महाशिवरात्रि में भगवान शिव को बेलपत्र बेहद प्रिय हैं कुछ बातों का रखें ध्यान, Belpatra is very dear to Lord Shiva during Mahashivratri, keep some things in mind
महाशिवरात्रि में भगवान शिव को बेलपत्र बेहद प्रिय हैं कुछ बातों का रखें ध्यान,
- क्या हैं बेल पत्र
- शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते समय इन बातों का रखें ध्यान:
- शास्त्रों के अनुसार बेल कि पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए
- बिल्व पत्र तोड़ने का मंत्र
- शिवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बेलपत्र:
- विल्व पत्र अर्पित करने का मंत्र
- कब न तोड़ें बिल्व कि पत्तियां?
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भगवान शिव को बेलपत्र बेहद प्रिय है. शिवपुराण के मुताबिक, समुद्र मंथन से निकले विष के कारण संकट मंडराने लगा था. तब भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को गले में धारण कर लिया. चूंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है, इसलिए सभी देवी देवताओं ने बेलपत्र शिवजी को खिलाना शुरू कर दिया. बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी.
Belpatra is very dear to Lord Shiva during Mahashivratri, keep some things in mind |
क्या हैं बेल पत्र
बिल्व-पत्र एक पेड़ की पत्तियां हैं, जिस के हर पत्ते लगभग तीन-तीन के समूह में मिलते हैं। कुछ पत्तियां चार या पांच के समूह की भी होती हैं। किन्तु चार या पांच के समूह वाली पत्तियां बड़ी दुर्लभ होती हैं। बेल के पेड को बिल्व भी कहते हैं। बिल्व के पेड़ का विशेष धार्मिक महत्व हैं। शास्त्रोक्त मान्यता हैं कि बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता हैं एवं भक्त को शिवल्रोक की प्राप्ति होती हैं। बेल कि पत्तियों में औषधि गुण भी होते हैं। जिसके उचित औषधीय प्रयोग से कई रोग दूर हो जाते हैं। भारतिय संस्कृति में बेल के वृक्ष का धार्मिक महत्व हैं, क्योकि बिल्व का वृक्ष भगवान शिव का ही रूप है। धार्मिक ऐसी मान्यता हैं कि बिल्ववृक्ष के मूल अर्थात उसकी जड़ में शिव लिंग स्वरूपी भगवान शिव का वास होता हैं। इसी कारण से बिल्व के मूल में भगवान शिव का पूजन किया जाता हैं। पूजन में इसकी मूल यानी जड़ को सींचा जाता हैं। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता हैं-
बिल्वमूले महादेवं लिंगरूपिणमव्ययम्।
य: पूजयति पुण्यात्मा स शिवं प्राप्नुयाद॥
बिल्वमूले जलैर्यस्तु मूर्धानमभिषिञ्चति।
स सर्वतीर्थस्नात: स्यात्स एव भुवि पावन:॥
भावार्थ :
बिल्व के मूल में लिंगरूपी अविनाशी महादेव का पूजन जो पुण्यात्मा व्यक्ति करता है, उसका कल्याण होता है। जो व्यक्ति शिवजी के ऊपर बिल्वमूल में जल चढ़ाता है उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल्र जाता है।
शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते समय इन बातों का रखें ध्यान:
बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं, लेकिन इन्हें एक ही पत्ती मानते हैं. भगवान शिव की पूजा में बेल पत्र प्रयोग होते हैं और इनके बिना शिव की उपासना सम्पूर्ण नहीं होती. पूजा के साथ ही बेलपत्र के औषधीय प्रयोग भी होते हैं.
- शिवलिंग पर हमेशा तीन पत्तियों वाला ही बेलपत्र चढ़ाएं.
- बेलपत्र को भगवान शिव को अर्पित करने से पहले अच्छे से धोकर ही इस्तेमाल करें.
- जब भी भोलेशंकर को बेलपत्र चढ़ाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि बेलपत्र चढ़ाने के बाद जल जरूर अर्पण करें.
- शिवपुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है. मान्यता है कि बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर जो भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं.
शास्त्रों के अनुसार बेल कि पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए
- बेल कि पत्तियां सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
- बेल कि पत्तियां चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
- बेल कि पत्तियां संक्रांति के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
- टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए,
- कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए. पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे.
- बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए.
