श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा
"श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा" का पाठ करने की विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि व्रत, पूजा, या विशेष पर्व।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- देवी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: विन्ध्येश्वरी माता की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- पूजा का आरंभ: विन्ध्येश्वरी माता की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, देवी माता की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
॥ दोहा ॥
नमो नमो
विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।
सन्त जनों के काज में करती नहीं विलम्ब ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय
विन्ध्याचल रानी, आदि शक्ति जग
विदित भवानी ।
सिंहवाहिनी जय
जगमाता, जय जय जय त्रिभुवन
सुखदाता |
कष्ट निवारिणी जय
जग देवी, जय जय सन्त असुर सुर सेवी
।
महिमा अमित अपार
तुम्हारी, शेष सहस मुख वर्णत हारी ।
दीनन के दुख हरत
भवानी, नहिं देख्यो तुम सम कोउ
दानी ।
सब कर मनसा पुरवत
माता, महिमा अमित जगत विख्याता
।
जो जन ध्यान
तुम्हारो लावै, सो तुरतहिं
वांछित फल पावै ।
तू ही वैष्णवी तू
ही रुद्रानी, तू ही शारदा अरु
ब्रह्माणी ।
रमा राधिका
श्यामा काली, तू ही मातु सन्तन
प्रतिपाली ।
उमा माधवी चण्डी
ज्वाला, बेगि मोहि पर होहु दयाला
।
तू ही हिंगलाज
महारानी, तू ही शीतला अरु विज्ञानी
।
दुर्गा दुर्ग
विनाशिनी माता, तू ही लक्ष्मी जग
सुख दाता ।
तू ही जाह्रवी
अरु उन्त्राणी, हेमावती अम्ब
निरवाणी ।
अष्ट भुजी
वाराहिनी देवा, करत विष्णु शिव
जाकर सेवा ।
चौसट्टी देवी
कल्यानी, गौरी मंगला सब गुण खानी ।
पाटन मुम्बा दन्त
कुमारी, भद्रकालि सुन विनय हमारी ।
वज्र धारिणी शोक
नाशिनी, आयु रक्षिणी
विन्ध्यवासिनी ।
जया और विजया
बैताली, मात संकटी अरु विकराली ।
नाम अनन्त
तुम्हार भवानी, बरनै किमि मानुष
अज्ञानी ।
जापर कृपा मात तब
होई, तो वह करै चह्रै मन जोई ।
कृपा करहु मोपर
महारानी, सिद्ध करिए अब यह मम बानी
।
जो नर धेरै मात
कर ध्याना, ताकर सदा होय कल्याना ।
विपति ताहि
सपनेहु नहिं आवै, जो देवी का जाप
करावै ।
जो नर कहं ऋण होय
अपारा, सो नर पाठ करे शतबारा ।
निश्चय ऋण मोचन
होई जाई, जो नर पाठ करे मन माई ।
अस्तुति जो नर
पढ़ें पढ़ावै, या जग में सो अति
सुख पावै ।
जाको व्याधि
सतावे भाई, जाप करत सब दूर पराई ।
जो नर अति बन्दी
महँ होई, बार हजार पाठ कर सोई ।
निश्चय बन्दी ते
छुटि जाई, सत्य वचन मम मानहु भाई ।
जापर जो कछु संकट
होई, निश्चय देविहिं सुमिरे
सोई ।
जा कहँ पुत्र होय
नहिं भाई, सो नर या विधि करे उपाई ।
पाँच वर्ष सो पाठ
करावे, नौरातन में विप्र जिमावे
।
निश्चय होहिं
प्रसन्न भवानी, पुत्र देहिं
ताकहँ गुणखानी ।
ध्वजा नारियल आन
चढ़ावे, विधि समेत पूजन करवावे |
नित्य प्रति पाठ
करे मन लाई, प्रेम सहित नहि
आन उपाई ।
यह श्री
विन्ध्याचल चालीसा, रंक पढ़त होवे
अवनीसा ।
यह जनि अचरज
मानहुँ भाई, कृपा दृष्टि जापर
हुई जाई ।
जय जय जय जग मातु
भवानी, कृपा करहु मोहिं पर जन
जानी ।
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