शिव-तत्व साधक,साधन भेद निरूपण ,अभिषेक
शिव-तत्व साधक
उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी! कला, तत्व, भवन, वर्ण, पद, मंत्र आदि छः अध्याय हैं। निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या, शांति और अतीत पांच अध्वा हैं, जो आवृत्त कहे जाते हैं। पृथ्वी को तत्वाध्वा कहा जाता है। त्रिलोकीनाथ भगवान शिव तो तत्व सायक हैं, उनके तत्वों की गणना करना असंभव है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष भेंट करने के बाद गुरु को शिष्य सहित मंडल में जाकर शिव-पूजन करना चाहिए। चार सेर चावलों की खीर बनाकर आधी खीर भगवान शिव को अर्पित कर देनी चाहिए। फिर नकार, मकार आदि पांच कलशों पर पांच वर्ण धारण कराएं। मध्य में ईशान, पूर्व में पुरुष, दक्षिण में अघोर, पश्चिम में सद्योजात, उत्तर में वामदेव को स्थापित करें। कलशों को प्रोक्षित कर हवन आरंभ करें। फिर आधी खीर को होम कर दें बाकी को प्रसाद समझकर ग्रहण करें। तर्पण, कृत्यकर्म कर पूर्णाहुति दें। 'ॐ नमः शिवाय' से प्रदीपन कर तीन आहुतियां दें। कन्या द्वारा काते गए सूत को अभिमंत्रित कर शिष्य की शिखा में बांध दें और पूजन करें। भगवान शिव का ध्यान और पंचाक्षर मंत्र का जप करते हुए शिष्य रात्रि को सोए और रात्रि में जो स्वप्न दिखे उसे विस्तारपूर्वक अपने गुरु को बताए ।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध सत्रहवां अध्याय
षडध्वशोधन विधि
उपमन्यु बोले – हे श्रीकृष्ण ! तत्पश्चात आचार्य की आज्ञा से स्नान कर नित्य कर्म कर ध्यान लगाकर हाथ जोड़कर वहां से प्रस्थान करे। पुष्प अर्चन और शिव नाम का उच्चारण करते हुए मंडल में आकर ईशान देव का पूजन करे। अग्नि होम करें। फिर आहुतियां डालकर वागीश्वरी का पूजन कर वागीश को प्रणाम कर मंडल में देवता का पूजन करे। गुरुदेव शिष्य को मंत्रों द्वारा शुद्ध करें। फिर पूर्ण आहुति देकर ब्राह्मण का पूजन करे। तीन आहुतियां डालकर भगवान शिव का स्मरण करे। तत्पश्चात नील रुद्र वागीश्वरी, तेजस्विनी शिव शक्ति का चिंतन करे। फिर गुरु कैंची का प्रोक्षण कर शिष्य की शिखा छेदन करे। फिर उसे गोबर में स्थापित कर अग्नि में होम कर दे। मंडल में विराजमान भगवान शिव और देवी पार्वती का ध्यान करते हुए उनसे प्रार्थना करते हुए कहे - हे देवाधिदेव! कृपानिधान! आपकी परम कृपा से ही षडध्व का शोधन हुआ है। और इसे अव्यय धाम की प्राप्ति हो। आप नाड़ी संधान के साथ पंचभूतों की शुद्धि करें। फिर तीन आहुतियां डालते हुए अणिमा का निरूपण करें। तत्पश्चात त्रिलोकीनाथ भगवान शिव और देवी जगदंबा का पूजन कर अपने पुण्य कार्य को सफल करने की प्रार्थना करें।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध अट्ठारहवां अध्याय
साधन भेद निरूपण
उपमन्यु बोले- हे श्रीकृष्ण ! मंडप के मध्य में भगवान शिव का पूजन करके वहां कलश की स्थापना करें और फिर हवन करें। हवन करने हेतु शिष्य को सिर खोले हुए मंडप में बैठा दें। उसके पश्चात एक सौ आहुतियों का हवन करने के बाद सुगंधित पुष्प मिले जल से अभिषेक करें और शिष्य को देवाधिदेव भगवान शिव संबंधी विद्या प्रदान करें। तत्पश्चात शिष्य को साधन करने की रीति बताएं। साधन उपदेश को शिष्य ग्रहण करके गुरुदेव के सामने ही मंत्र का उच्चारण करे। साधन मूल-मंत्र का पुरश्चरण होता है। इस प्रकार विधि-विधान से भक्तिपूर्वक आराधना पूर्ण करने के पश्चात खीर का प्रसाद अर्पण करें और दंडवत प्रणाम करें। तत्पश्चात आसन पर बैठकर भगवान शिव का स्मरण करते हुए, ध्यान लगाकर दीक्षित मंत्र का जाप करना आरंभ कर दें। इस मंत्र के एक करोड़ अथवा सामर्थ्यानुसार जप करें। इस प्रकार इस मंत्र का उपदेश देने वाले गुरु और उपदेश पाने वाले शिष्य के लिए इस लोक और परलोक में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे प्राप्त न किया जा सके।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध उन्नीसवां अध्याय
अभिषेक
उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी ! जब शिष्य दीक्षित मंत्र को साथ ले तब उसे पाशुपति व्रत धारण कराएं। फिर उसे अभिषेक करने के लिए आसन पर बैठा दें। पंचकलाओं से पूर्ण कलश स्थापित कर भगवान शिव का पूजन करें। मध्य के कलश के जल से शिष्य का अभिषेक करें। फिर देवाधिदेव भगवान शिव को सुंदर वस्त्र एवं आभूषणों से सुशोभित कर शिव मंडल में आराधना करनी आरंभ करें। एक सौ आठ आहुतियां डालकर हवन संपन्न करें। फिर शिवजी की मूर्ति को वहां से उठा लें। शिव घट तथा अग्नि का पूजन और आराधना करें। फिर अश्वशोधन की क्रियाएं पूर्ण करें। भगवान शिव में असीम श्रद्धा और भक्ति भाव रखने वाले और शिव शास्त्रों को जानने वाले विद्वान और ज्ञानी ही शिवमंत्र को दुर्लभ समझते हैं। इसलिए शक्ति संस्कार कर निरूपण करते हैं।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध बीसवां अध्याय
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