श्री लक्ष्मी चालीसा
श्री लक्ष्मी चालीसा" का पाठ करने की विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि व्रत, पूजा, या विशेष पर्व।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- लक्ष्मी माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: लक्ष्मी माता की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- पूजा का आरंभ: लक्ष्मी माता की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री लक्ष्मी चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, देवी माता की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
॥ दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि
कृपा करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस ॥
सोरठा
यही मोर अरदास,
हाथ जोड़ विनती करूँ ।
सबविधि करौ सुवास,
जय जननि जगदंबिका ॥
चौपाई
सिन्धु सुता मैं
सुमिरों तोही, ज्ञान बुद्धि
विद्या दे मोही ।
तुम समान नहीं कोई
उपकारी, सब विधि पुरवहु आस हमारी
।
जय जय जय जननी
जगदम्बा, सबकी तुम ही हो अवलम्बा |
तुम हो सब घट घट
के वासी, विनती यही हमारी खासी ।
जग जननी जय
सिन्धुकुमारी, दीनन की तुम हो
हितकारी ।
बिनवों नित्य
तुमहिं महारानी, कृपा करो जग जननि
भवानी ।
केहि विधि स्तुति
करौं तिहारी, सुधि लीजै अपराध
बिसारी ।
कृपा दृष्टि
चितवो मम ओरी, जग जननी विनती
सुन मोरी ।
ज्ञान बुद्धि सब
सुख का दाता, संकट हरो हमारी
माता ।
क्षीर सिन्धु जब
विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिन्धु
में पायो ।
चौदह रत्न में
तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु
बन दासी ।
जो जो जन्म प्रभु
जहां लीना, रूप बदल तहँ सेवा कीन्हा
।
स्वयं विष्णु जब
नर तनु धारा, लीन्हेउ अवधपुरी
अवतारा ।
तब तुम प्रगट
जनकपुर माहीं, सेवा कियो हृदय
पुलकाहीं ।
अपनायो तोहि
अन्तर्यामी, विश्व विदित
त्रिभुवन के स्वामी ।
तुम सम प्रबल
शक्ति नहिं आनि, कहँ लौं महिमा
कहौं बखानी ।
मन क्रम वचन करै
सेवकाई, मन इच्छित वांछित फल पाई ।
तजि छल कपट और
चतुराई, पूजहिं विविध भाँति मनलाई
।
और हाल मैं कहौं
बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाई ।
ताको कोई कष्ट न
होई, मन इच्छित पावै फल सोई ।
त्राहि त्राहि जय
दुख निवारिणी, ताप भव बंधन
हारिणी ।
जो यह पढ़े और
पढ़ावे, ध्यान लगाकर सुनै सुनावै
।
ताको कोई न रोग
सतावे, पुत्र आदि धन सम्पति पावै
।
पुत्रहीन अरु
संपतिहीना, अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना
।
विप्र बोलाय के
पाठ करावै, शंका दिल में कभी न लावै
।
पाठ करावै दिन
चालीसा, तापर कृपा करें गौरीसा |
सुख सम्पति बहुत सो पावै, कमी नहीं काहु की आवै ।
बारह मास करै सो
पूजा, तेहि सम धन्य और नहिं
दूजा ।
प्रतिदिन पाठ करै
मनमाहीं, उन सम कोई जग में कहुँ
नाहीं ।
बहु विधि क्या
मैं करौं बड़ाई, लेय परीक्षा
ध्यान लगाई ।
करि विश्वास करै
व्रत नेमा, होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा
।
जय जय जय लक्ष्मी
भवानी, सब में व्यापित हो
गुणखानी ।
तुम्हारो तेज
प्रबल जग माहीं, तुम समकोउ दयालु
कहुँ नाहिं ।
मोहि अनाथ की सुध
अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहि
दीजै ।
भूल चूक करि
क्षमा हमारी, दर्शन दीजै दशा
निहारी ।
केहि प्रकार मैं करौं
बड़ाई, ज्ञान बुद्धि मोहि नहिँ
अधिकाई ।
बिन दर्शन
व्याकुल अधिकारी, तुमहि अछत दुख
सहते भारी ।
नहिं मोहि ज्ञान
बुद्धि है मन में, सब जानत हो अपने
मन में ।
रूप चतुर्भुज
करके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण |
॥ दोहा ॥
त्राहि त्राहि
दुख हारिणी, हरो बेगि सब त्रास
।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो दुश्मन का
नाश ॥
रामदास धरि ध्यान
नित, विनय करत कर जोर ।
मातु
लक्ष्मी दास पै, करहु दया की कोर
॥
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