श्री तुलसी चालीसा
श्री तुलसी चालीसा का पाठ करने की सामान्य विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि व्रत, पूजा, या विशेष पर्व।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- श्री तुलसी माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: श्री तुलसी माता की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- तुलसी माता की मूर्ति या पौधे के सामने बैठें: तुलसी माता की मूर्ति, या तुलसी माता पौधे के सामने बैठें।
- पूजा का आरंभ: तुलसी माता की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, "तुलसी माता चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, देवी माता की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री काली चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
॥ दोहा ॥
श्री तुलसी
महारानी, करूँ विनय सिरनाय ।
जो मम
हो संकट विकट, दीजै मात नशाय ॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो तुलसी
महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी ।
दियो विष्णु
तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश
महाना ।
विष्णुप्रिया जय
जयतिभवानि, तिहूं लोक की हो सुखखानी
।
भगवत पूजा कर जो
कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई
।
जिन घर तव नहिं
होय निवासा, उस पर करहिं
विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन ।
कातिक मास महात्म
तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा ।
तव पूजन जो करें
कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी
।
कर जो पूजा
नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से
होय सुखारी ।
वृद्धा नारी करै
जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित
मन ।
श्रद्धा से पूजै
जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई ।
कथा भागवत यज्ञ
करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै
।
छायो तब प्रताप
जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल
चितधारी ।
तुम्हीं मात
यंत्रन तंत्रन में सकल काज सिधि होवै क्षण में ।
औषधि रूप आप हो
माता, सब जग में तव यश विख्याता
।
देव रिषी मुनि औ
तपधारी करत सदा तवं जय जयकारी ।
वेद पुरानन तब यश
गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया ।
नमो नमो जै जै
सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि ।
नमो नमो
सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन
छेनी ।
नमो नमो भक्तन
दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी |
नमो नमो भव पार
उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि ।
नमो नमो निज भक्त
उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि ।
नमो-नमो जय कुमति
नशावनि, नमो नमो सब सुख उपजावनि ।
जयति जयति जय
तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई ।
निजजन जानि मोहि
अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ ।
करूँ विनय मैं
मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु
हमारी ।
शरण चरण कर जोरि
मनाऊँ, निशदिन तेरे ही गुण गाऊँ
।
करहु मात यह अब
मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया ।
मांगू मात यह बर
दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै ।
जानूं नहिं कुछ
नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा ।
बारह मास करें जो
पूजा, ता सम जग में और न दूजा ।
प्रथमहि गंगाजल
मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे ।
चन्दन अक्षत
पुष्प चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य
लगावे ।
करे आचमन गंगा जल
से, ध्यान करे हृदय निर्मल
से।
पाठ करे फिर
चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की
।
यह विधि पूजा करे
हमेशा, ताके तन नहिं रहें क्लेशा
।
करै मास कार्तिक
का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई
जाहीं ।
है यह कथा महा
सुखदाई, पढ़ें सुने सो भव तर जाई
।
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्ति
युत,पाठ करें जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥
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