नित्य कृत्य विधि ,अग्नि कृत्य विधान ,नैमित्तिक पूजन विधि Daily ritual method, fire ritual method, routine worship method

नित्य कृत्य विधि ,अग्नि कृत्य विधान ,नैमित्तिक पूजन विधि

नित्य कृत्य विधि

उपमन्यु बोले-हे श्रीकृष्णजी ! दीप दान करने से पहले आरती एवं पूजन भी किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम, ईशान देव से लेकर सद्योजात तक भगवान शिव का जाप करें। पहले आवरण में हृदय से लेकर अस्त्र न्यास कर पूजन करें। पूर्व में इंद्र, दक्षिण में यम, पश्चिम में वरुण, उत्तर में कुबेर,अग्निकोण में अग्नि, नैऋति और निऋति में वायु की पूजा करनी चाहिए। कमल से बाहर वज्रादि आयुधों का पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात सभी स्थानों से आठ लोकपालों का पूजन कर मां जगदंबा का पूजन कर उनकी आराधना करें। योग, ध्यान, जप और होम कृत्यों में छः तरह का नैवेद्य होना चाहिए। उसके बाद कपूर, कंकोल, जावित्री, कस्तूरी, केसर, मृगमद, सुगंधि, पुष्प आदि अर्पण कर घी का दीपक जलाएं। फिर हाथी दांत से निर्मित आसन दिव्य छत्र, चंवर, भेरी और मृदंग चढ़ाएं। अपनी सामर्थ्य के अनुसार किया गया शिव पूजन उत्तम फल देने वाला होता है। शिवजी में अनन्य भक्ति रखने वाले प्राणी, को अवश्य ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध पच्चीसवां अध्याय

सांगोपांग पूजन

उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी ! शिव पूजन परम फलदायक है। बड़े-बड़े पापी, ब्रह्महत्यारे, चोर, व्यभिचारी पुरुष यदि शिव पूजन करें तो उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए पतितों को शिव पूजन अवश्य करना चाहिए। शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से बंधन में पड़े मनुष्य बंधन से मुक्त हो जाते हैं। अनेकों योनियों में जीवन व्यतीत करने के पश्चात हमें मनुष्य योनि मिली है। जो मनुष्य इस अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी शिव पूजन नहीं करता उसका जन्म सफल नहीं होता। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को भक्तिपूर्वक त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का पूजन-आराधन अवश्य करना चाहिए। भगवान शिव के पूजन के समान अन्य कोई भी धर्म नहीं है। यह मनुष्य को सभी सांसारिक बंधनों एवं मोह-माया से मुक्ति दिलाने वाला है। शिव पूजन करने के पश्चात मनुष्य को परिवार एवं बंधु-बांधवों सहित प्रसाद बांटना चाहिए।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध छब्बीसवां अध्याय

अग्नि कृत्य विधान

उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी! अग्नि कृत्य तो कुंड, स्थंडिल, वेदी, लोहे के पात्र अथवा मिट्टी के पात्र में कर्तव्य हैं, उसमें विधिपूर्वक अग्नि की स्थापना करनी चाहिए और फिर हवन करना आरंभ करें। सबसे पहले कुंड का निर्माण करें। कुंड के चारों ओर तीन मेखला होनी चाहिए। फिर कुंड में योनि की रचना करें। कुंड को गोबर से लीपकर उसे अग्नि में तपाएं और तत्पश्चात उस पर वेदोक्त सूत्र लिख दें। कुशा पुष्पों से कुंड को प्रोक्षित करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित करें। मणि द्वारा उत्पन्न या किसी ब्राह्मण के घर से लाई गई अग्नि को ही ग्रहण करें। कुंड की तीन बार परिक्रमा कर अग्निबीज मंत्र का उच्चारण करते हुए कुंड में अग्नि स्थापित करें। फिर दक्षिण दिशा में शिव पूजन कर मंत्र न्यासादि कर घी में धेनु मुद्रा दिखाकर सुवा को तपाकर प्रोक्षण करें। फिर संस्कारों की सिद्धि के लिए बीज मंत्रों से होम करें। ऐसा करने से शिवाग्नि संपन्न हो जाती है। तत्पश्चात भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप का आह्वान कर उसका पूजन करें फिर दीपक तक सिंचन कर समिधाओं से होम करें। दूर्वा एवं घी की आहुतियां दें। धान, खील, जौ, सरसों, तिल को घी में मिलाकर उससे होम करें। फिर तीन प्रायश्चित आहुतियां दें। बचे घी को एक पुष्प पर रखकर वौषट् मंत्र द्वारा हवन करें। विसर्जन कर अग्नि की रक्षा करें। देवों का आह्वान कर उनका पूजन करें। भस्म को मंत्र द्वारा धारण करें। अग्नि कृत्य समाप्त होने पर शिव शास्त्रानुसार बलि कर्म करें। विद्या के सामने गुरु मंडल की रचना करें और उस पर आसन बिछाकर फूल से गुरु पूजन करें। फिर निर्धनों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। फिर आचमन कर शिव मंत्र को जपते हुए ध्यान करें।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध सत्ताईसवां अध्याय

नैमित्तिक पूजन विधि

उपमन्यु बोले- हे श्रीकृष्ण जी ! प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की अष्टमी और चतुर्दशी के दिन उत्तरायण संक्रांति ग्रहण काल में विशेष पूजन करना चाहिए। माघ के महीने में पंचगव्य शोध कर शिवजी को स्नान कराएं और उस जल को पिएं। इस जल को पीने से ब्रह्म पाप भी नष्ट हो जाते हैं। पौष माह में पुण्य नक्षत्र में भगवान शिव की आरती करें। माघ में मघा नक्षत्र में कंबल और घी का दान करें। फाल्गुन के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के दिन बहुत बड़ा उत्सव करें। चित्रा नक्षत्र में चैत्र माह में शिवजी का ढोला उत्सव करें। वैशाख के विशाखा नक्षत्र में फूल मंडली उत्सव करें। जेठ महीने के मूल नक्षत्र में शीतल जल का कुंभ दान करें। आषाढ़ के उत्तराषाढ़ा में पवित्र व्रत धारण करें। श्रावण माह के श्रवण नक्षत्र में प्राकृत प्रकार के सभी मंडल बनाकर उनका पूजन करें। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में प्रोक्षण करें। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जल क्रीड़ा करें। असौज में खीर खाएं। शतभिषा नक्षत्र में अग्नि कर्म करें। कार्तिक में कृतिका नक्षत्र पर सहस्र दीपक जलाकर उनका दान करें। मृगशिर महीने के आर्द्रा नक्षत्र में स्नान करें। अपने द्वारा किए गए किसी बुरे कार्य के लिए भगवान शिव से क्षमा याचना करें और बुरे कार्यों के लिए प्रायश्चित करें। इस प्रकार नित्य पूजन करने से इसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण श्रीवायवीय संहिता उत्तरार्द्ध अट्ठाईसवां अध्याय

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