चैत्र पूर्णिमा ( पजूनो-पूनो व्रत ) 2024 Chaitra Purnima (Pajuno-Poono Vrat) 2024

 चैत्र पूर्णिमा ( पजूनो-पूनो व्रत )

चैत्र पूर्णिमा

धर्मशास्त्रों में चैत्र मास की पूर्णिमा का बहुत महत्व है। इसको मधु पूर्णिमा और चैते पूनम भी कहा जाता है। चैत्र पूर्णिमा पर सूर्योदय के पूर्व उठकर पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने, दान करने और व्रत पूजा के संकल्प से मनोकामनाएं पूर्ण होती है। चैत्र पूर्णिमा पजूनो-पूनो भी कहलाती है। इस दिन पजून कुमार का पूजन होता है, व्रत नहीं रखा जाता। पूजन उन्हीं घरों में होता है, जिनके कोई लड़का होता है। जिस घर में लड़कियाँ ही होती हैं, वहाँ पूजन नहीं होता ऐसा विधान है। इस दिन किसी के यहाँ पाँच और किसी के यहाँ सात मटकियाँ पूजी जाती है। मटकियों में एक करवा भी होता है। करवे समेत ही पांच या सात की गिनती पूरी की जाती है। मटकियाँ चूने या खड़िया मिट्टी से रंगी जाती है और करवे पर हल्दी से पजूनकुमार और उनकी दोनों माताओं के चिन्न बनाये जाते है। शुद्ध स्थान में गोबर से लीप कर चौक पूरा जाता है। बीच में पजूनकुमार का करवा और चारों ओर दूसरी मटकियाँ रखी जाती हैं। चन्दन, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य से मटकियों की पूजा करके कथा कही जाती है। एक स्त्री कथा कहती है और अन्य सभी स्त्रियाँ हाथ में अक्षत लेकर बैठ जाती हैं। कथा पूरी होने पर वे सब मटकियों पर अक्षत छोड़ती हैं और मटकियों को दण्डवत् प्रणाम करती हैं। इसके बाद लड़का सब मटकियों को हिला हिलाकर उन्हीं की जगह रख देता है। पजूनकुमार की मटकी में-से लड़का लड्डू पकवान निकालकर माँ की झोली में डालता है। तब माँ लड़के को लड्डू पकवान आदि देती है और फिर घर के सब लोगों को मटकियों का पकवान प्रसाद बाँटा जाता है। प्रसाद के रूप में बाँटते समय कहा जाता है-
पजून के लडुवा पजूने खाय। 
दौर दौर वही कोठरी में जाय।।

चैत्र पूर्णिमा का व्रत और विधि

  • प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर या मंदिर में भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और भगवान हनुमान की प्रतिमा या मूर्ति का विधि-विधान से पूजन करें
  • उन्हें पुष्प, फल, तुलसी दल और मिठाई का भोग अर्पित करें।
  • "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय", "ॐ हनुमते नमः" अथवा "ॐ गं गणपते नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • दिनभर सात्विक भोजन करें या फलाहार करें।
  • शाम को फिर से पूजा करें और आरती उतारें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करें।

चैत्र पूर्णिमा की तिथि और महत्व

मंगलवार, 23 अप्रैल, 2024
चैत्र महीने की पूर्णिमा को हनुमान जयंती और कामदा एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी पूर्ण अवस्था में होता है, जो सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक अनुभूति को बढ़ाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से पाप नाश होते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

