Shiv Chalisa,महा शिवरात्रि में शिव चालीसा का पाठ करने के फ़ायदे,Shiv Chalisa, Benefits of reciting Shiv Chalisa in Maha Shivratri
महा शिवरात्रि में Shiv Chalisa, का पाठ करने के फ़ायदे
महाशिवरात्रि पर शिव चालीसा
श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ का 'शिव चालीसा' पढ़ने का अलग ही महत्व है। इस माह के अंतर्गत आप रोजाना शिव चालीसा का पाठ करके भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करके अपने जीवन के सारे दुखों को दूर कर सकते हैं। महाशिवरात्रि पर शिव चालीसा का पाठ किया जाता है. शिव चालीसा का पाठ करने से पहले, गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए और एक कलश में शुद्ध जल भरकर रखना चाहिए. शिव चालीसा का पाठ 3, 5, 11, या 40 बार करना चाहिए. शिव चालीसा का पाठ सुर और लयबद्ध तरीके से करना चाहिए. शिव चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव से करना चाहिए. शिव चालीसा का पाठ बोल-बोलकर करना चाहिए. इससे जितने लोगों को सुनाई देगा, उनको भी लाभ होगा.
शिव चालीसा का पाठ करने के फ़ायदे
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए. शिव चालीसा का पाठ करने से घर में सुख-शांति, धन-वैभव और प्रेम की वृद्धि होती है. शिव चालीसा का पाठ करने से ये भी फ़ायदे होते हैं:
- कठिन से कठिन और असंभव प्रतीत हो रहे कार्यों को भी बड़ी आसानी से पूरा किया जा सकता है.
- स्वास्थ्य संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है.
- व्यक्ति को नशे की लत से छुटकारा मिलता है और तनाव से भी राहत मिलती है.
- यह समय से पहले और दर्दनाक मौत को रोकता है.
- रोज़ाना सुबह स्नान आदि से निवृत होने के बाद आसन पर बैठकर 11 बार शिव चालीसा का पाठ करने से जीवन में आ रही परेशानियां समाप्त हो सकती हैं.
- शिव चालीसा का पाठ बोल-बोलकर करें, जितने लोगों को यह सुनाई देगा उनको भी लाभ होगा.
- शिव चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव से करें और भगवान शिव को प्रसन्न करें.
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शिव चालीसा का पाठ इस तरह है
दोहा - जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान
चौपाई - जय गिरिजा पति दीन दयाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला
दोहा - नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा
शिव आरती - ओम जय शिव ओंकारा, ओम जय शिव ओंकारा
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
!! चौपाई !!
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
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