बिल्व पत्र तोड़ने का मंत्र
बिल्व-पत्र को सोच-समझ कर ही तोड़ना चाहिए। बेल के पत्ते तोड़ने से पहले निम्न मंत्र का उच्चरण करना चाहिए
अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रियःसदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥
भावार्थ :-
अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।
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शिवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बेलपत्र:
- महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए.
- शिव जी को बेलपत्र अर्पित करते समय साथ ही में जल की धारा जरूर चढ़ाएं.
- बिना जल के बेलपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए.
- बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए.
- कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैंएवम बिल्वपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं
- बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं. ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं.
- अगर बेलपत्र उपलब्ध न हो, तो बेल के वृक्ष के दर्शन ही कर लेना चाहिए. उससे भी पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं.
- शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए.
बिल्वपत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बिल्व पत्र चढ़ाया जा सकता है जिसे नित्य शुद्ध जल से धो कर शिवलिंग पर पुनः स्थापित कर सकते हैं भगवान शिव के अंशावतार हनुमान जी को भी बेल पत्र अर्पित करने से प्रसन्न किया जा सकता है और लक्ष्मी का वर पाया जा सकता है।
घर की धन-दौलत में वृद्धि होने लगती है। अधूरी कामनाओं को पूरा करता है सावन का महीना शिव पुराण अनुसार सावन माह के सोमवार को शिवालय में बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है। बेल के पेड़ की जरा सी जड़ सफेद धागे में पिरोकर रविवार को पहनें इससे रक्तचाप, क्रोध और असाध्य रोगों से निजात मिलेगा।बिल्व पत्र को श्री वृक्ष भी कहा जाता है। बिल्व पत्र का पूजन पाप व दरिद्रता का अंत कर वैभवशाली बनाने वाला माना गया है। घर में बेल पत्र लगाने से देवी महालक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं। इन पत्तों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इन्हें अपने पास रखने से कभी धन-दौलत का अभाव नहीं होता।
Belpatra is very dear to Lord Shiva during Mahashivratr |
विल्व पत्र अर्पित करने का मंत्र
भगवान शंकर को विल्वपत्र अर्पित करने से मनुष्य कि सर्वकार्य व मनोकामना सिद्ध होती हैं। श्रावण में विल्व पत्र अर्पित करने का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया हैं।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहार, विल्वपत्र शिवार्पणम्
भावार्थ:
तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।
कब न तोड़ें बिल्व कि पत्तियां?
- विशेष दिन या विशेष पर्वों के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना निषेध हैं।
- शास्त्रों के अनुसार बेल कि पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए
- बेल कि पत्तियां सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
- बेल कि पत्तियां चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
- बेल कि पत्तियां संक्रांति के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे |
बिल्वपत्र न च छिन्द्ाच्छिन्याच्चेननरकं व्रजेत ॥
भावार्थ:
अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जेत है।
चढ़ाया गया पत्र भी पूनः चढ़ा सकते हैं?
शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र तोडकर चढ़ाने से मना किया गया हैं तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन :चढ़ा सकते हैं।
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥
भावार्थ:
अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।
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🙏नमस्ते दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर और हमारे ब्लॉग पोस्ट पर हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधित है और मुझे खुशी है कि मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ और मुझे अपने देवी-देवताओं के बारे में पढ़ने की रुचि बहुत है और दोस्तों मुझे लगता है कि मैं अपने हिंदू भाइयों और बहनों के लिए हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधि ब्लॉग पोस्ट करूंगा और हिन्दू धर्म में देवताओं का ज्ञान एक महत्वपूर्ण और उच्चतम स्तर का ज्ञान है। हिन्दू धर्म में अनंत संख्या में देवी-देवताओं की पूजा और आराधना की जाती है, जो सभी विभिन्न गुणों, शक्तियों, और प्रतिष्ठाओं के साथ सम्मानित हैं। विभिन्न पुराणों, ग्रंथों, और धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से, हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के गुण, विशेषताएं, और महत्व का अध्ययन किया जाता है अगर आपको हमारा ब्लॉग पोस्ट पसंद आया हो तो आप इसे सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप आदि पर जरूर शेयर करें। और कृपया हमें कमेंट करके बताएं कि आपको हमारे ब्लॉग पोस्ट की जान कारी कैसे लगी ! "सनातन अमर था अमर हे अमर रहेगा" !!सनातन_धर्म_ही_सर्वश्रेष्ठ_है!!
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