भीष्म पितामह और कर्ण का रहस्यमय संवाद शौर्य का वर्णन करना ,Mysterious dialogue between Bhishma Pitamah and Karna describing bravery

भीष्म पितामह और कर्ण का रहस्यमय संवाद शौर्य का वर्णन करना

भीष्म पितामह का बाल्यावस्था का क्या नाम था?
  • देवव्रत
  • वरुण
  • यौधेय
  • वत्स
उत्तर: -देवव्रत

भीष्म पितामह  और कर्ण का रहस्यमय संवाद

महाभारत भीष्म पर्व मेंं भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 122वें अध्याय मेंं 'संजय द्वारा भीष्म और कर्ण के बीच हुए रहस्यमय संवाद' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है कर्ण का भीष्म के पास जाना संजय कहते हैं-महाराज! शांतनुनंदन भीष्म के चुप हो जाने पर सब राजा वहाँ से उठकर अपने-अपने विश्राम स्थान को चले गये। भीष्म जी को रथ से गिराया गया सुनकर पुरुषप्रवर राधा-नंदन कर्ण के मन में कुछ भय समा गया। वह बड़ी उतावली के साथ उनके पास आया। उस समय उसने देखा, महात्मा भीष्म शरशय्या पर सो रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे वीरवर भगवान् कार्तिकेय जन्म-काल में शरशय्या (सरकण्डों के बिछावन) पर सोये थे। वीर भीष्म के नेत्र बंद थे।
Mysterious dialogue between Bhishma Pitamah and Karna describing bravery

रहस्यमय संवाद

उन्हें देखकर महातेजस्वी कर्ण की आखों में आंसू छलक आये और अश्रुगद्गदगण्ठ होकर उसने कहा-‘भीष्म! भीष्म! महाबाहो! कुरुश्रेष्ठ! मैं वही राधापुत्र कर्ण हूं, जो सदा आपकी आंखों में गड़ा रहता था और जिसे आप सर्वत्र द्वेषदृष्टि से देखते थे।’ कर्ण ने यह बात उनसे कही। उसकी बात सुनकर बंद नेत्रों वाले बलवान् कुरुवृद्ध भीष्म ने धीरे से आंखें खोलकर देखा और उस स्थान को एकांत देख पहरेदारों को दूर हटाकर एक हाथ से कर्ण का उसी प्रकार सस्नेह आलिङ्गन किया, जैसे पिता अपने पुत्र को गले से लगाता है। तत्पश्चात उन्होंने इस प्रकार कहा- ‘आओ, आओ, कर्ण! तुम सदा मुझसे लाग-डांट रखते रहे। सदा मेरे साथ स्पर्धा करते रहे। आज यदि तुम मेरे पास नहीं आते तो निश्चय ही तुम्हारा कल्यारण नहीं होता। ‘वत्सद! तुम राधा के नहीं, कुंती के पुत्र हो। तुम्हारे पिता अधिरथ नहीं हैं। महाबाहो! तुम सूर्य के पुत्र हो। मैंने नारदजी से तुम्हारा परिचय प्राप्त किया था। ‘तात! श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास से भी तुम्हारे जन्म का वृत्तांत ज्ञात हुआ था और जो कुछ ज्ञात हुआ, वह सत्य है। इसमें संदेह नहीं हैं। तुम्हारे प्रति मेरे मन में द्वेष नहीं है; यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ।

  • पितामह भीष्म से बढ़कर धनुर्धर कौन था?
अर्जुन महाभारत काल के सबसे बड़े धनुर्धर थे,अर्जुन ने पितामह भीष्म, गुरू द्रोण, कृपाचार्य,अश्वत्थामा, कर्ण, दुर्योधन, दुशासन,शकुनी, संग्रामजित, को अकेले ही पराजित कर दिया था।
  • कर्ण और भीष्म में कौन शक्तिशाली है?
यह एक झूठ है कि भीष्म पितामह ने कर्ण को अपने ध्वज तले युद्ध नहीं लड़ने दिया बल्कि वो कर्ण था जिसने भीष्म पितामह के संरक्षण में लड़ने से इंकार किया। महाभारत के अनुसार भीष्म, कर्ण और द्रोणाचार्य किस गुरु के शिष्य थे? महाभारत के ये तीनों योद्धा परम पराक्रमी थे।
  • भीष्म पितामह किसका अवतार थे?
महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे।

