रामायण से जुड़ी Gk के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 376 से 400 तक
प्रश्न 376.मेघनाद को 'ब्रह्मशिरस्' नामक अस्त्र किसने दिया था?
- ब्रह्मा
- शिव
- अग्नि
- दुर्गा
उत्तर ब्रह्मा
ब्रह्मा की प्रेरणा से इन्द्र ने वैष्णव यज्ञ किया, तभी वह देवलोक का अधिपति बनने का अधिकारी हुआ। देवता-गण उसे लेकर देवलोक चले गये। मेघनाद ने निकुंभिला के स्थान पर जाकर अग्निष्टोम, अश्वमेध आदि सात यज्ञ करके शिव से अनेक वर प्राप्त किये थे। सबसे अंतिम माहेश्वर यज्ञ रह गया था। उन यज्ञों के फलस्वरूप उसे 'तामसी' नामक माया की प्राप्ति हुई थी, जो कभी भी अंधकार फैला सकती थी। साथ ही आकाशगामी दिव्य रथ भी प्राप्त हुआ था। मेघनाद को ब्रह्मा के वरदान से ‘ब्रह्माशिर’ नाम का अस्त्र और इच्छानुसार चलने वाले घोड़े प्राप्त थे। वह जिस सिद्धि को प्राप्त करने निकुंभिलादेवी के मंदिर में गया था, उसे सिद्ध करने के उपरांत देवताओं समेत इन्द्र भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था- 'हे इन्द्रजित, यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में तुम्हारे यज्ञ समाप्त करने से पूर्व युद्ध करेगा तो तुम मार डाले जाओगे।'
प्रश्न 377.श्रीराम को 'सत्यवान्' नामक अस्त्र किसने दिया था?
- शिव
- ब्रह्मा
- विश्वामित्र
- इंद्र
उत्तर विश्वामित्र
प्रश्न 378.'सत्यकीर्ति' नामक अस्त्र श्रीराम को किसने दिया था?
- परशुराम
- विश्वामित्र
- याज्ञवल्क्य
- अत्रि
उत्तर विश्वामित्र
प्रश्न 379.'रुचिर' नामक अस्त्र श्रीराम को किसने समर्पित किया था?
- भरद्वाज
- इंद्र
- शिव
- विश्वामित्र
उत्तर विश्वामित्र
प्रश्न 380.लक्ष्मण किस अस्त्र से युद्ध करते थे?
- तलवार
- धनुष-बाण
- गदा
- खड्ग
उत्तर धनुष-बाण
प्रश्न 381.वज्र नामक अस्त्र किस देवता का था?
- इंद्र
- वरुण
- विष्णु
- वायु
उत्तर इंद्र
प्रश्न 382.हनुमान किस शस्त्र से युद्ध करते थे?
- तलवार
- खड्ग
- गदा
- दंड
उत्तर गदा
प्रश्न 383.'नागपाश' नामक अस्त्र मेघनाद को किसने दिया था?
- रावण
- शिव
- ब्रह्मा
- इंद्र
उत्तर इंद्र
प्रश्न 384.नागपाश किस देवता का अस्त्र है?
- इंद्र
- वायु
- वरुण
- अग्नि
उत्तर वरुण
प्रश्न 385.महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को जो दिव्य धनुष दिया था वह किसका था?
- विष्णु
- ब्रह्मा
- शिव
- परशुराम
उत्तर विष्णु
प्रश्न 386.वह कौन सा अस्त्र है जिसके प्रयोग करने पर पत्थरों की वर्षा हेने लगती थी?
- वायव्यास्त्र
- वरुणास्त्र
- पर्वतास्त्र
- अंजलिकास्त्र
उत्तर पर्वतास्त्र
प्रश्न 387.राजा दशरथ ने भ्रमवश श्रवणकुमार पर जिस बाण का प्रहार किया था, उसे क्या कहते हैं?
