श्री गणेश जी का स्वरूप रहस्य जानिए

श्री गणेश जी  का स्वरूप रहस्य जानिए 

  1. गणेशजी की उत्पत्ति का रहस्य : 
  2. गणेशजी  का  एकदन्त हो जाने का वर्णन 
  3. श्री गणेश का जन्म
  4. गणेश जी के स्वरूप से जुड़े कुछ रहस्य:
  5. गणेश जी के हाथी के सिर की कहानी
इस ब्लॉग में ऊपर दिये गए 5 शीर्षक के बारे में है

गणेशजी की उत्पत्ति का रहस्य : 

पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया। इस पर दुःखी पार्वती (सती नहीं) से ब्रह्मा ने कहा- 'जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो।' पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। स प्रकार गणेश ‘गजानन’ बन गए।
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गणेशजी  का  एकदन्त हो जाने का वर्णन 

उपरोक्त पुराण में ही उनके एकदन्त हो जाने का वर्णन है । एक बार परशुरामजी शिव-पार्वती के दर्शन हेतु पधारे। कैलाश पार्वत पर शिव-पार्वती सो रहे थे, बाहर गणेश जी विराजमान थे । गणेश जी ने परशुरामजी को अन्दर जाने से रोक दिया। इस पर परशुराम जी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने फरसे से उनका दाँत काट डाला। तभी से वे एकदन्त हैं । अनेक देशों और अनेक धर्मों में गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। विवाह, भवन मुहूर्त आदि प्रत्येक मांगलिक कार्य में सर्वप्रथम गणपति पूजन करते हैं चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो । बौद्ध धर्म में श्वेत हाथी को पवित्र और पूजनीय माना जाता है। शैव, शाक्त, वैष्णव सभी सम्प्रदायों के हिन्दू सर्वप्रथम गणेश वंदना करते हैं। बर्मा, जावा, सुमात्रा, नेपाल, तिब्बत, चीन, भूटान, लंका, मारीशस में भी भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। भगवान श्री गणेश की सवारी 'चूहा' माना जाता है। उनका प्रिय भोजन लड्डू है। उनको लड्डू का ही भोग लगाया जाता है । गणेश जी ऐसे देवता माने जाते हैं जो सभी कल्पों में उत्पन्न होते रहते हैं। प्रत्येक बार उनका जन्म भिन्न-भिन्न प्रकार से हुआ है । पुराणों में गणेशजी के जन्म के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। प्रत्येक युग में गणेश जी देवताओं में अग्रगण्य रहे हैं और सबसे पहले पूजा की जाती है ।

श्री गणेश का जन्म

गणेशजी को द्वार पर बिठाकर पार्वतीजी स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेशजी ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उनका सिर काट दिया। इन गणेशजी की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के मिश्रण से की थी। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया गया तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया और वह जी उठा। श्री गणेश का जन्म भाद्रप्रद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे हुआ था। कहते हैं कि माता पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था। इसी उपवास के चलते माता पार्वती को श्री गणेश पुत्र रूप में प्राप्त हुए। शिव महापुराण के अनुसार माता पार्वती को गणेशजी का निर्माण करने का विचार उन्हीं की सखी जया और विजया ने दिया था। उनकी सखियों ने उनसे कहा था कि नंदी और सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं इसलिए आपको भी एक ऐसे गण की रचना करनी चाहिए, जो सिर्फ आपकी ही आज्ञा का पालन करे। इस विचार से प्रभावित होकर माता पार्वती ने श्री गणेश की रचना अपने शरीर के मैल से की।

गणेश जी के स्वरूप से जुड़े कुछ रहस्य

  1. गणेश जी के चारों हाथों में पाश, अंकुश, मोदक पात्र, और वरमुद्रा है.
  2. गणेश जी रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण, और पीतवस्त्रधारी हैं.
  3. गणेश जी रक्त चंदन धारण करते हैं.
  4. गणेश जी के शरीर का रंग लाल और हरा है. इसमें लाल रंग शक्ति का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
  5. गणेश जी के 12 नाम हैं: सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन.
  6. गणेश जी एकदन्त और चतुर्बाहु हैं.
  7. गणेश जी का वाहन सिंह है.
  8. कलयुग में गणेश जी का नाम धूम्रवर्ण और सूर्पकर्ण होगा.
  9. कलयुग में गणेश जी के हाथों में खड्ग होगा.
  10. कलयुग में गणेश जी अपनी इच्छा से सेना और अस्त्र-शस्त्र उत्पन्न करेंगे.
  11. कलयुग में पापियों के बढ़ते मनोबल और धर्म की हानि से गणपति के नेत्रों में क्रोध भरा होगा. 
  12. शिव महापुराण के मुताबिक, श्रीगणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है, वह जड़रहित बार अंगुल लंबी और तीन गांठों वाली होनी चाहिए

गणेश जी के हाथी के सिर की कहानी

श्री गणेश के "हाथी के सिर" स्वरूप से जुड़ी हुई सबसे प्रसिद्ध कहानी शिव पुराण से ली गई है। कथा अनुसार- एक बार देवी पार्वती ने स्नान की तैयारी शुरू की। चूंकि वह अपने स्नान के दौरान किसी भी प्रकार का विघ्न अथवा बाधा नहीं चाहती थी और उस समय शिव की सवारी नंदी दरवाजे की रखवाली करने के लिए कैलाश में उपस्थित नहीं थे, इसलिए माता पार्वती ने अपने शरीर से हल्दी का लेप (स्नान के लिए) लिया और एक बालक का स्वरूप निर्मित किया और उसमें प्राण फूंक दिए। इस लड़के को माता पार्वती ने दरवाजे की रखवाली करने और स्नान समाप्त होने तक किसी को भी अंदर नहीं आने देने का निर्देश दिया था। किन्तु जब भगवान शिव ने ध्यान से बाहर आने के बाद, माता पार्वती को देखना चाहा, तो इस बालक ने इन्हे भी रोक दिया। शिव ने अंदर प्रवेश करने हेतु बालक को समझाने की कोशिश की किंतु बालक नहीं माना। बालक के इस असामान्य व्यवहार से क्रोधित होकर शिव ने बालक के सिर को अपने त्रिशूल के प्रहार से धड से अलग कर दिया और वही पर उसकी मृत्यु हो गई। जब माता पार्वती को यह पता चला, तो वह इतनी क्रोधित और अपमानित हुईं कि उन्होंने पूरी सृष्टि को नष्ट करने का फैसला कर दिया। उनके आह्वान पर, उन्होंने अपने सभी क्रूर बहु-सशस्त्र रूपों का आह्वान कर दिया उनके शरीर से योगिनियाँ उठीं, जो समस्त संसार को नष्ट करने को आतुर थी। उन्हें शांति केवल उस बालक के पुनः जीवित होने पर मंजूर थी। अतः हैरान और परेशान भगवान शिव, माता पार्वती की सभी शर्तों से सहमत हो गए। उन्होंने अपने शिव-दूतों को आदेश के साथ बाहर भेजा कि "वह उस पहले प्राणी के सिर को कैलाश में लेकर आए, जो उत्तर की ओर सिर करके लेटा हुआ हो।" शिव-भक्त जल्द ही एक मजबूत और शक्तिशाली हाथी गजसुर के मस्तक लेकर लौट आए, जिसे भगवान ब्रह्मा ने बालक के शरीर पर रखा और उनमें नया जीवन फूंकते हुए, उन्हें "गजानन" घोषित किया गया तथा उन्हें देवताओं और सभी गणों (प्राणियों के वर्ग) का प्रमुख होने का वरदान दे दिया।

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