भीष्म का कर्ण के शौर्य का वर्णन करना

‘उत्तम व्रत का पालन करने वाले वीर! मैं कभी-कभी तुमसे जो कठोर वचन बोल दिया करता था, उसका उद्देश्य था, तुम्हारे उत्साह और तेज को नष्ट करना; क्योंकि सूतनंदन! तुम राजा दुर्योधन के उकसाने से अकारण ही समस्त पाण्डवों पर बहुत बार आक्षेप किया करते थे। ‘तुम्हारा जन्म (कन्यावस्था में ही कुंती के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण) धर्मलोप से हुआ है; इसीलिये नीच पुरुषों के आश्रय से तुम्हारी बुद्धि इस प्रकार ईर्ष्यावश गुणवान पाण्डवों से भी द्वेष रखने वाली हो गयी है और इसी के कारण कौरव-सभा में मैंने तुम्हें अनेक बार कटुवचन सुनाये हैं। ‘मैं जानता हूं, तुम्हारा पराक्रम समरभूमि में शत्रुओं के लिये दु:सह है। तुम ब्राह्मण-भक्त‍, शूरवीर तथा दान में उत्तम निष्ठा रखनेवाले हो। ‘देवापम वीर! मनुष्यों में तुम्हारे समान कोई नहीं है। मैं सदा अपने कुल में फूट पड़ने के डर से तुम्हें कटुवचन सुनाता रहा। ‘बाण चलाने,दिव्याअस्त्रों का संधान करने, फुर्ती दिखाने तथा अस्त्र -बल में तुम अर्जुन तथा महात्मा श्रीकृष्ण समान हो। ‘कर्ण! तुमने कुरुराज दुर्योधन के लिये कन्या‍ लाने के निमित्त अकेले काशीपुर में जाकर केवल धनुष की सहायता से वहाँ आये हुए समस्त राजाओं को युद्ध में परास्तय कर दिया था। ‘युद्ध की श्लाघा रखने वाले वीर! यद्यपि राजा जरासंघ दुर्जय एवं बलवान् था, तथापि वह रणभूमि में तुम्हारी समानता न कर सका। ‘तुम ब्राह्मण भक्त, धैर्यपूर्वक युद्ध करने वाले तथा तेज और बल से सम्पन्न हो। संग्राम-भूमि में देवकुमारों के समान जान पड़ते हो और प्रत्येक युद्ध में मनुष्यों से अधिक पराक्रमी हो। ‘मैंने पहले जो तुम्हारे प्रति क्रोध किया था, वह अब दूर हो गया है: क्योंकि प्रारब्ध के विधान को कोई पुरुषार्थद्वारा नहीं टाल सकता। ‘शुत्रुसूदन! मेरी मृत्यु के द्वारा ही यह वैर की आग बुझ जाय और भूमण्डल के समस्तं नरेश अब दु:ख शोक से रहित एवं निर्भय हो जाय।
कर्ण ने कहा-महाबाहो! भीष्म! आप जो कुछ कह रहे हैं, उसे मैं भी जानता हूँ। यह सब ठीक है, इसमें संशय नहीं है। वास्तव में मैं कुंती का ही पुत्र हूं, सूतपुत्र नहीं हूँ। परंतु माता कुंती ने तो मुझे पानी में बहा दिया और सूत ने मुझे पाल-पोषकर बड़ा किया। पूर्वकाल से ही मैं दुर्योधन के साथ स्नेह करता आया हूँ और प्रसन्नतापूर्वक रहा हूँ। दुर्योधन से मैंने यह प्रतिज्ञा कर ली है कि तुम्हारा जो-जो दुष्कर कार्य होगा, वह सब मैं पूरा करूंगा। दुर्योधन का ऐश्वर्य भोगकर मैं उसे निष्फल नहीं कर सकता। जैसे वसुदेवनंदन श्रीकृष्ण पाण्डुपुत्र अर्जुन की सहायता के लिये दृ‍ढ़ प्रतिज्ञ हैं, उसी प्रकार मेरे धन, शरीर, स्त्री, पुत्र तथा यश सब कुछ दुर्योधन के लिये निछावर हैं। यज्ञों में प्रचुर दक्षिणा देनेवाले कुरुनंदन भीष्म! मैंने दुर्योधन का आश्रय लेकर पाण्डवों का क्रोध सदा इसलिये बढ़ाया है कि यह क्षत्रिय-जाति रोगों का शिकार होकर न मरे (युद्ध में वीर गति प्राप्त करे)। यह युद्ध अवश्यम्भावी है। इसे कोई टाल नहीं सकता। भला, दैव की पुरुषार्थ के द्वारा कौन मिटा सकता है। पितामह! आपने भी तो ऐसे निमित्त (लक्षण) देखे थे, जो भूमण्डल के विनाश की सूचना देने वाले थे। आपने कौरव-सभा में उनका वर्णन भी किया था।