- ऐंद्रास्त्र
- शब्दवेधी
- जुंभकास्त्र
- ब्रह्मशिरस्
उत्तर शब्दवेधी
प्रश्न 388.राजा जनक ने श्रीराम को (दहेजस्वरूप) जो दिव्य धनुष, अभेद्य कवच, अक्षय बाणों से भरे तूणीर और
सुवर्ण-भूषित खंग दिए थे, वे उन्हें (जनक को) किसने प्रदान किए थे?
- इंद्र
- ब्रह्मा
- महात्मा वरुण
- शिव
उत्तर महात्मा वरुण
प्रश्न 389.'तामस' नामक भयंकर अस्त्र का देवता कौन है?
- राहू (तमोग्रह)
- सूर्य
- वरुण
- ब्रह्मा
उत्तर राहु (तमोग्रह)
प्रश्न 390.उस अस्त्र का नाम बताइए जिसका प्रहार कर लव ने (वाल्मीकि आश्रम के निकट) अयोध्या से आई श्रीराम की सेना को निद्रित कर दिया था?
- जुंभकास्त्र
- वायव्यास्त्र
- वारुणास्त्र
- पाशुपतास्त्र
उत्तर जृभकास्त्र
प्रश्न 391.लोहे के काँटों से भरी हुई चार हाथ लंबी गदा को क्या कहा जाता था?
- शतघ्नी
- प्राणांतक
- विजयिनी
- चंद्रहास
उत्तर शतघ्नी
प्रश्न 392.राजा जनक ने श्रीराम को (दहेजस्वरूप) कुल कितने दिव्य धनुष दिए थे?
- 5
- 3
- 1
- 2
उत्तर 2
प्रश्न 393.लवणासुर के पास जो महान् शूल था वह उसे किसने दिया था?
- मधु
- मारीच
- खर
- सुबाहु
उत्तर मधु
प्रश्न 394.महर्षि वाल्मीकि का आश्रम किस नदी के तट पर था?
- सरयू
- नर्मदा
- चर्मण्वती
- तमसा
उत्तर तमसा
महर्षि वाल्मीिकजी का आश्रम तमसा नदी के किनारे प्रकृति की सौन्दर्य से ओत-प्रोत अतिरमणीय मनभावन स्थान पर था। अनेकों ऋषि-मुनि महर्षि वाल्मीिकजी के शिष्य थे। यह आश्रम शस्त्र एवं शास्त्र सहित विभिन्न ललित कलाओं, विधाओं, साधनाओं का विशाल केन्द्र था।
- महर्षि वाल्मीकि आश्रम
यह स्थान बिठूर, उत्तर प्रदेश में कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित एक नगर है। ये वह पवित्र स्थान माना जाता है जहाँ महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। माता सीता ने श्री राम के द्वारा गृह त्याग के आदेश पर यहीं रहकर समय व्यतीत किया था। यही पर माता जानकी बणदेवी बनकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में लव और कुश को जन्म दिया। यही अस्वमेघ का घोड़ा लव और कुश ने पकड़ा था जिसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने छोड़ा था। यही माता सीता धरती में समाई थी। आश्रम साधारण नगर क्षेत्र से कुछ ऊंचाई पर स्थित है जहाँ एक छोटे पोखर पर सीता कुंड और साथ ही में सीता रसोई है। पास ही स्थित दीपमालिका का स्तंभ या स्वर्ग की सीढ़ी दर्शनीय है। इस स्थापत्य में 48 सीढ़ियाँ है जिन्हें चढ़कर सम्पूर्ण क्षेत्र का नयनाभिराम दृश्य आँखों को शांति देने वाला है।
प्रश्न 395.श्रीराम के वन चले जाने पर भरत उनके वियोग में अयोध्या से दूर किस स्थान पर रह रहे थे?
