श्री वैष्णो देवी चालीसा
श्री वैष्णो देवी चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- वैष्णो देवी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: वैष्णो देवी की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- पूजा का आरंभ: वैष्णो देवी की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री वैष्णो देवी चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, वैष्णो देवी की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
॥ दोहा ॥
गरुड़ वाहिनी
वैष्णवी त्रिकूटा पर्वत धाम ।
काली,
लक्ष्मी, सरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम ॥
॥ चौपाई ॥
नमोः नमोः वैष्णो
वरदानी, कलि काल में शुभ कल्याणी ।
मणि पर्वत पर
ज्योति तुम्हारी, पिंडी रूप में हो अवतारी ।
देवी देवता अंश
दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है।
करी तपस्या राम
को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ ।
कहा राम मणि
पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ ।
विष्णु रूप से
कल्की बनकर, लूंगा शक्ति रूप बदलकर |
तब तक त्रिकुटा
घाटी जाओ, गुफा अंधेरी जाकर पाओ ।
काली -
लक्ष्मी-सरस्वती माँ, करेंगी शोषण – पार्वती माँ ।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे, हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे ।
रिद्धि सिद्धि
चंवर डुलावें, कलियुग वासी पूजन आवें ।
पान सुपारी ध्वजा
नारियल, चरणामृत चरणों का निर्मल ।
दिया फलित वर माँ
मुस्काई, करन तपस्या पर्वत आई ।
कलि कालकी भड़की
ज्वाला, इक दिन अपना रूप निकाला ।
कन्या बन नगरोटा
आई, योगी भैरों दिया दिखाई ।
रूप देख सुन्दर
ललचाया, पीछे-पीछे भागा आया ।
कन्याओं के साथ
मिली माँ, कौल-कंदौली तभी चली माँ ।
देवा माई दर्शन
दीना, पवन रूप हो गई प्रवीणा ।
नवरात्रों में
लीला रचाई, भक्त श्रीधर के घर आई ।
योगिन को भण्डारा
दीना, सबने रुचिकर भोजन कीना ।
मांस, मदिरा भैरों मांगी, रूप पवन कर इच्छा त्यागी ।
बाण मारकर गंगा
निकाली, पर्वत भागी हो मतवाली ।
चरण रखे आ एक
शिला जब, चरण पादुका नाम पड़ा तब ।
पीछे भैरों था
बलकारी, छोटी गुफा में जाय पधारी ।
नौ माह तक किया
निवासा, चली फोड़कर किया प्रकाशा ।
आद्या
शक्ति-ब्रह्म कुमारी, कहलाई माँ आद कुंवारी ।
गुफा द्वार
पहुंची मुस्काई, लांगुर वीर ने आज्ञा पाई ।
भागा-भागा भैरों
आया, रक्षा हित निज शस्त्र चलाया ।
पड़ा शीश जा
पर्वत ऊपर, किया क्षमा जा दिया उसे वर ।
अपने संग में
पुजवाऊंगी, भैरों घाटी बनवाऊंगी ।
पहले मेरा दर्शन
होगा, पीछे तेरा सुमरन होगा ।
बैठ गई माँ
पिण्डी होकर, चरणों में बहता जल झर-झर ।
चौंसठ
योगिनी-भैरों बरवन, सप्तऋषि आ करते सुमरन ।
घंटा ध्वनि पर्वत
पर बाजे, गुफा निराली सुन्दर लागे ।
भक्त श्रीधर पूजन
कीना, भक्ति सेवा का वर लीना ।
सेवक ध्यानूं
तुमको ध्याया, ध्वजा व चोला आन चढ़ाया ।
सिंह सदा दर पहरा
देता, पंजा शेर का दुःख हर लेता ।
जम्बू द्वीप
महाराज मनाया, सर सोने का छत्र चढ़ाया ।
हीरे की मूरत संग
प्यारी, जगे अखंड इक जोत तुम्हारी ।
आश्विन चैत्र
नवराते आऊँ, पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ ।
सेवक 'शर्मा' शरण तिहारी, हरो वैष्णो विपत हमारी।
॥ दोहा ॥
कलियुग में महिमा
तेरी, है माँ अपरम्पार ।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार।
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