संपूर्ण किष्किंधा कांड चौपाई अर्थ सहित

संपूर्ण किष्किंधा कांड चौपाई अर्थ सहित  Complete Kishkindha Kand Chaupai with meaning

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड  के चौपाई 21-25 अर्थ सहित हैं:
चौपाई 
बानर कटक उमा में देखा, सो मूरुख जो करन चह लेखा ||
आइ राम पद नावहिं माथा, निरखि बदनु सब होहिं सनाथा ||१||
इस चौपाई का अर्थ 

बानर (हनुमान) कटक (उपमेय) उमा (पार्वती, भगवान शिव की पत्नी) में देखा, सो (वह) मूरुख (मूर्खता, अज्ञान) जो (जो) करन (करना) चह (चाह) लेखा (लिखा)। आइ (आई) राम (भगवान राम) पद (पद, स्थान) नावहिं (नाम) माथा (माथे)। निरखि (निरीक्षण करते हुए) बदनु (शरीर) सब (सभी) होहिं (हैं) सनाथा (साथी)।१।
इस चौपाई में हनुमान ने उमा (पार्वती) के में बाणर को देखा और यह समझा कि वह जो मूर्खता कर रहा है, वह राम के नाम में सिर झुकाना है। जिसने भगवान राम के पादों को माथे पर रखा है, उसके बदन में सभी साथी हैं।
अस कपि एक न सेना माहीं, राम कुसल जेहि पूछी नाहीं ||
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई, बिस्वरूप ब्यापक रघुराई ||२||
इस चौपाई का अर्थ 

अस (इस प्रकार) कपि (हनुमान) एक (एकमात्र) न (नहीं) सेना (सेना) माहीं (में), राम (भगवान राम) कुसल (कुशल) जेहि (जैसे) पूछी (पूछा) नाहीं (नहीं)। यह (यह) कछु (कुछ) नहिं (नहीं) प्रभु (प्रभु, भगवान राम) कइ (किया) अधिकाई (अधिकार), बिस्वरूप (सबसे सुंदर रूप) ब्यापक (सर्वव्यापी) रघुराई (राम)।२।
इस चौपाई में हनुमान भगवान राम की महिमा को व्यक्त कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वह एकमात्र सेना में हैं, और राम ने उनसे इतना पूछा भी नहीं है। इसमें भगवान राम की अद्भुत शक्ति और उनका सर्वव्यापी स्वरूप का उल्लेख है।
ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई, कह सुग्रीव सबहि समुझाई ||
राम काजु अरु मोर निहोरा, बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा ||३||
इस चौपाई का अर्थ 

ठाढ़े (स्थान) जहँ (जहाँ) तहँ (तक) आयसु (गई), कह (कहकर) सुग्रीव (सुग्रीव) सबहि (सबको) समुझाई (समझाई)। राम (भगवान राम) काजु (कार्य) अरु (और) मोर (मेरे) निहोरा (उदाहरण), बानर (बाणर) जूथ (जुथा, समूह) जाहु (जिसकी ओर जाए) चहुँ (चारों) ओरा (दिशाओं में)।३।
इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि सुग्रीव ने सभी दिशाओं में अपनी सेना को भेज दिया है, और वह समझाता रहा है कि भगवान राम का कार्य और मेरा उदाहरण देखकर सबको समझाया जा सकता है।
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई, मास दिवस महँ आएहु भाई ||
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ, आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ ||४||
इस चौपाई का अर्थ

जनकसुता (सीता) कहुँ (कहूँ) खोजहु (खोजो) जाई (जाओ), मास (मास) दिवस (दिन) महँ (महीने) आएहु (आओ) भाई (भाई)। अवधि (अवध) मेटि (मिलाकर) जो (जो) बिनु (बिना) सुधि (सुध) पाएँ (प्राप्त हो), आवइ (आवे) बनिहि (बनीहि) सो (वह) मोहि (मुझे) मराएँ (मार दे)।४।
इस चौपाई में हनुमान जी भगवान राम की सीता माया को खोजने का संकल्प लेते हैं और भाई सुग्रीव से कहते हैं कि उनको आवधी में मिलाकर सीता की जानकारी लाएं। इसे पूरा करने के लिए हनुमान जी ने समझाया कि वह जो सुधि प्राप्त करने के लिए आवधि में जाएंगे, वही सीता को पाकर उन्हें मर देगा।
चौपाई 
सुनहु नील अंगद हनुमाना, जामवंत मतिधीर सुजाना ||
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू, सीता सुधि पूँछेउ सब काहू ||१||
इस चौपाई का अर्थ

