श्री ब्रह्मा चालीसा
श्री ब्रह्मा चालीसा को पढ़ने की विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: श्री ब्रह्मा चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- ब्रह्मा जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: श्री ब्रह्मा जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
- पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
- ब्रह्मा चालीसा का पाठ: श्री ब्रह्मा चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
- आरती और भजन: ब्रह्मा जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
- मन्त्रों का जप: ब्रह्मा जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ ब्रह्मणे नमः" या अन्य ब्रह्मा मंत्र।
- आरती और प्रशाद: ब्रह्मा जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से श्री ब्रह्मा जी की आराधना करनी चाहिए।
इस विधि को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें, क्योंकि यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है।
॥ दोहा ॥
जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल ।करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल ॥
तुम सृजक ब्रह्माण्ड के, अज विधि घाता नाम ।
विश्वविधाता कीजिये, जन पै कृपा ललाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय कमलासान जगमूला, रहहु सदा जनपै अनुकूला ।रूप चतुर्भुज परम सुहावन, तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन ।
रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा, मस्तक जटाजूट गंभीरा ।
ताके ऊपर मुकुट बिराजै, दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै ।
श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर, है यज्ञोपवीत अति मनहर ।
कानन कुण्डल सुभग बिराजहिं, गल मोतिन की माला राजहिं ।
चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये, दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये ।
ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा, अखिल भुवन महँ यश बिस्तारा ।
अर्द्धांगिनि तव है सावित्री, नाम हिये गायत्री ।
सरस्वती तब सुता मनोहर, वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर ।
कमलासन पर रहे बिराजे, तुम हरिभक्ति साज सब साजे ।
क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा, नाभि कमल भो प्रगट अनूपा ।
तेहि पर तुम आसीन कृपाला, सदा करहु सन्तन प्रतिपाला ।
एक बार की कथा प्रचारी, तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी ।
कमलासन लखि कीन्ह बिचारा, और न कोउ अहै संसारा ।
तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा, अन्त बिलोकन कर प्रण कीन्हा ।
अपर कोटिक वर्ष गये यहि भांती, भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती ।
पै तुम ताकर अन्त न पाये, ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये ।
पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा, महापद्म यह अति प्राचीना ।
याको जन्म भयो को कारन, तबहीं मोहि करयो यह धारन ।
अखिल भुवन महँ कहँ कोइ नाहीं, सब कछु अहै निहित मो माहीं ।
यह निश्चय करि गरब बढ़ायो, निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये ।
गगन गिरा तब भई गंभीरा, ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा ।
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई, ब्रह्म अनादि अलख है सोई ।
निज इच्छा उन सब निरमाये, ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये ।
सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा, सब जग इनकी करिहै सेवा ।
महापद्म जो तुम्हरो आसन, ता पै अहै विष्णु को शासन ।
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई, तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई ।
भैटहु जाइ विष्णु हितमानी, यह कहि बन्द भई नभवानी ।
ताहि श्रवण कहि अचरज माना, पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना ।
कमल नाल धरि नीचे आवा, तहां विष्णु के दर्शन पावा ।
शयन करत देखे सुरभूपा, श्यामवर्ण तनु परम अनूपा ।
सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर, क्रीटमुकट राजत मस्तक पर ।
गल बैजन्ती माल बिराजै, कोटि सूर्य की शोभा लाजै ।
शंख चक्र अरु गदा मनोहर, पद्म सहित आयुध सब सुन्दर ।
पायँ पलोटति रमा निरन्तर, शेष नाग शय्या अति मनहर ।
दिव्यरूप लखि कीन्ह प्रणामू, हर्षित भे श्रीपति सुख धामू ।
बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन, तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन ।
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना, ब्रह्मरूप हम दोउ समाना ।
तीजे श्री शिवशङ्कर आहीं, ब्रह्मरूप सब त्रिभुवन मांहीं ।
तुम सों होइ सृष्टि विस्तारा, हम पालन करिहैं संसारा ।
शिव संहार करहिं सब केरा, हम तीनहुँ कहँ काज धनेरा ।
अगुणरूप श्री ब्रह्म बखानहु, निराकार तिनकहँ तुम जानहु ।
हम साकार रूप त्रयदेवा, करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा ।
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये, परब्रह्म के यश अति गाये ।
सो सब विदित वेद के नामा, मुक्ति रूप सो परम ललामा ।
यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा, पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा ।
नाम पितामह सुन्दर पायेउ, जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ ।
लीन्ह अनेक बार अवतारा, सुन्दर सुयश जगत विस्तारा ।
देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं, मनवांछित तुम सन सब पावहिं ।
जो कोउ ध्यान धेरै नर नारी, ताकी आस पुजावहु सारी ।
पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई, तहँ तुम बसहु सदा सुरराई ।
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन, ता कर दूर होइ सब दूषण ।
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