श्री पितर चालीसा
श्री पितर चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- पितर देवता की पूजा: पितर देवता की मूर्ति, पितृ तीर्थ, या तिल, कुश आदि के साथ पूजा करें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- पूजा का आरंभ: पितर देवता की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और पूजा संबंधित मंत्रों का उच्चारण करें।
- पितर चालीसा का पाठ: "श्री पितर चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, पितर देवता की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से पितर देवता की आराधना करनी चाहिए।
॥ दोहा ॥
हे पितरेश्वर
आपको दे दियो आशीर्वाद,
चरणाशीश नवा दियो
रखदो सिर पर हाथ ।
सबसे पहले गणपत
पाछे घर का देव मनावा जी,
हे पितरेश्वर दया
राखियो करियो मन की चाया जी ॥
॥ चौपाई ॥
पितरेश्वर करो
मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति
सागर ।
परम उपकार
पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में
जन्म दीन्हा ।
मातृ-पितृ देव
मनजो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे ।
जै जै जै पित्तर
जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं
।
चारों ओर प्रताप
तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा ।
नारायण आधार
सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि
का ।
प्रथम पूजन प्रभु
आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप
ही खुलवाते ।
झंझुनू ने दरबार
है साजे, सब देवो संग आप विराजे ।
प्रसन्न होय मनवांछित
फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर
लीन्हा ।
पित्तर महिमा
सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर
नारी ।
तीन मण्ड में आप
बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में
साजे ।
नाथ सकल संपदा
तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी ।
छप्पन भोग नहीं
हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो
जाते ।
तुम्हारे भजन परम
हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी ।
भानु उदय संग आप
पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे ।
ध्वज पताका मण्ड
पे है साजे, अखण्ड ज्योति में
आप विराजे ।
सदियों पुरानी
ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म
भूमि हमारी ।
शहीद हमारे यहाँ
पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते
।
जगत पित्तरो
सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का
नहीं हैं नारा ।
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब पूजे पित्तर भाई ।
हिन्दु वंश वृक्ष
है हमारा, जान से ज्यादा हमको
प्यारा ।
गंगा ये
मरूप्रदेश की, पितृ तर्पण
अनिवार्य परिवेश की ।
बन्धु छोड़ना
इनके चरणों, इन्हीं की कृपा
से मिले प्रभु शरणा ।
चौदस को जागरण
करवाते, अमावस को हम धोक लगाते ।
जात जडूला सभी
मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी
करवाते ।
धन्य जन्म भूमि
का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल
की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी
भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु
अरज हमारी ।
निशदिन ध्यान धरे
जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई ।
तुम अनाथ के नाथ
सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई
।
चारिक वेद प्रभु
के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी
।
नाम तुम्हारो लेत
जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई ।
जो तुम्हारे नित
पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा
में लोटत ।
सिद्धि तुम्हारी
सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे
बलिहारी ।
जो तुम्हारे चरणा
चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी
हो जावे |
सत्य भजन
तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे |
तुमहिं देव
कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव
प्राण से प्यारे ।
सत्य आस मन में
जो होई, मनवांछित फल पावें सोई ।
तुम्हरी महिमा
बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख
सके न गाई ।
मैं अतिदीन मलीन
दुखारी, करहु कौन विधि विनय
तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया
दीन पर कीजै, अपनी भक्ति,
शक्ति कछु दीजै ।
॥ दोहा ॥
पित्तरौं को
स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम ॥
झुंझुनू धाम
विराजे हैं, पित्तर हमारे
महान ।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान ॥
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझुनू धाम ।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान ॥
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