पाण्डवों तथा भगवान् वासुदेव को मैं सब प्रकार से जानता हूं, वे दूसरे पुरुषों के लिये सर्वथा अजेय हैं, तथापि मैं उनसे युद्ध करने का उत्साह रखता हूँ और मेरे मन का यह निश्चित विश्वास है कि मैं युद्ध में पाण्डवों को जीत लूंगा। पाण्डवों के साथ हम लोगों का यह वैर अत्यंत भयंकर हो गया है। अब इसे दूर नहीं किया जा सकता। मैं अपने धर्म के अनुसार प्रसन्नचित्त होकर अर्जुन के साथ युद्ध करूंगा। तात! मैं युद्ध के लिये निश्चय कर चुका हूँ। वीर! मेरा विचार है कि आपकी आज्ञा लेकर युद्ध करूं अत: आप मुझे इसके लिये आज्ञा देने की कृपा करें। मैंने क्रोध के आवेग से अथवा चपलता के कारण यहाँ जो कुछ आपके प्रति कटुवचन कहा हो या आपके प्रतिकूल आचरण किया हो, वह सब आप कृपापूर्वक क्षमा कर दें।
भीष्म ने कहा-कर्ण! यदि यह भयंकर वैर अब नहीं छोड़ा जा सकता तो मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, तुम स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा से युद्ध करो। दीनता और क्रोध छोड़कर अपनी शक्ति और उत्साह के अनुसार सत्पुवरूषों के आचार में स्थिर रहकर युद्ध करो। तुम रणक्षेत्र में पराक्रम कर चुके हो और आचारवान तो हो ही। कर्ण! मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ। तुम जो चाहते हो, वह प्राप्त करो। धनंजय के हाथ से मारे जाने पर तुम्हें क्षत्रिय धर्म के पालन से प्राप्त होने वाले लोकों की उपलब्धि होगी। तुम अभिमान शून्य होकर बल और पराक्रम का सहारा ले युद्ध करो, क्षत्रिय के लिये धर्मानुकूल युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्या‍णकारी साधन नहीं है। कर्ण! मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। मैंने कौरवों और पाण्डवों में शांति स्थापित करने के लिये दीर्घकाल तक महान प्रयत्न किया था; किंतु मैं उसमें कृतकार्य न हो सका। संजय कहते हैं-राजन्! गङ्गानंदन भीष्म के एसा कहने पर राधानंदन कर्ण उन्हें प्रणाम करके उनकी आज्ञा ले रथ पर आरूढ़ हो आपके पुत्र दुर्योधन के पास चला गया !
  • भीष्म और धृतराष्ट्र के बीच क्या संबंध है?
शांतनु के पहले जन्म के रूप में उनकी उम्र और कुरु वंश में उनकी स्थिति को देखते हुए, भीष्म हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र के दरबार में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। यह एक महत्वपूर्ण बात है क्योंकि भीष्म का धृतराष्ट्र के साथ कोई खून का रिश्ता नहीं था । भीष्म शांतनु के पुत्र हैं; और धृतराष्ट्र को व्यास द्वारा निर्देशित किया गया था
  • भीष्म पितामह ने कौन सा पाप किया ये 4 घोर पाप, इसलिए 
तब श्रीकृष्ण ने कहा, पितामह आपा अपने पिछले 101वें जन्म जब एक राजकुमार थे तब आप एक दिन शिकार पर निकले थे। उस वक्त एक करकैंटा एक वृक्ष से नीचे गिरकर आपके घोड़े के अग्रभाग पर बैठा था। भीष्म ने आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जाकर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गए।
  • भीष्म की पत्नी का नाम क्या है?
भीष्म ने कभी विवाह नही किया था । भीष्म ने अपने पिता का विवाह सत्यवती से कराने के लिए गंगा पुत्र ने अपनी माता गंगा के सामने ही आजीवन अविवाहित रहने की ध्रतिज्ञा की थी।

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