चैत्र पूर्णिमा का व्रत  

प्राचीन समय में वासुकी नामक राजा की दो रानियाँ थीं। एक का नाम सिकौली तथा दूसरी का नाम रूपा था। दोनों ही रानियों के कोई संतान नहीं थी। बड़ी रानी सिकौली, सास-ननद की प्यारी थी, जबकि छोटी रानी रूपा राजा को प्यारी थी।अपने प्रति सास-ननद का यह व्यवहार देखकर छोटी रानी रूपा का मन बहुत दुखी होता था। परन्तु चूंकि राजा उसका पूरा ध्यान रखते थे और उसे बहुत प्यार करते थे, इसलिए वह किसी प्रकार की चिंता नहीं करती थी। किंतु अन्य स्त्रियों की तरह उसकी भी चाह थी कि उसके भी पुत्र हो और वह भी माँ कहलाए। किंतु बहुत समय गुजर जाने पर भी वह माँ नहीं बनी। तब एक दिन उसने बड़ी-बूढ़ी स्त्रियों से पुत्रवती होने का उपाय पूछा। इस पर एक वृद्धा ने कहा- संतान तो सास-ननद के आशीर्वाद से प्राप्त होती है। यह सुनकर छोटी रानी ने सोचा कि यह कैसे हो पाएगा, क्योंकि सास-ननद तो उससे नाराज रहती हैं। जब छोटी रानी ने अपनी समस्या उस वृद्धा को बताई तो उसने एक उपाय बता दिया- तुम ग्वालिन का वेष बनाकर अपनी सास-ननद के पैर छुओ, वे तुम्हें आशीर्वाद देंगी। रानी रूपा ने वैसा ही किया। उसकी बात मानकर दूसरे दिन ही छोटी रानी ग्वालिन का वेश बनाकर और सिर पर दूध की मटकियाँ रखकर सास-ननद के महल में जा पहुँची।
उसने अपने चेहरे पर घूंघट निकाल रखा था। महल में जैसे ही उसने सास-ननद को अपने सामने देखा, वैसे ही सिर से दूध की मटकियाँ उतारी और उनके पावँ छू लिए। इस पर सास-ननद ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद के प्रभाव से छोटी रानी कुछ ही दिनों में गर्भवती हो गई। यह खबर सुनकर राजा भी खुश हुए। गर्भ रहने से छोटी रानी जितना प्रसन्न थी उससे कहीं ज्यादा छोटी रानी दुःखी थी कि प्रसव के समय उसकी देखभाल कौन करेगा। उसने यह बात राजा को बताई तो राजा ने कहा- तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। मैं तुम्हारे महल में घंटियाँ लगवा देता हूँ। जब तुम्हें कोई कष्ट हो या प्रसव काल नजदीक हो तो तुम डोरी खींच देना। जैसे ही घंटी बजेगी, मैं तुम्हारे पास चला आऊँगा। कुछ समय बीत जाने पर एक दिन रानी ने राजा की परीक्षा लेने के लिए डोरी खींचकर घंटी बजा दी। घंटी की आवाज सुनकर राजा दरबार छोड़कर छोटी रानी के समक्ष उपस्थित हो गया। किंतु जब उसे यह पता चला कि रानी ने केवल परीक्षा लेने के लिए घंटी बजाई है तो वह नाराज होकर राजदरबार में वापस यह कहता हुआ चला गया- अब मैं प्रसव काल में घंटी बजाने पर भी नहीं आऊँगा। यह सुनकर छोटी रानी को दुःख हुआ। उसने सोचा कि मैंने राजा को व्यर्थ ही परेशान किया। कुछ दिनों पश्चात् रानी को सचमुच ही प्रसव पीड़ा हुई तो उसने घंटी बजा दी। किंतु इस बार राजा नहीं आया। उसने यही सोचा कि इस बार भी शायद रानी ने यूँ ही घंटी बजाई। तब प्रसव पीड़ा से त्रस्त लाचार होकर वह सास-ननद के पास पहुँची और अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा- जिस समय तेरे पेट में तेज दर्द हो तो तू कोने में मुँह करके ओखली पर बैठ जाना। सब ठीक हो जाएगा तथा तेरा प्रसव सुखपूर्वक हो जाएगा। सीधी-सादी छोटी रानी उनके छल को न समझ सकी। वह अपने महल में वापस आ गई और सब इन्तजाम करवा लिया। जब प्रसव का समय आया तो उसने वैसा ही किया। बच्चा पैदा होकर ओखली में गिर गया। उधर सास-ननद भी इसी ताक में थीं तथा बड़ी रानी सिकौली भी उनके साथ मिली हुई थी। वे सभी तुरन्त वहाँ आ गई। सास-ननद ने बच्चे को निकालकर ओखली में कंकर-पत्थर भरवा दिए तथा एक दासी को बच्चा देकर कहा- इसे घूरे में फेंक आ।
