहा है ।
राहु की बात सुनकर इंद्र ‌‌‌देखने के लिये चल पडे और जब राहु ने हनुमान जी को ‌‌‌सूर्य को खाने के लिये रोकने लगे तो हनुमान जी ने ‌‌‌सूर्य को छोड कर राहू को मारने के लिये ‌‌‌चल पडे । ‌‌‌राहु हार कर इंद्र को साहयता के लिये बुलाता है ।इंद्र हनुमान से कहते है की बालक तुम ‌‌‌सूर्य को क्यो ‌‌‌खाना चाहते हो तुम यहा से चले जाओ वरना तुम्हारे लिये ‌‌‌अच्छा नही होगा । पर भगवान हनुमान जी ‌‌‌ने इंद्र की एक बात नही सुनी वह ‌‌‌जल्दी से ‌‌‌जल्दी अपनी भुख ‌‌‌मिटाना चाहते थे जब इंद्र की बातो का हनुमान पर कोई प्रभाव नही पडता हुआ दिखा तो इंद्र ने वज्रायुध हनुमान पर प्रहार कर दिया जिससे ‌‌‌उनकी बायीं ठुड्डी टुट कर गिर गयी ओर हनुमान जी एक पहाड पर गिर गए । हनुमान जी की यह दसा देखकर वायु ‌‌‌देव ने पहले उसे ‌‌‌सुरक्षित स्थान पर ले जाते  हैऔर बाद मे पुरे संसार से अपनी ‌‌‌गति को रोक लेते है । जिससे पुरे संसार के प्राणी को स्वास लेने मे तकलीफ होने लगी और धीरे धीरे संसार के प्राणी मरने लगे । ब्रह्मा जी को यह ज्ञात हुआ की वायुदेव ने अपनी ‌‌‌गति को रोक लिया है और संसार के प्राणी मरने लगे है ।ब्रह्मा जी वायुदेव के पास पहुचे और तभी इंद्र ‌‌‌और समस्थ देवगण वहा पर पहुचे । ब्रह्मा जी ने वायुदेव के ‌‌‌ऐसा करने का कारण ‌‌‌पूछा तो वे ब्रह्मा जी से कहते है की इंद्र ने मेरे पुत्र को वज्रायुध से प्रहार ‌‌‌किया है । और हनुमान ‌‌‌मूच्रि्छत‌‌‌अवस्था मे ‌‌‌यहा पर पडे है । ‌‌‌यह सुनकर इंद्र वायुदेव से क्षमा याचना करते है और वायु को चलाने के लिये कहते है । पर पवन देव को अपने पुत्र हनुमान की चिन्ता थी । तभी ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को जीवन दान देया और पवन पुत्र हनुमान को वरदान दिया की कोई भी शस्त्र  इसके शरीर को हानी नही पहुचा सकता है । इंद्र ने कहा की इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा । ‌‌‌सूर्य देव ने कहा की इसकी मेरी ज्वाला कभी भी ‌‌‌हानि नही ‌‌‌पहुंचा सकती है। ‌‌‌मेरा तेज इसे शतांश प्रदान करेंगा । वरुण देव ने कहा की मेरे से ‌‌‌और जल से यह बालक सदा ‌‌‌सुरक्षित रहेगा । यमदेव ने अवध्य और ‌‌‌निरोग रहने  का वरदान दिया । और इस प्रकार हनुमान जी को वरदान दिये गये और पवन देव ने वायु को ‌‌‌चलाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया । जिससे संसार के सभी प्राणी का जीवन वापस चलने लगा।

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