श्रेष्ठता में समर्पण dedication to excellence
सरिता सब पुनीत जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं॥
सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहि अनुरागा॥ 397
सरिता - नदियाँ
सब - सभी
पुनीत - पवित्र
जलु - जल
बहहीं - बहती हैं
खग - पक्षी
मृग - जानवर
मधुप - मधुर
सुखी - सुखी
सब - सभी
रहहीं - रहते हैं
सहज - स्वाभाविक
बयरु - वैर (शत्रुता)
सब - सभी
जीवन्ह - जीवों ने
त्यागा - छोड़ा
गिरि - पहाड़
पर - पर्वत पर
सकल - सभी
करहि - करते हैं
अनुरागा - प्रेम
इस दोहे में कहा गया है कि सभी नदियाँ पवित्र जल बहाती हैं और सभी पक्षी और जानवर मधुर सुखमय भावना में रहते हैं। सभी जीवों ने अपनी स्वाभाविक शत्रुता को छोड़ दिया है और पहाड़ों पर सभी एक दूसरे से प्रेम करते हैं।
सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ॥
नित नूतन मंगल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू॥398
सोह - वे
सैल - हिमालय
गिरिजा - पार्वती (गिरिजा)
गृह - घर
आएँ - आईं
जिमि - जैसे
जनु - पानी की मटकी
रामभगति - भगवान राम की भक्ति
के - की
पाएँ - पातीं
नित - हर दिन
नूतन - नया
मंगल - मंगल (शुभ)
गृह - घर
तासू - बार-बार
ब्रह्मादिक - ब्रह्मा आदि
गावहिं - गाते हैं
जसु - जिनकी
जासू - यश
इस दोहे में कहा गया है कि जैसे हिमालय की धरती पर पार्वती आईं, वैसे ही हर दिन नये नये शुभ घर मंगल गाते हैं, जिनकी यश ब्रह्मा आदि गाते हैं।
सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ॥
नित नूतन मंगल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू॥399
सोह - वे
सैल - हिमालय
गिरिजा - पार्वती (गिरिजा)
गृह - घर
आएँ - आईं
जिमि - जैसे
जनु - पानी की मटकी
रामभगति - भगवान राम की भक्ति
के - की
पाएँ - पातीं
नित - हर दिन
नूतन - नया
मंगल - मंगल (शुभ)
गृह - घर
तासू - बार-बार
ब्रह्मादिक - ब्रह्मा आदि
गावहिं - गाते हैं
जसु - जिनकी
जासू - यश
इस दोहे में कहा गया है कि जैसे हिमालय की धरती पर पार्वती आईं, वैसे ही हर दिन नये नये शुभ घर मंगल गाते हैं, जिनकी यश ब्रह्मा आदि गाते हैं।
नारद समाचार सब पाए। कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥
सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥ 400
नारद - संत नारद
समाचार - संसार की खबरें
सब - सभी
पाए - प्राप्त की
कौतुकहीं - आश्चर्य की बातें
गिरि - पहाड़
गेह - घर
सिधाए - सुधारे
सैलराज - हिमालय
बड़ - बड़ा
आदर - सम्मान
कीन्हा - किया
पद - पादुका
पखारि - पूजा
बर - वरदान
आसनु - आसन
दीन्हा - दिया
इस दोहे में कहा गया है कि संत नारद ने संसार की खबरें सभी प्राप्त की और पहाड़ों को घर के रूप में सुधारा। हिमालय को बड़ा सम्मान दिया और उसकी पादुका की पूजा की गई, जिससे वहाँ के आसन को वरदान मिला।
नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा॥
निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना॥ 401
नारि - स्त्री
सहित - साथ
मुनि - संत, महात्मा
पद - पादुका
सिरु - सिर (सिर पर)
नावा - रखते हैं
चरन - पैर
सलिल - जल (पानी)
सबु - सभी
भवनु - घरों में
सिंचावा - सिंचते हैं
निज - अपने
सौभाग्य - भाग्य
बहुत - बहुत
गिरि - पहाड़
बरना - वर्णन करते हैं
सुता - संतान
बोलि - बोलकर
मेली - मिलाई
मुनि - संत, महात्मा
चरना - पैरों में चिपकाए
इस दोहे में कहा गया है कि संत अपने पादुका को स्त्री के साथ रखते हैं और उनके पैरों में पानी को सभी घरों में सिंचते हैं। अपने भाग्य को बहुत अच्छे तरीके से पहाड़ों की तुलना में वर्णन करते हैं और अपनी संतान को उनके चरणों में चिपकाते हैं।
त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि॥
कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि॥ 402
"तुम (भगवान राम) त्रिकालज्ञ हो, सभी जगहों में जानने वाले हो, तुम्हारी गति सभी दिशाओं में है।
हे मुनिबर (मुनियों के श्रेष्ठ)! कृपया करके सुनाओ, मेरे पुत्र के गुण और दोषों का विचार करके बताओ।"
यह श्लोक मानवता के आदर्श भगवान राम को सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, और न्यायप्रिय रूप में प्रस्तुत करता है। यह भी दिखाता है कि वह अपने गुणों और दोषों को मुनियों के सामने रखकर उनसे सीख लेना चाहते हैं।
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