कुछ देर बाद रानी रूपा को होश आया तो उन्होंने कहा- तुमने तो कंकर-पत्थर जन्में हैं। इसी बीच प्रसव का समाचार सुनकर राजा भी वहाँ आ पहुँचा। लेकिन जब पता चला कि रानी ने कंकर-पत्थर जन्मे हैं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन माँ-बहन को वहाँ मौजूद देखकर और उनके द्वारा पुष्टि किए जाने पर वह चुप हो गया। परन्तु उसे यह समझते देर नहीं लगी कि अवश्य ही इन्होंने कोई चालाकी की है। जिस दिन रूपा ने बच्चे को जन्म दिया था, उस दिन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा थी। सौभाग्वश उस दिन जब एक कुम्हारी घूरे पर कूड़ा फेंकने आई तो नवजात बालक को वहाँ पड़े देखा। वह निःसंतान थी, अतः उसे उठाकर अपने घर ले गई। इस बात का उसने किसी से भी जिक्र नहीं किया, ताकि कहीं बच्चा छिन न जाए। वह बड़े लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण करने लगी। जब बालक थोड़ा बड़ा हुआ तो कुम्हार ने उसके खेलने के लिए मिट्टी का एक घोड़ा बना दिया। लड़का उस घोड़े को नदी के किनारे ले जाकर उसका मुँह पानी में डुबोकर कहता - मिट्टी के घोड़े पानी पी चें, चें, चें ! उसी घाट पर रनिवास की स्त्रियाँ नहाने के लिए आती थीं। लड़के को रोज-रोज ऐसा कहते देखकर, एक दिन एक स्त्री ने सुनकर उसे फटकारा-ऐ कुम्हार के छोकरे ! तुम्हारा दिमाग खराब है क्या ? क्या तुम पागल हो ? कहीं मिट्टी का घोड़ा भी पानी पीता है? रानी के कंकर-पत्थर पैदा होने का समाचार सब जगह फैल चुका था। अतः वह लड़का यह जान गया था। इसलिए लड़के ने तुरन्त उत्तर दिया- सिर्फ मैं ही पागल नहीं हूँ, इस संसार में सब ही लोग पागल हैं। यदि रानी के गर्भ से कंकर-पत्थर पैदा हो सकते हैं तो मेरा मिट्टी का घोड़ा भी पानी पी सकता है। लड़के की बात सुनकर स्त्रियाँ समझ गई कि यह रानी रूपा का ही बेटा है। उन्होंने महल में लौटकर रानी सिकौली को सारा वृत्तांत सुनाया। उन्होंने कहा तुम्हारी सौतन का लड़का तो कुम्हार के घर पल रहा है। तब यह सुनकर बड़ी रानी ने उसे मरवाने का षड्यंत्र रचा और मैले- कुचैले वस्त्र पहनकर कोप भवन में लेट गई। राजा ने महल में जाकर कारण पूछा तो उसने कहा- कुम्हार का जो लड़का है वह हमारी दासियों को चिढ़ाता है। अतः जब तक वह लड़का मौत के घाट नहीं उतार दिया जाएगा, मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगी। लेकिन राजा समझदार था। उसने कहा- इस छोटे से अपराध के कारण उसको प्राणदण्ड देना उचित नहीं। फिर भी मैं उसे देश निकाला देकर इस राज्य से निकाल सकता हूँ। रानी मान गई और रानी की इच्छानुसार उस लड़के को राज्य से निकाल दिया गया। वह दूसरे राज्य में जाकर रहने लगा। थोड़े दिनों बाद वह लड़का वेष बदलकर सुंदर वस्त्र पहनकर राजा वासुकी के दरबार में आने लगा। राजा उसे किसी दरबारी का पुत्र समझता रहा और राजमंत्री उसे राजा का संबंधी। फलतः उसे कभी संदेह की दृष्टि से नहीं देखा गया। उसके आचरण से सब प्रसन्न तथा सन्तुष्ट थे। वह प्रतिदिन दरबार में बैठकर राजकाज की सारी कार्यवही देखता और हर बात ध्यान में रखता।, इस प्रकार दिन गुजरते गए और एक साल बीत गया। अगले साल उस राजा के राज्य में वर्षा नहीं हुई। पूरा वर्ष बीत गया, राज्य में अकाल पड़ने लगा। राज पण्डितों ने राजा को सलाह दी- यदि राजा-रानी रथ में बैल की तरह कंधा देकर चलें और चैत्र पूर्णिमा को पैदा हुआ कोई द्विज बालक रथ को हांके तो वर्षा होने का योग बन सकता है। यह सुनकर राजा-रानी रथ में जुतने को तैयार हो गए। जब द्विज बालक की खोज होने लगी, तब कुम्हार के बालक ने बताया- मेरा जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हुआ है। मेरा जन्म तो क्षत्राणी के गर्भ से हुआ लेकिन पालन-पोषण नीच घर में हुआ है। मैं रथ भी हाँक सकता हूँ। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और रथ चलाने की तैयारियाँ होने लगी। इसी बीच वह बालक रानी रूपा के पास पहुँचा और अपना परिचय देकर बोला- माँ! यदि कोई तुमसे रथ संबन्धी काम करने को कहे तो तुम कह देना कि पहले बड़ी रानी रथ में जुतेगी। इसी भाँति अन्य कामों में भी तुम बड़ी रानी को ही आगे रखना। रूपा ने उसकी बात मान ली। इधर रथ चलने की तैयारी होने लगी। रानी रूपा को जगह लीपने के लिए कहा गया। रूपा ने कहा- पहले बड़ी रानी लीपे, फिर मैं लीपूँगी। इस तरह रानी सिकौली के लीपने के बाद रूपा ने भी जगह लीप दी। इसी प्रकार जब रथ में