श्री दुर्गा चालीसा
श्री दुर्गा चालीसा" का पाठ करने की विधि
दुर्गा चालीसा की विधि:
- शुभ मुहूर्त का चयन: दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि नवरात्रि, महाशिवरात्रि, नवमी, और रविवार।
- शुद्धि स्थान चयन: एक शुद्ध और स्वच्छ स्थान का चयन करें जहां आप ध्यान और पूजा कर सकते हैं।
- स्नान और शुद्धि: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- दुर्गा माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: दुर्गा चालीसा का पाठ करते समय दुर्गा माता की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- पूजा का आरंभ: दुर्गा माता की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि लक्ष्मी-गणेश पूजा, कलश पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, दुर्गा चालीसा का पाठ शुरू करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: दुर्गा चालीसा का पाठ करने के बाद देवी माता की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
॥ चौपाई ॥
नमो नमो दुर्गे
सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुःख हरनी
।
निरंकार है
ज्योति तुम्हारी, तिहूं लोक फैली
उजियारी ।
शशि ललाट मुख महा
विशाला, नेत्र लाल भृकुटी विकराला
।
रूप मातु को अधिक
सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे
।
तुम संसार शक्ति
लय कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना ।
अन्नपूरना हुई जग
पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला
।
प्रलयकाल सब नाशन
हारी, तुम गौरी शिव शंकर प्यारी
।
शिव योगी तुम्हरे
गुण गावैं, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें
नित ध्यावैं ।
रूप सरस्वती को
तुम धारा, दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन
उबारा ।
धरा रूप नरसिंह
को अम्बा, परगट भई फाड़ कर खम्बा ।
रक्षा करि
प्रहलाद बचायो, हिरणाकुश को
स्वर्ग पठायो ।
लक्ष्मी रूप धरो
जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं ।
क्षीरसिन्धु में
करत विलासा, दया सिंधु दीजै
मन आसा ।
हिंगलाज में
तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात
बखानी ।
मातंगी धूमावती
माता, भुवनेश्वरी बगला सुख दाता
।
श्री भैरव तारा
जग तारिणी, छिन्न भाल भव दुःख
निवारिणी ।
केहरि वाहन सोह
भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी ।
कर में खप्पर
खड़ग विराजे, जाको देख काल डर
भाजे ।
सोहे अस्त्र और
त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला
।
नाग कोटि में
तुम्हीं विराजत, तिहूं लोक में
डंका बाजत ।
शुम्भ निशुम्भ
दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन
संहारे ।
महिषासुर नृप अति
अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी
।
रूप कराल काली को
धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा ।
परी गाढ़ सन्तन पर
जब जब भई सहाय मातु तुम तब-तब ।
अमर पुरी औरों सब
लोका, तब महिमा सब रहे अशोका ।
बाला में है
ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा
पूजें नर नारी ।
प्रेम भक्ति से
जो जस गावै, दुःख दारिद्र
निकट नहिं आवे ।
ध्यावै तुम्हें
जो नर मन लाई, जन्म मरण ताको
छुटि जाई ।
जोगी सुर मुनि
कहत पुकारी, योग न हो बिन
शक्ति तुम्हारी ।
शंकर आचारज तप
कीनों, काम अरु क्रोध जीति सब
लीनों ।
निशि दिन ध्यान
धरो शंकर को, काहु काल नहिं
सुमिरो तुमको |
शक्ति रूप को मरम
न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो ।
शरणागत हुई
कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदम्ब
भवानी ।
भई प्रसन्न आदि
जगदम्बा, दई शक्ति नहीं कीन
विलम्बा ।
मोको मातु कष्ट
अति घेरो, तुम बिन कौन हरे दुःख
मेरो ।
आशा तृष्णा निपट
सतावे, रिपु मुरख मोहि अति
डरपावे ।
शत्रु नाश कीजै
महारानी, सुमिरौं इक चित तुम्हें
भवानी ।
करो कृपा हे मातु
दयाला, ऋद्धि सिद्धि दे करहु
निहाला ।
जब लगि जियाँ दया
फल पाऊँ, तुम्हरो जस मैं सदा
सुनाऊँ ।
दुर्गा चालीसा जो
गावैं, सब सुख भोग परम पद पावें
।
देवीदास शरण निज
जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।
॥ दोहा ॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे निःशंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लीजिये अंक ॥
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