श्री राणी सती चालीसा
- शुभ मुहूर्त का चयन: श्री राणी सती चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- श्री राणी सती माता की मूर्ति या छवि का स्थापना: श्री राणी सती माता की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
- पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
- श्री राणी सती चालीसा का पाठ: श्री राणी सती चालीसा का पाठ करें भक्तिभाव से।
- मन्त्रों का जप: श्री राणी सती माता के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ जय शिव शंकरा, राणी सती कृपा करो" या अन्य मंत्र।
- आरती और भजन: श्री राणी सती माता की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
- आरती और प्रशाद: श्री राणी सती माता की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से श्री राणी सती माता की आराधना करनी चाहिए।
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दूषित भाव सुधार ।
राणी सती सुविमल यश, बरणों मति अनुसार ।
कामक्रोध मद लोभ में, भरम रह्यो संसार ।
शरण गहि करुणामयी, सुख सम्पत्ति संचार ।
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती
भवान, जग विख्यात सभी मन मानी ।
नमो नमो संकटकूँ
हरनी, मन वांछित पूरण सब करनी ।
नमो नमो जय जय
जगदम्बा, भक्तन काज न होय विलम्बा ।
नमो नमो जय-जय जग
तारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी ।
दिव्य रूप सिर
चुँदर सोहे, जगमगात कुण्डल मन मोहे ।
माँग सिन्दूर
सुकाजर टीकी, गज मुक्ता नथ सुन्दरर नीकी ।
गल बैजन्ती माल
बिराजे, सोलहुँ साज बदन पे साजे ।
धन्य भाग्य
गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को ।
तनधन दास पतिवर
पाये, आनन्द मंगल होत सवाये ।
जालीराम पुत्र
वधू होके, वंश पवित्र किया कुल दोके ।
पति देव रण माँय
झुझारे, सती रूप हो शत्रु संहारे |
पति संग ले सद्
गति पाई, सुर मन हर्ष सुमन बरसाई ।
धन्य धन्य उस
राणा जी को, सुफल हुबा कर दरस सती को ।
विक्रम तेरा सौ
बावनकूँ, मंगसिर बदी नौमी मंगलकूँ ।
नगर झुंझुनू
प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता ।
दूर देश के
यात्री आवे, धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
उछाड़ उछाड़ते हैं
आनन्द से, पूजा तन मन धन श्री फल से ।
जात जडूला रात
जगावे, बाँसल गोती सभी मनावे ।
पूजन पाठ पठन
द्विज करते, वेद ध्वनि मा से उच्चरते ।
नाना भाँति-भाँति
पकवाना, विप्रजनों को न्यूत जिमाना ।
श्रद्धा भक्ति
सहित हरषाते, सेवक मन वाँछित फल पाते ।
जय जय कार करे नर
नारी, श्री राणी सती की बलिहारी ।
द्वार कोट नित
नौबत बाजे, होत श्रृंगार साज अति साजे ।
रत्न सिंहासन
झलके नीको, पल-पल छिन छिन ध्यान सती को ।
भाद्र कृष्ण मावस
दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला ।
भक्त सुजन की
सकड़ भीड़ है, दर्शन के हित नहीं छोड़ है ।
अटल भुवन में ज्योति
तिहारी, तेज पुंज जग माँय उजियारी ।
आदि शक्ति में
मिली ज्योति है, देश देश में भव भौति है ।
नाना विधि सो
पूजा करते, निश दिन ध्यान तिहारा धरते ।
कष्ट निवारिणी, दुःख नाशिनी, करुणामयी झुंझुनू वासिनी ।
प्रथम सती
नारायणी नामां, द्वादश और हुई इसि धामा ।
तिहूँ लोक में
कीर्ति छाई, श्री राणी सती की फिरी दुहाई ।
सुबह शाम आरती
उतारे, नौबत घण्टा ध्वनि ढँकारे ।
राग छत्तिसों
बाजा बाजे, तेरहुँ मण्ड सुन्दर अति साजे ।
त्राहि त्राहि
मैं शरण आपकी, पूरो मन की आश दास की।
मुझको एक भरोसो
तेरो, आन सुधारो कारज मेरो ।
पूजा जप तप नेम न
जानूँ, निर्मल महिमा नित्य बखानूँ ।
भक्तन की आपत्ति
हर लेनी, पुत्र पौत्र वर सम्पत्ति देनी ।
पढ़े यह चालीसा
जो शतबारा, होय सिद्ध मन माँहि बिचारा ।
'गोपीराम' (मैं) शरण ली थारी, क्षमा करो सब चूक हमारी ।
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जग जीवन आधार ।
बिगड़ी बात सुधारिये सब अपराध बिसार ।
टिप्पणियाँ