चैत्र शुक्ल महाअष्टमी (दुर्गा अष्टमी) व्रत विधि Chaitra Shukla Maha Ashtami (Durga Ashtami) fasting method

चैत्र शुक्ल महाअष्टमी (दुर्गा अष्टमी) व्रत विधि

चैत्र शुक्ल महाअष्टमी

दुर्गाष्टमी का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। प्रत्येक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्गाष्टमी व्रत किया जाता है, इसे मासिक दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। इस दौरान श्रद्धालु दुर्गा माता की पूजा करते हैं और उनके लिए पूरे दिन का व्रत करते हैं। मुख्य दुर्गाष्टमी, जिसे महाष्टमी कहा जाता है, आश्विन माह में नौ दिन के शारदीय नवरात्र उत्सव के दौरान पड़ती है। दुर्गाष्टमी को दुर्गा अष्टमी और मासिक दुर्गाष्टमी को मास दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। भगवती दुर्गा को उबाले हुए चने, हलवा-पूरी, खीर, पुए आदि का भोग लगाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की मूर्ति का मंत्रों से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। बहुत-से व्यक्ति इस महाशक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन आदि भी करते हैं। शक्तिपीठों में इस दिन बहुत उत्सव मनाया जाता है।
 Chaitra Shukla Maha Ashtami (Durga Ashtami) fasting method

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र पूजा का जो विशेष आयोजन प्रारम्भ होता है वह आज या आगामी दिन अर्थात् नवमी को पूर्णता प्राप्त करता है। इस अष्टमी का अत्यन्त विशिष्ट महत्त्व है क्योंकि आज के दिन ही आदिशक्ति भवानी ने अवतार धारण किया था। भगवती भवानी अजेय शक्तिशालिनी महानतम शक्ति हैं और यही कारण है कि- महाष्टमी कहा जाता है इस अष्टमी को। महाष्टमी को भगवती के भक्त उनके दुर्गा, काली, भवानी, जगदम्बा, नव दुर्गाएँ आदि रूपों में पूजा-आराधना करते हैं। मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्राभूषणों द्वारा पूर्ण श्रृंगार किया जाता है और फिर फिर विधि- विधानपूर्वक आराधना की जाती है। हवन की अग्नि जलाकर उसमें धूप, कपूर, घी, गुग्गुल और हवन सामग्री की आहुतियाँ तो दी ही जाती हैं सिन्दूर में लपेट कर एक जायफल की आहुति देने का भी विधान है। शुद्ध जल में शहद अथवा गुड़ डालकर इस मीठे शर्बत को पीपल अथवा गाय के खूटे पर चढ़ाने का भी विधान है। धूप, दीप, नैवेद्य से देवी की पूजा करने के बाद मातेश्वरी की जय बोलते हुए उनकी एक सौ एक परिक्रमाएँ दी जाती हैं। इस व्रत में एक बार तो फलाहार किया ही जाता है। अशोक के पत्ते खाने की परम्परा भी है कुछ क्षेत्रों में गोबर से पार्वतीजी की प्रतिमा बनाकर पूजने का विधान भी है। अधिकांश परिवारों में नवदुर्गा पूजा का विसर्जन आज ही होता है जिसमें छोटे बालक-बालिकाओं की पूजा करके उन्हें पूड़ी, हलवा चने और कुछ भेंट दी जाती है।

दुर्गा अष्टमी का महत्त्व

मान्यता है कि हर हिंदू मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत का देवी दुर्गा का मासिक व्रत भी कहा जाता है। आमतौर पर हिंदू कैलेंडर में अष्टमी दो बार आती है। एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में। शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर खासतौर से देवी दुर्गा का पूजा और व्रत किया जाता है।चैत्र शुक्ल अष्टमी का अत्यंत विशिष्ट महत्त्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्र पूजा का जो आयोजन प्रारंभ होता है, वह आज ही के दिन या दूसरे दिन नवमी को पूर्णता प्राप्त करता है। इसी तरह शारदीय नवरात्र की अष्टमी का भी बहुत महत्त्व है। आज के दिन ही आदिशक्ति भवानी का प्रादुर्भाव हुआ था। भगवती भवानी अजेय शक्तिशालिनी महानतम शक्ति हैं और यही कारण है कि इस अष्टमी को महाष्टमी कहा जाता है। महाष्टमी को भगवती के भक्त उनके दुर्गा, काली, भवानी, जगदंबा, नवदुर्गा आदि रूपों की पूजा-आराधना करते हैं। प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्राभूषणों द्वारा पूर्ण शृंगार किया जाता है और फिर विधिपूर्वक आराधना की जाती है। हवन की अग्नि जलाकर धूप, कपूर, घी, गुग्गुल और हवन सामग्री की आहुतियां दी जाती हैं। सिंदूर में एक जायफल को लपेटकर आहुति देने का भी विधान है। धूप, दीप, नैवेद्य से देवी की पूजा करने के बाद मातेश्वरी की जय बोलते हुए 101 परिक्रमाएं दी जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में गोबर से पार्वती जी की प्रतिमा बनाकर पूजने का विधान भी है। वहीं इस दिन कुमारियां तथा सुहागिनें पार्वती जी की गोबर निर्मित प्रतिमा का पूजन करती हैं। नवरात्रों के पश्चात इसी दिन दुर्गा का विसर्जन किया जाता है। इस पर्व पर नवमी को प्रात: काल देवी का पूजन किया जाता है। अनेक पकवानों से दुर्गा जी को भोग लगाया जाता है। छोटे बालक-बालिकाओं की पूजा करके उन्हें पूड़ी, हलवा, चने और भेंट दी जाती है।

दुर्गा अष्टमी की पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि के दिन माता के आठवें स्वरूप की पूजा की जाती है जिन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। यदि आप विधि-विधान से पूजन करती हैं तो समस्त मनोकामनाओं को पूर्ति होती है। मुख्य रूप से शादीशुदा महिलाओं के मलिए माता गौरी का पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है और जीवन में सौभाग्य के संकेत देता है।
  • इस दिन पूजन करने के लिए प्रातः जल्दी उठें और साफ़ वस्त्र धारण करें।
  • माता महागौरी की तस्वीर किसी चौकी पर स्थापित करें और माता को सिंदूर लगाएं।
  • महागौरी माता को सुहाग की सामग्री अर्पित करें और लाल फूल चढ़ाएं।
  • माता गौरी का ध्यान करते हुए उनके मंत्र ओम देवी महागौर्यै नम: का जाप करें।
  • चौक पूरकर लकड़ी के पटे पर पर लाल कपड़ा बिछाएं।
  • मां दुर्गा के मंत्र का जाप करते हुए मूर्ति स्थापित करें।
आगमन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि एवं प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचांग से नव वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्वर निवास और फलाधीप आदि का फल श्रवण करना चाहिए। निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-बंदनवार आदि से सुशोभित करना चाहिए

मंत्र जाप करें

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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