- नंदिग्राम
- पंचवटी
- महेंद्र पर्वत पर
- तमसा नदी के तट पर
उत्तर नंदिग्राम
बड़े भाई राम के समझाने पर भरत जी रुक तो गए, लेकिन वे वापस अयोध्या नहीं गए। उन्होंने श्रीराम जी से खड़ाऊं लेकर उनके प्रतीक के तौर पर नंदीग्राम से ही राजपाट चलाने लगे। भरत खुद को एक राजा नहीं, बल्कि श्रीराम को ही राजा मान उनके प्रतिनिधि के तौर पर अयोध्या का राजकाज चलाते रहे। एक तरह से इतने दिनों तक नंदीग्राम ही राजधानी बनी रही।
प्रश्न 396.जिस समय राम वनवास के लिए जा रहे थे उस समय भरत व शत्रुघ्न कहाँ थे?
- अयोध्या में ही
- आखेट हेतु बन गए थे
- भरत के ननिहाल (केकय देश) में
- वसिष्ठ के आश्रम पर
उत्तर भरत के ननिहाल (केकय देश) में
प्रश्न 397.वनवास काल में श्रीराम सर्वाधिक समय तक किस स्थान पर ठहरे थे?
- समुद्र तट पर
- चित्रकूट में
- किष्किंधा पर्वत पर
- भरद्वाज आश्रम में
उत्तर चित्रकूट में
रामायण के मुताबिक, श्रीराम ने वनवास के दौरान चित्रकूट के जंगलों में 11 साल, 11 महीने और 11 दिन बिताए थे. श्रीराम ने चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर पर्णकुटी बनाई थी और माता मंदाकिनी के पवित्र जल में स्नान किया था
प्रश्न 398.शबरी किस वन में रहती थी?
- मतंग वन
- काम्यक वन
- दंडक वन
- वृंदावन
उत्तर मतंग वन
दंडकारण्य में भक्ति-श्रद्धा सम्पन्न एक वृद्धा भीलनी रहती थीं जिनका नाम था शबरी। एक दिन वह घूमती हुई पंपा नामक पुष्करिणी के पश्चिमी तट पर स्थित एक अति स्मणीय मतंग वन में मतंग मुनि के अत्यंत सुंदर आश्रम में पहुंचीं।
प्रश्न 399.किष्किंधा से बालि द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद सुग्रीव कहाँ रहने लगे थे?
- ऋष्यमूक पर्वत पर
- महेंद्र पर्वत पर
- इंद्रकील पर्वत पर
- मैनाक पर्वत पर
उत्तर ऋष्यमूक पर्वत पर
अपना प्रतिशोध लेने के लिए, बाली ने सुग्रीव की पत्नी रूमा को जबरन अपने साथ ले लिया और दोनों भाई कटु शत्रु बन गये। सुग्रीव ऋष्यमुख पर्वत पर रहने लगे, यह पृथ्वी पर एकमात्र स्थान था जिस पर बाली कदम नहीं रख सकता था।
प्रश्न 400.लंका पहुँचकर श्रीराम की वानर सेना किस पर्वत के पास ठहरी थी?
- सुमेरु
- सुवेल
- ऋष्यमूक
- नील
उत्तर सुवेल
लंका के महल में रावण राग रंग में मस्त है तो सुबेल पर्वत पर श्री राम बड़ी भारी सेना के पहुंचे. पर्वत के एक ऊंचे. परम रमणीय, समतल और विशेषरूप से उज्जवल शिखर को देखकर लक्ष्मण जी ने अपने हाथों से पेड़ों के कोमल पत्ते और सुंदर फूल एक स्थान पर सजा दिए, उसके ऊपर मृगछाला बिछा दी जिस पर श्री रघुनाथ जी को विराजमान कर दिया गया. प्रभु श्री राम ने वानरराज सुग्रीव की गोद में अपने सिर रख दिया, उन्होंने बाएं ओर धनुष तथा दाएं ओर तरकस रख दिया. विभीषण जी भी उनके कानों से लगकर सलाह कर रहे हैं. परम भाग्यशाली युवराज अंगद और हनुमान जी प्रभु के पैरों को दबा रहे हैं. लक्ष्मण जी धनुष बाण लिए पीछे की ओर मौजूद हैं.
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