जानिए श्रीकृष्ण की मृत्यु कब और कैसे हुई श्रीमद् भागवत महापुराण में वर्णन मिलता Know when and how Shri Krishna died. Description is found in Shrimad Bhagwat Mahapuran
जानिए श्रीकृष्ण की मृत्यु कब और कैसे हुई
जिस बहेलिए के हाथों श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई थी उसका क्या नाम था?
- हिरण्यधनु
- निषध
- जरा
- सुषेण
उत्तर: जरा
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ। वहीं वेद व्यास द्वारा दी गई ज्योतिषीय जानकारी के अनुसार भगवान कृष्ण की मृत्यु 13 अप्रैल 3031 को हुई थी।
Know when and how Shri Krishna died. Description is found in Shrimad Bhagwat Mahapuran |
- जरा" नामक भील का बाण लगने से श्रीकृष्ण भगवान की मृत्यु हुई
श्रीमद् भागवत महापुराण में भगवान श्री कृष्ण के देह त्याग करने का वर्णन मिलता है।प्रभु श्री कृष्ण एक बार एक पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तभी वहां पर वन में पक्षियों का शिकार करने वाला "जरा" नाम का एक बहेलिया आता है। बहेलिए ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर देह त्याग दी। लेकिन यह भी उनकी एक लीला ही थी। उसने झाड़ियां की आड़ से दूर से देखा तो भगवान श्री कृष्ण के श्री चरण में एक मणी चमक रही थी, जो उसे किसी पशु या पक्षी के आंख के समान लगी और उसने लक्ष्य साध करके बाण चला दिया। जब उसने पास जाकर के देखा तो उसे पता चला कि वह बाण तो प्रभु श्री द्वारकाधीश के श्री चरणों में लगा है, यह देखकर बहेलिया रोने लगा और प्रभु से बार-बार क्षमा याचना करने लगा। उसने प्रभु से कहा कि हे प्रभु मुझसे बड़ी भूल हो गई है मुझे लगा कि कोई पशु यहां पर बैठा है इसलिए, मैंने तीर चला दिया मुझे क्षमा करें। उस बाण के लगने से प्रभु श्री कृष्ण जख्मी हो गए क्योंकि वह बाण जहरीला था।
प्रभु श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए बहेलीए से कहा कि, इसमें तुम्हारा तनिक भी अपराध नहीं है, यह सब मेरे ही इच्छा से हुआ है तुम निश्चिंत रहो मेरी लीला का समय अब समाप्त हो रहा है और मेरा धरती से जाने का समय हो गया है, तुम तो एक निमित्त मात्र बने हो। इसके बाद योगेश्वर श्री कृष्ण कुछ दूर चलकर नदी के किनारे पहुंचे और अपनी उस देह को वहां त्याग करके गोलोक को प्रस्थान कर गए। जिस समय प्रभु श्री कृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया था उस समय उनकी अवस्था 125 वर्ष की थी। गुजरात में सोमनाथ के पास में आज भी यह स्थान सुरक्षित हैं, जिसे भालका तीर्थ के नाम से जाना जाता है।वह पीपल का विशाल वृक्ष आज भी जीवित हैं। शास्त्रों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि प्रभु श्री कृष्ण को बाण मारने वाला वह बहेलिया त्रेता युग में बाली था। जिसे प्रभु श्री राम ने छुप करके बाण से संहार किया था और अपने उस जन्म का बदला लेने के लिए, वह इस जन्म में बहेलिया बना और प्रभु श्री राम श्री कृष्ण बनकर के अवतरित हुए।
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धर्म के विरुद्ध आचरण करने के दुष्परिणामस्वरूप अन्त में दुर्योधन आदि मारे गये और कौरव वंश का विनाश हो गया। महाभारत के युद्ध के पश्चात् सान्तवना देने के उद्देश्य से भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास गये। गांधारी अपने सौ पुत्रों के मृत्यु के शोक में अत्यंत व्याकुल थी। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है उसी प्रकार तुम्हारे यदुवंश का भी आपस में एक दूसरे को मारने के कारण नाश हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यादवों की मति फेर दी। एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आये। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण को छोड़ कर एक भी यादव जीवित न बचा। इस घटना के बाद भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए। जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझ कर विषयुक्त बाण चला दिया जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्री कृष्णचन्द्र स्वधाम को पधार गये। इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के श्राप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया।
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द्वापर युग के समय जब भगवान श्री कृष्ण ने धरती में जन्म लिया तब देवी-देवता वेश बदलकर समय-समय पर उनसे मिलने धरती पर आने लगे। इस दौड़ में भगवान शिव जी कहां पीछे रहने वाले थे, अपने प्रिय भगवान से मिलने के लिए वह भी धरती पर आने के लिए उत्सुक हुए। परंतु वह यह सोच कर कुछ क्षण के लिए रुके की यदि वे श्री कृष्ण से मिलने जा रहे हैं तो उन्हें कुछ उपहार भी अपने साथ ले जाना चाहिए। अब वे यह सोच कर परेशान होने लगे कि ऐसा कौन सा उपहार ले जाना चाहिए जो भगवान श्री कृष्ण को प्रिय भी लगे और वह हमेशा उनके साथ रहे। तभी शिव जी को याद आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है। ऋषि दधीचि वही महान ऋषि है जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था व अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थी। उन हड्डियों की सहायता से विश्कर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गांडीव, शारंग तथा इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था। शिव जी ने उस हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बंसी प्रदान की। उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।
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