तुलसी का महत्व तुलसी के उपयोग मस्तिष्क और स्नायु संबंधी रोग ,Importance of Tulsi, Uses of Tulsi, Brain and nerve related diseases
तुलसी का महत्व तुलसी के उपयोग मस्तिष्क और स्नायु संबंधी रोग
तुलसी के पौधे का महत्व धर्मशास्त्रों में
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, तुलसी के पौधे में धन की देवी मां लक्ष्मी का वास होता है. ऐसी मान्यता है कि प्रतिदिन तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्धि आती है और आर्थिक परेशानियां कम हो जाती हैं.
तुलसी के पत्तों का काढ़ा पीने से जुकाम, सिर दर्द, बुखार आदि रोगों से फ़ायदा मिलता है. तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से कैंसर से फ़ायदा मिलता है. तुलसी के पत्तों के सेवन से रक्तचाप सामान्य होता है.
तुलसी की व्यापक स्पेक्ट्रम रोगाणुरोधी गतिविधि होती है. इसका इस्तेमाल हैंड सैनिटाइज़र, माउथवॉश और जल शोधक के साथ-साथ पशु पालन, घाव भरने, खाद्य पदार्थों और हर्बल के संरक्षण में किया जा सकता है.
तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और एंटी-फ़ंगल गुण होते हैं. तुलसी में मौजूद कैम्फीन, सिनेओल और यूजेनॉल छाती में ठंड और जमाव को कम करने में मदद करते हैं. तुलसी के पत्तों का रस शहद और अदरक के साथ मिलाकर ब्रोंकाइटिस, दमा, इन्फ़्लुएंज़ा, खांसी और सर्दी में असरदार होता है.
तुलसी के उपयोग क्या क्या है?
तुलसी के पत्तों का काढ़ा पीने से जुकाम, सिर दर्द, बुखार आदि रोगों से लाभ मिलता है। तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से कैंसर से लाभ मिलता है। तुलसी के पत्तों के सेवन से रक्त चाप सामान्य होता है। खांसी, दमा, इओसिनोफिल आदि में तुलसी के 10 पत्ते, एक चम्मच बायबडिंग का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
तुलसा जी का क्या महत्व है?
तुलसी भगवान विष्णु को बहुत-ही प्रिय मानी गई है। तुलसी के बिना विष्णु जी का भोग अधूरा माना जाता है। यही कारण है कि भगवान विष्णु के भोग में तुलसी दल जरूरी रूप से शामिल किए जाते हैं। साथ ही तुलसी के पौधे को मां लक्ष्मी का प्रतीक भी माना गया है।
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तुलसी के पौधे का महत्व धर्मशास्त्रों में
तुलसी के पौधे का महत्व धर्मशास्त्रों में भी बखूबी बताया गया है. तुलसी के पौधे को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे से कई आध्यात्मिक बातें जुड़ी हैं. शास्त्रीय मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को तुसली अत्यधिक प्रिय है. तुलसी के पत्तों के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है. क्योंकि भगवान विष्णु का प्रसाद बिना तुलसी दल के पूर्ण नहीं होता है. तुलसी की प्रतिदिन का पूजा करना और पौधे में जल अर्पित करना हमारी प्राचीन परंपरा है. मान्यता है कि जिस घर में प्रतिदिन तुलसी की पूजा होती है, वहां सुख-समृद्धि, सौभाग्य बना रहता है. धन की कभी कोई कमी महसूस नहीं होती.जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर की कलह और अशांति दूर हो जाती है. घर-परिवार पर मां लक्ष्मी जी की विशेष कृपा बनी रहती है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के पत्तों के सेवन से भी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है. जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी का सेवन करता है, उसका शरीर अनेक चंद्रायण व्रतों के फल के समान पवित्रता प्राप्त कर लेता है तुलसी के पत्ते पानी में डालकर स्नान करना तीर्थों में स्नान कर पवित्र होने जैसा है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति ऐसा करता है वह सभी यज्ञों में बैठने का अधिकारी होता है. भगवान विष्णु का भोग तुलसी के बिना अधूरा माना जाता है. इसका कारण यह बताया जाता है कि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं. कार्तिक महीने में तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है. कार्तिक माह में तुलसी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती
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तुलसी की महिमा क्या है?
कहा गया है कि जहां तुलसी होती है वहां साक्षात लक्ष्मी का निवास भी होता है। स्वयं भगवान नारायण श्री हरि तुलसी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। यह मोक्षकारक है तो भगवान की भक्ति भी प्रदान करती है, क्योंकि ईश्वर की उपासना, पूजा व भोग में तुलसी के पत्तों का होना अनिवार्य माना गया है।
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मस्तिष्क और स्नायु संबंधी रोग
मस्तिष्क और ज्ञान तंतुओं की प्रक्रिया बहुत गूढ़ और सूक्ष्म होती है और उसमें किसी प्रकार की खराबी आ जाने से सिर में चक्कर आना, स्मरण शक्ति का ह्रास, घबराहट, मूर्च्छा, मृगी, उन्माद जैसे भयंकर दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इन सब रोगों की चिकित्सा भी बहुत कठिन होती है और डॉक्टर तथा वैद्य जो तीव्र औषधियाँ देते हैं, वे थोड़ा-सा तात्कालिक लाभ भले ही दिखा दें, पर अंत में मस्तिष्क शक्ति को और भी खराब और नष्ट करने वाली सिद्ध होती हैं। तुलसी का सेवन ऐसी अवस्था में अमृतोपम कार्य करता है, क्योंकि वह भी एक सूक्ष्म प्रभाव युक्त दिव्य बूटी है और श्रद्धा तथा उपासना का संबंध होने से वह मानसिक संस्थान पर इच्छित असर भी डाल सकती है। इससे मस्तिष्क संबंधी शिकायतों तथा निर्बलता में तुलसी का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ है। 'तुलसी कवच' में भी इसकी जो महिमा वर्णित है उसके गूढ़ आशय पर ध्यान देने से प्रतीत होता है कि तुलसी के संपर्क में आने और भक्तिपूर्वक उसको प्रसादरूप में ग्रहण करने का प्रभाव हमारी ज्ञानेंद्रियों पर बहुत कल्याणकारी पड़ता है और मस्तिष्क, आँखें, कान, नाक, जिह्वा, कंठ आदि सभी स्थानों के दोष दूर होकर विकसित होते हैं।
- स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते और चार-पाँच कालीमिर्च बारीक घोंट-छानकर सुबह लगातार पिया जाए तो मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। यदि चाहें तो दो-चार बादाम और इसमें थोड़ा शहद मिलाकर ठंडाई की तरह बना सकते हैं।
- प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात तुलसी के पाँच पत्ते जल के साथ निगल लेने से मस्तिष्क की निर्बलता दूर होकर स्मरण शक्ति तथा मेधा की वृद्धि होती है।
- मृगी रोग में तुलसी के ताजे पत्ते नीम के साथ पीसकर उबटन की तरह लगाने से बहुत लाभ पहुँचता है, यह प्रयोग नियमित रूप से लगातार बहुत समय तक करना चाहिए।
- तुलसी के पत्ते और ब्राह्मी पीसकर छानकर एक गिलास नित्य सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता से उत्पन्न उन्माद ठीक हो जाता है।
- तुलसी के रस में थोड़ा नमक मिलाकर नाक में दो-चार बूँद टपकाने से मूर्च्छा और बेहोशी में लाभ होता है।
- तुलसी का श्रद्धापूर्वक नियमित सेवन सभी ज्ञानेंद्रियों की क्रिया को शुद्ध करके उनकी शक्ति को बढ़ाता है।
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