श्री गंगा चालीसा
श्री गंगा चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- गंगा माँ की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: गंगा माँ की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- पूजा का आरंभ: गंगा माँ की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री गंगा चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, गंगा माँ की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री गंगा चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
॥ दोहा ॥
जय जय जय जग
पावनी जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग ॥
॥चौपाई॥
जय जग जननि हरण
अघ खानी, आनन्द करनि गंग महारानी ।
जय भागीरथ सुरसरि
माता, कलिमल मूल दलनि विख्याता
।
जय जय जय हनु
सुता अघ हननी, भीषम की माता जग
जननी ।
धवल कमल दल मम
तनु साजे, लखि शत शरद चन्द्र छवि
लाजे ।
वाहन मकर विमल
शुचि सोहै, अमिय कलश कर लखि मन मोहै
।
जड़ित रत्न कंचन
आभूषण, हिय मणि हार, हरणितम दूषण ।
जग पावनि त्रय
ताप नसावनि, तरल तरंग तंग मन
भावनि ।
जो गणपति अति
पूज्य प्रधाना, तिहुँ ते प्रथम
गंग अस्नाना ।
ब्रह्म कमण्डल
वासिनि देवी, श्री प्रभु पद
पंकज सुख सेवी ।
साठि सहत्र सगर
सुत तारयो, गंगा सागर तीरथ धारयो ।
अगम तरंग उठयो मन
भावन, लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन
।
तीरथ राज प्रयाग
अक्षैवट, धरयौ मातु पुनि काशी करवट
|
धनि धनि सुरसरि
स्वर्ग की सीढ़ी, तारणि अमित पितृ
पद पीढ़ी ।
भागीरथ तप कियो
अपारा, दियो ब्रह्म तब सुरसरि
धारा ।
जब जग जननी चल्यो
हहराई, शंभु जटा महँ रह्यो समाई
।
वर्ष पर्यन्त गंग
महारानी, रहीं शंभु के जटा भुलानी ।
मुनि भागीरथ
शंभुहिं ध्यायो, तब इक बून्द जटा
से पायो ।
ताते मातु भई
त्रय धारा, मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा ।
गई पाताल
प्रभावति नामा, मन्दाकिनी गई गगन
ललामा ।
मृत्यु लोक
जाह्नवी सुहावनि, कलिमल हरणि अगम
जग पावनि ।
धनि मइया तव
महिमा भारी, धर्म धुरि कलि
कलुष कुठारी ।
मातु प्रभावति
धनि मन्दाकिनी, धनि सुरसरित सकल
भयनासिनी ।
पान करत निर्मल
गंगा जल, पावत मन इच्छित अनन्त फल
।
पूरब जन्म पुण्य
जब जागत, तबहिं ध्यान गंगा महं
लागत ।
जई पगु सुरसरि
हेतु उठावहि, तइ जगि अश्वमेध
फल पावहि ।
महा पतित जिन
काहु न तारे, तिन तारे इक नाम
तिहारे ।
शत योजनहू से जो
ध्यावहिं निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं ।
नाम भजत अगणित अघ
नाशै, विमल ज्ञान बल बुद्धि
प्रकाशै ।
जिमि धन मूल धर्म
अरु दाना, धर्म मूल गंगाजल पाना ।
तव गुण गुणन करत
दुख भाजत, गृह गृह सम्पति सुमति
विराजत ।
गंगहि नेम सहित
नित ध्यावत, दुर्जनहूँ सज्जन
पद पावत ॥
बुद्धिहीन विद्या
बल पावै, रोगी रोग मुक्त है जावे ।
गंगा गंगा जो नर
कहहीं, भूखे नंगे कबहुँ न रहहीं ।
निकसत ही मुख
गंगा माई, श्रवण दाबि यम चलहिं पराई
।
महाँ अधिन अधमन
कहँ तारें, भए नर्क के बन्द किवारे ।
जो नर जपै गंग शत
नामा, सकल सिद्ध पूरण है कामा ।
सब सुख भोग परम
पद पावहिं, आवागमन रहित है जावहिं ।
धनि मइया सुरसरि
सुखदैनी, धनि धनि तीरथ राज
त्रिवेणी ।
ककरा ग्राम ऋषि
दुर्वासा, सुन्दरदास गंगा कर दासा ।
जो यह पढ़े गंगा
चालीसा, मिलै भक्ति अविरल वागीसा ।
॥ दोहा ॥
नित नव सुख
सम्पति लहैं, धेरै, गंग का ध्यान ।
अन्त समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान ॥
सम्वत् भुज नभ
दिशि, राम जन्म दिन चैत्र ।
पूरण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित
नैत्र ॥
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