कँधा देने की बारी आई तो रानी रूपा ने साफ इन्कार कर दिया। उसने कहा- पहले बड़ी रानी कन्धा दे, फिर मैं दूँगी। लाचार सिकौली को ही पहल करनी पड़ी और रथ को कंधा देना पड़ा। रथ को कंधा देते ही तेज धूप निकल आई। बालक रूपी राजकुमार ने पहले से ही मार्ग में गोखरू के कांटे बिखेर दिए थे। रथ आगे बढ़ रहा था। रानी के पैरों में नीचे से कांटे चुभते तथा ऊपर से वह बालक कोड़े बरसाता। बड़ी रानी आगे बढ़ती रही और असहनीय कष्ट झेलती रही। परन्तु इनसे उसे तभी छुटकारा मिला जब रथ निश्चित जगह पर पहुँच गया। अब रानी रूपा की बारी थी। उसके रथ में कन्धा देते ही आकाश में सावनी घटाएँ छा गईं। रास्ते में गोखरू के काँटे हट गए और उनकी जगह फूल खिल गए। रानी रूपा को जरा भी कष्ट नहीं हुआ। रथ चलाने का काम पूरा होते ही वर्षा होने लगी। यह देखकर पूरे राज्य में खुशी छा गई, लोग फूले न समाए और खुशी से नाचने लगे।
तभी उस बालक ने रानी रूपा के पास जाकर उसके चरण छुए। अब सभी जान गए कि यही रानी रूपा का पुत्र है। राजा ने उसे अपना पुत्र जान गले से लगा लिया। यह समाचार पाकर सब जगह आनन्दोल्लास की लहर दौड़ गई। अंत में राजकुमार पजून कुमार सबसे मिलने रनिवास में गया। सबसे पहले वह अपनी दादी के पास गया और कहने लगा-दादी! हम आए, क्या तुम्हारे मन भाए? दादी ने उत्तर दिया- बेटा! नाती-पोते किसे बुरे लगते हैं? पजून कुमार बोला- तुमने मेरे मन की बात नहीं कही। तुम्हारी बात बेकार और अधूरी है। मैं तुम्हें शाप देता हूँ तुम अगले जन्म में दहलीज हो जाओगी। फिर वह अपनी बुआ के पास जाकर बोला- बुआ री बुआ! हम आए, क्या तुम्हारे मन भाए? बुआ ने कहा- भतीजे किसे बुरे लगते हैं? परिणामतः पजून कुमार ने बुआ को चौका लगाने वाला मिट्टी का बर्तन हो जाने का शाप दे दिया। फिर वह अपनी सौतेली माँ सिकौली के पास जाकर बोला- माँ ! माँ ! हम आए, क्या तुम्हारे मन भाए? माता सिकौली ने उत्तर दिया- आए सो अच्छे आए, जेठी के हो या लहूरी के, हो तो लड़के ही। राजकुमार ने कहा- तुमने भी मेरे मन बात नहीं कही। तुमने तो रूखी बात कही है, इसलिए तुम घुँघची बनोगी। घुँघची आधी काली तथा आधी लाल होती है। अंत में पजून कुमार अपनी सगी माँ रानी रूपा के पास गया और बाला- माँ! माँ! हम आए, तुम्हारे मन भाए या न भाए? रानी रूपा बोली- बेटा! आए आए ! हमने न पाले, न पोसे, न खिलाए, न पिलाए! हम क्या जाने कैसे आए? यह सुनते ही वह बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोने लगा। छोटी रानी ने उसे गोद में उठा लिया। रूपा के दूध उतर आया और मातृ-भाव से विह्वल होकर उसे दूध पिलाने लगी। यह समाचार जब राजा के पास पहुँचा, तो मारे हर्ष के गद्गद् हो गया। यह सब देख वह बहुत प्रसन्न हुआ और पूरे राज्य में उत्सव मनाने का आदेश दिया। गरीबों को दान दिया गया। राज्य में शहनाइयाँ बजने लगी, तोपें अपने आप छूटने लगीं। कहते हैं उसी दिन से पजून पूनो व्रत उत्सव मनाया जाने लगा।

चैत्र पूर्णिमा 2024:व्रत विधि और शुभफल पाने के उपाय

हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। वर्ष के 12 महीनों में हर महीने की पूर्णिमा को अलग-अलग मान्यताएं और अनुष्ठान जुड़े होते हैं। वहीं चैत्र पूर्णिमा, जो इस वर्ष 23 अप्रैल 2024 को पड़ रही है, का महत्व और भी बढ़ जाता है। आइए, इस पावन अवसर के बारे में विस्तार से जानें

चैत्र पूर्णिमा की तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा 2024 - 23 अप्रैल को पड़ रही है। चैत्र महीने की पूर्णिमा को हनुमान जयंती और कामदा एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

चैत्र पूर्णिमा का मुहूर्त

चैत्र पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त 23 अप्रैल 2024 को शाम 6:01 बजे से शुरू होकर 24 अप्रैल 2024 को सुबह 10:04 बजे तक रहेगा। इस अवधि में आप भगवान विष्णु और भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

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