जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा ,One who reads this Hanuman Chalisa will attain Siddhi Sakhi Gaurisa

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा

हिंदू धर्म में हनुमान चालीसा एक प्रसिद्ध और प्राचीन स्तोत्र है, जो महाकाव्य रामचरितमानस के अवतरण रचयिता गोस्वामी तुलसीदास द्वारा संवाद के रूप में रचा गया था। यह छोटे चालीसा शब्दों में विभूतियों और शक्तियों को समर्थन करता है और उन्हें समर्पित किया गया है जो इसका जाप करते हैं। इसमें हनुमान जी की महिमा, उनके गुण, भक्ति, और उनके भक्तों के लाभ का वर्णन है।
सफलता में सहायक
हनुमान चालीसा के जाप से व्यक्ति को सफलता मिलती है। भगवान हनुमान अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उन्हें सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचाते हैं।
संकट के नाश में सहायक
हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आनेवाले संकटों का नाश होता है। यह उन्हें भय, चिंता, और दुख से मुक्ति देता है। हनुमान जी भक्तों की परेशानियों को दूर करते हैं और उन्हें संतुष्टि एवं शांति प्रदान करते हैं।
One who readsthis HanumanChalisa will attain Siddhi Sakhi Gaurisa

विद्या और बुद्धि में वृद्धि
हनुमान चालीसा का नियमित जाप करने से व्यक्ति की बुद्धि तेज़ होती है और उन्हें विद्या का प्राप्ति होता है। यह छात्रों के लिए बहुत फायदेमंद है जो अध्ययन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य का संरक्षण
हनुमान चालीसा के अभ्यास से शारीरिक स्वास्थ्य का संरक्षण होता है। इसमें प्रतियोगिता और दूर्बलता का सामना करने की क्षमता विकसित होती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे आपको बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है। हनुमान चालीसा पढ़ने से शरीर के अंग, हृदय, और मस्तिष्क के संचार में सुधार होता है, जिससे स्वस्थ जीवन जीने में मदद मिलती है।

फायदे:

  • हनुमान चालीसा का पाठ करने से मानसिक चंचलता का नियंत्रण होता है।
  • यह श्लोक शारीरिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने में मदद करता है।
  • इससे ध्यान और धार्मिक संवाद में सक्रियता आती है।
  • भावनात्मक विकास और सकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है।
  • अध्ययन और ध्येय साधना में सुधार होता है।
  • सम्पूर्णता का अनुभव होता है।

हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa 

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जस जो दायक फल चारि ।
बुद्धि हीन तनु जानिके सुमिरौं पवनकुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेश बिकार ।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥४॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ छाजे ॥५॥
शंकर स्वयं केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥६॥
बिद्यावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सँजीवनि लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई । तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई ॥१२।
सहस बदन तुम्हरो जस गावें । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा । नारद सारद सहित अहीशा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सकें कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज-पद दीन्हा ॥ १६ ॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जे ते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे ते ते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब मुख लहहिं तुम्हारी शरना । तुम रक्षक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपे । तीनों लोक हाँक ते काँपे ॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहीं आवे । महाबीर जब नाम सुनावे ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तें हनुमान छुडावे । मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ॥२६॥
संकट तें हनुमान छुडावे । मन क्रम बचन ध्यान जो लावैं ॥ २६॥
सब पर राम राय सिरताजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । तासु अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारिउ जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सादर हो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि भगत कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥३७॥
जो शत बार पाठ कर कोई । छूटहिं बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ें हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महें डेरा ॥४०॥
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप । 
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

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