भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी की अपार महिमा इन हिंदी में पढ़े,Read the immense glory of Lord Vishnu's beloved Tulsi in Hindi.
भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी की अपार महिमा इन हिंदी में पढ़े
भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी
जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी जी अत्यन्त प्रिय है। तुलसी जी का महत्व हमारे धर्म शास्त्रों में विस्तार किया गया है। पूजा में तुलसी पत्रों का प्रयोग किया जाता है, तुलसी जी का हमारे धर्म में क्या महत्व है?, आज हम इस बारे में आपको संक्षेप में बताने जा रहे हैं।
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भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी की अपार महिमा
गुण गरिमा केवल कल्पना ही नहीं है, भारतीय जनता हजारों वर्षों से इसको प्रत्यक्ष अनुभव करती आई है और इसलिए प्रत्येक देवालय, तीर्थस्थान और सद्गृहस्थों के घरों में तुलसी को स्थान दिया गया है। वर्तमान स्थिति में भी कितने ही आधुनिक विचारों के देशी और विदेशी व्यक्ति उसकी कितनी ही विशेषताओं को स्वीकार करते हैं और वातावरण को शुद्ध करने के लिए तुलसी के पौधों के गमले अपने बँगलों और कोठियों पर रखने की व्यवस्था करते हैं, फिर तुलसी का पौधा जहाँ रहेगा सात्विक भावनाओं का विस्तार तो करेगा ही। इसलिए हम चाहे जिस भाव से तुलसी के संपर्क में रहें, हमको उससे होने वाले शारीरिक, मानसिक और आत्मिक लाभ न्यूनाधिक परिमाण में प्राप्त होंगे ही। तुलसी से होने वाले इन सब लाभों को समझकर पुराणकारों ने सामान्य जनता में उसका प्रचार बढ़ाने के लिए अनेक कथाओं की रचना कर डाली, साथ ही उसकी षोडशोपचार पूजा के लिए भी बड़ी लंबी-चौड़ी विधियाँ अपनाकर तैयार कर दीं। यद्यपि इन बातों से अशिक्षित जनता में अनेक प्रकार के अंधविश्वास भी फैलते हैं और तुलसी-शालिग्राम विवाह के नाम पर अनेक लोग हजारों रुपये खरच कर डालते हैं, पर इससे हर स्थान पर तुलसी का पौधा लगाने की प्रथा अच्छी तरह फैल गई। पुराणकारों ने तुलसी में समस्त देवताओं का निवास बतलाते हुए यहाँ तक कहा है-
तुलसस्यां सकल देवाः वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामचयेल्लोकः सर्वान्देवानसमर्चयन ॥
भावार्थ- तुलसी में समस्त देवताओं का निवास सदैव रहता है, इसलिए जो लोग उसकी पूजा करते हैं, उनको अनायास ही सभी देवों की पूजा का लाभ प्राप्त हो जाता है।
तत्रे कस्तुलसी वृक्षस्तिष्ठति द्विज सत्तमा ।
यत्रेव त्रिदशा सर्वे ब्रह्मा विष्णु शिवादय ।।
जिस स्थान पर तुलसी का एक पौधा रहता है, वहाँ पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि समस्त देवता निवास करते हैं।
रोपनात् पालनात् सेकात् दर्शनात्स्पर्शनान्नृणाम्।
तुलसी दह्यते पाप बाड्मनः काय संचितम् ॥
भावार्थ- तुलसी के लगाने एवं रक्षा करने, जल देने, दर्शन करने, स्पर्श करने से मनुष्य के वाणी, मन और काया के समस्त दोष दूर होते हैं।
सर्वोषधि रसेन व पुराह अमृत मन्थने।
सर्वसत्वोपकाराय विष्णुना तुलसी कृताः ॥
भावार्थ- प्राचीनकाल में अमृत मंथन ‘ के अवसर पर समस्त औषधियों और रसों ( भस्मों ) से पहले विष्णु भगवान ने समस्त प्राणियों के उपकारार्थ तुलसी को उत्पन्न किया।
मंत्र पढ़ने से पहले इन बातों का ध्यान रखें
- मंत्र जाप शुरु करने से पहले तुलसी माता को प्रणाम करें और पौधे में शुद्ध जल अर्पित करने के बाद ही मंत्र का जाप करना शुरू करें.
- तुलसी माता का श्रृंगार हल्दी और सिंदूर चढ़ा कर करें. इसके बाद तुलसी जी के आगे घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं.
- तुलसी के पौधे की 7 बार परिक्रमा करें. इसके बाद ऊपर बताए गए मंत्र का जाप करें. जाप के बाद तुलसी जी को छूकर अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने कामना करें.
- तुलसी ध्यान मंत्र
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में तुलसी का बहुत महत्व माना गया है। जहां तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है, वहीं तुलसी पूजन करना मोक्षदायक माना गया है। हिन्दू धर्म में देव पूजा और श्राद्ध कर्म में तुलसी आवश्यक मानी गई है। जीवन में सफलता पाने के लिए महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते मंत्र का जाप करें।
- तुलसी जी के पूजा के दौरान उनके इन नाम मंत्रों का उच्चारण करें
ॐ सुप्रभाय नमः
- तुलसी दल तोड़ने का मंत्र
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
- रोग मुक्ति का मंत्र
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
- तुलसी स्तुति का मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
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