नवरात्र (दुर्गापूजन) चैत्र नवरात्रि 2024
हम हिन्दू हैं अतः हमें चाहिए कि नववर्ष के दिन अपने घरों के दरवाजों पर आम और अशोक के पत्तों की वन्दनवारें लगाएँ तथा घरों को सजाएँ। नववर्ष के स्वागत में मकानों के ऊपर गेरूए रंग की धर्म-ध्वजाएँ भी हमें फहरानी चाहिए। ब्राह्मणों, गुरुजनों और अपने से बड़ों को प्रणाम करके उनसे आशीर्वाद तो हमें लेने ही चाहिए, नव वर्ष का पंचांग सुनने का भी विशिष्ट धार्मिक महत्त्व है। इसके लिए उचित तो यही है कि नए वर्ष का पंचांग अथवा जन्त्री पहले ही घर लाकर रख ली जाए। वासन्तीय नवरात्र पर्व चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा से लेकर रामनवमी तक मनाया जाता है। इन दिनों भगवती दुर्गाजी की पूजा तथा कन्या पूजन का विधान है।प्रतिपदा के दिन कलश की स्थापना एवं जौ बोने की क्रिया की जाती है। नौ दिन तक ब्राह्मण द्वारा या स्वयं देवी भगवती दुर्गा का पाठ करने का विधान है।
Navratri (Durga Pujan) Chaitra Navratri 2024 |
नवरात्रि की शुरूआत
हर साल 4 नवरात्रि पड़ती हैं जिनमें से चैत्र मास में पड़ने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहते हैं. इस वर्ष 22 मार्च से नवरात्रि की शुरूआत हो रही है. नौ दिन मनाई जाने वाली नवरात्रि का अंत 30 मार्च के दिन होगा. नवरात्रि (Navratri) की नवमी तिथि पर ही राम नवमी मनाई जाती है. माना जाता है कि जो भक्त नवरात्रि पर मां दुर्गा (Ma Durga) की विशेष पूजा-आराधना करते हैं उन्हें देवी मां का खास आशीर्वाद मिलता है और उनपर मां की कृपादृष्टि पड़ती है. यहां जानिए किस तरह धार्मिक मान्यतानुसार किया जा सकता है मां दुर्गा के नौ रूपों का पूजन.
- पहले दिन - मां शैलपुत्री
- दुसरे दिन- मां ब्रह्मचारिणी
- तीसरे दिन- मां चंद्रघटा
- चौथे दिन- मां कूष्माणा
- पांचवे दिन- मां स्कंद माता
- छठे दिन -मां कात्यायनी
- सातवें दिन- मां कालरात्रि
- आठवें दिन- मां महागौरी
- नौंवे दिन - मां सिद्धिरात्रि
- नवरात्रि के दिन सुबह उठकर निवृत्त होकर स्नान किया जाता है
- स्नान पश्चात व्रत का संकल्प लेते हैं.
- इसके बाद पूजा का आसन तैयार किया जाता है और माता रानी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित की जाती है जिसके समक्ष पूजा की जाती है.
- मां शैलपूत्री की पूजा करने के लिए मां के सामने धूप व देसी घी के दीपक जलाए जाते हैं.
- पूजा करने के लिए माता रानी की आरती करें, मुहूर्त के अनुसार घटस्थापना करें.
- इस दिन मां शैलपुत्री के प्रिय रंग सफेद को पूजा में अत्यधिक सम्मिलित किया जाता है. मां को भोग में सफेद चीजें अर्पित की जाती हैं और पूजा में सफेद फूलों को चढ़ाना शुभ समझा जाता है.
- दुर्गा आरती (Durga Aarti), भजन, स्तुति और चालीसा का पाठ किया जा सकता है.
- भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और दिनभर नमक वाली चीजों का या अन्न का सेवन नहीं करते हैं और फलाहार कर पूजा में लीन रहते हैं.
नवरात्र (दुर्गापूजन) कथा
प्राचीन समय में सुरथ नाम के राजा थे। राजा प्रजा की रक्षा में उदासीन रहने लगे थे। परिणाम स्वरूप पड़ोसी राजा ने उन पर चढ़ाई कर दी। सुरथ की सेना भी शत्रु से मिल गई थी। परिणाम स्वरूप राजा सुरथ की हार हुई और वह जान बचाकर जंगल की तरफ पलायन कर गया। उसी वन में समाधि नामक एक वणिक् अपनी स्त्री एवं संतान के दुर्व्यवहार के कारण निवास करता था। उसी वन में वणिक् समाधि और राजा सुरथ की भेंट हुई। दोनों में परस्पर परिचय हुआ। वे दोनों घूमते हुए महर्षि मेधा के आश्रम में पहुँचें। महर्षि मेधा ने उन दोनों के आने का कारण जानना चाहा तो वे दोनों बोले कि हम अपने ही सगे-सम्बन्धियों द्वारा अपमानित एवं तिरस्कृत होने पर भी हमारे हृदय में उनका मोह बना हुआ है, इसका क्या कारण है?महर्षि मेधा ने उन्हें समझाया कि मन शक्ति के आधीन होता है और आदि शक्ति के विद्या और अविद्या दो रूप हैं। विद्या ज्ञान-स्वरूप है और अविद्या अज्ञान स्वरूपा। जो व्यक्तिअविद्या के आदिकरण रूप में उपासना करते हैं, उन्हें वे विद्या स्वरूपा प्राप्त होकर मोक्ष प्रदान करती हैं। इतना सुन राजा सुरथ ने प्रश्न किया- हे महर्षि ! देवी कौन है? उसका जन्म कैसे हुआ? महर्षि बोले- आप जिस देवी के विषय में पूछ रहे हैं वह नित्य स्वरूपा और विश्व व्यापिनी हैं। उसके बारे में ध्यान पूर्वक सुनो। कल्पांत के समय विष्णु भगवान् क्षीर सागर में अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे थे, तब उनके दोनों कानों से मधु और कैटभ नामक दो दैत्य उत्पन्न हुए। वे दोनों विष्णु की नाभि कमल से उत्पन्न ब्रह्माजी को मारने दौड़े। ब्रह्माजी ने उन दोनों राक्षसों को देखकर विष्णुजी की शरण में जाने की सोची। परन्तु विष्णु भगवान् उस समय सो रहे थे। तब उन्होंने विष्णु भगवान् को जगाने हेतु उनके नयनों में निवास करने वाली योगनिद्रा की स्तुति की। परिणामस्वरूप तमोगुण, अधिष्ठात्री देवी विष्णु भगवान् के नेत्र, नासिका, मुख तथा हृदय से निकलकर ब्रह्मा के समाने उपस्थित हो गई। योगनिद्रा के निकलते ही विष्णु भगवान् उठकर बैठ गए। भगवान् विष्णु और उन राक्षसों में पाँच हजार वर्षों तक युद्ध चलता रहा। अन्त में मधु और कैटभ दोनों राक्षस मारे गए। ऋषि बोले- अब ब्रह्माजी की स्तुति से उत्पन्न महामाया देवी की वीरता तथा प्रभाव का वर्णन करता हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनो।
एक समय देवताओं के स्वामी इन्द्र तथा दैत्यों के स्वामी महिषासुर में सैकड़ों वर्षों तक घनघोर संग्राम हुआ। इस युद्ध में देवराज इन्द्र की पराजय हुई और महिषासुर इन्द्रलोक का स्वामी बन बैठा। अब देवतागण ब्रह्मा के नेतृत्व में भगवान् विष्णु और भगवान् शंकर की शरण में गए। देवताओं की बातें सुनकर भगवान् विष्णु तथा भगवान् शंकर क्रोधित हो गए। भगवान् विष्णु के मुख तथा ब्रह्मा, शिवजी तथा इन्द्र आदि के शरीर से एक तेज पुंज निकला जिससे समस्त दिशाएँ जलने लगीं और अन्त में यही तेज पुंज एक देवी के रूप में परिवर्तित हो गया।देवी ने सभी देवताओं से आयुद्ध एवं शक्ति प्राप्त करके उच्च स्वर में अट्टहास किया जिससे तीनों लोकों में हलचल मच गई। महिषासुर अपनी सेना लेकर इस सिंहनाद की ओर दौड़ा। उसने देखा कि देवी के प्रभाव से तीनों लोक आलोकित हो रहे हैं। महिषासुर की देवी के सामने एक भी चाल सफल नहीं हुई और वह देवी के हाथों मारा गया। आगे चलकर यही देवी शुम्भ और निशुम्भ राक्षसों का वध करने के लिए गौरी देवी के रूप में अवतरित हुईं। इन उपरोक्त व्याख्यानों को सुनाकर मेधा ऋषि ने राजा सुरथ तथा वणिक् से देवी स्तवन की विधिवत् व्याख्या की। राजा और वणिक् नदी पर जाकर देवी की तपस्या करने लगे। तीन वर्ष घोर तपस्या करने के बाद देवी ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। इससे वणिक् संसार के मोह से मुक्त होकर आत्मचिंतन में लग गया और राजा ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके अपना वैभव प्राप्त कर लिया।
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