सुनहु (सुनो) नील (नील), अंगद (अंगद), हनुमाना (हनुमान), जामवंत (जामवंत), मतिधीर (बुद्धिमान), सुजाना (ज्ञानी)। सकल (सभी) सुभट (शुभलक्षण) मिलि (मिलकर) दच्छिन (दक्षिण) जाहू (जहाँ)। सीता (सीता) सुधि (सुध) पूँछेउ (पूछूंगा) सब (सभी) काहू (सबसे)।१।
इस चौपाई में हनुमान ने अपनी सेना के नेताओं से कहा है कि वे सभी मिलकर दक्षिण दिशा की ओर बढ़ें, और फिर सभी से सीता की सुधि पूछें।
मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु, रामचंद्र कर काजु सँवारेहु ||
भानु पीठि सेइअ उर आगी, स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी ||२||
इस चौपाई का अर्थ

मन (मन), क्रम (क्रिया), बचन (वचन), सो (वह) जतन (प्रयास) बिचारेहु (विचार करें), रामचंद्र (भगवान राम) कर (करो) काजु (कार्य) सँवारेहु (सुधारो)। भानु (सूर्य) पीठि (पीठ) सेइअ (से यहाँ तक), उर (हृदय) आगी (से आगे)। स्वामिहि (स्वामी, भगवान) सर्ब (सभी) भाव (भावना) छल (कपट) त्यागी (त्यागते)।२।
इस चौपाई में हनुमान जी भक्तों से कह रहे हैं कि वे मन, क्रिया और वचन के साथ भगवान राम के कार्य को सुधारें और भगवान की भावना में सभी कपट को छोड़ दें।
तजि माया सेइअ परलोका, मिटहिं सकल भव संभव सोका ||
देह धरे कर यह फलु भाई, भजिअ राम सब काम बिहाई ||३||
इस चौपाई का अर्थ 

तजि (त्यागकर) माया (मोह, आसक्ति) सेइअ (से यहाँ तक) परलोका (परलोक में), मिटहिं (मिटा दो) सकल (सभी) भव (संसार) संभव (उत्पन्न) सोका (दुःख)। देह (शरीर) धरे (धारण करके) कर (करो) यह (यह) फलु (फल) भाई (भाई), भजिअ (भगवान का भजन करो) राम (भगवान राम) सब (सभी) काम (कार्य) बिहाई (सुनिश्चित करो)।३।
इस चौपाई में हनुमान जी भक्तों से कह रहे हैं कि मोह और आसक्ति को त्यागकर परलोक में सभी दुःखों को मिटा दो, और शरीर को धारण करके भगवान राम का भजन करो, जिससे सभी कार्य सुनिश्चित हों।
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी , जो रघुबीर चरन अनुरागी ||
आयसु मागि चरन सिरु नाई, चले हरषि सुमिरत रघुराई ||४||
इस चौपाई का अर्थ 

सोइ (वही) गुनग्य (गुणगान करने वाला) सोई (वही) बड़भागी (बड़े भाग्यशाली) , जो (जो) रघुबीर (राम, रघुकुलेश्वर) चरन (पादुका) अनुरागी (प्रेमी)। आयसु (आकांक्षा) मागि (मांगता) चरन (पादुका) सिरु (सिर) नाई (नहीं) , चले (चलकर) हरषि (खुशी) सुमिरत (स्मरण करते हुए) रघुराई (राम की आराधना करने वाला)।४।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि वही व्यक्ति बड़े भाग्यशाली है, जो रघुकुलेश्वर भगवान राम के पादुका में अनुरागी है और राम की आराधना में लगा हुआ है। ऐसा व्यक्ति हरषित होकर राम का स्मरण करता है।
पाछें पवन तनय सिरु नावा, जानि काज प्रभु निकट बोलावा ||
परसा सीस सरोरुह पानी, करमुद्रिका दीन्हि जन जानी ||५||
इस चौपाई का अर्थ
 
पाछें (पीछे) पवन तनय (हनुमान) सिरु (सिर) नावा (नमस्कार), जानि (जानकर) काज (कार्य) प्रभु (भगवान) निकट (निकट) बोलावा (बुलाता)। परसा (पर, ऊपर) सीस (सिर) सरोरुह (सरोवर में) पानी (पानी) , करमुद्रिका (कर मुद्रिका, पाँचों अंगुलियाँ) दीन्हि (बूँदें दी) जन (लोग) जानी (जानकर)।५।
इस चौपाई में हनुमान जी अपने सिर को पवनपुत्र हनुमान के नाम से पहचान कर उनके सामने बोलावा करते हैं। उन्होंने बताया कि जानकर भगवान की कृपा से वह भक्त सभी कार्यों के लिए उपयुक्त हैं, जैसे कि जल से सीस पर आराम से बूँदें गिरती हैं।
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु, कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु ||
हनुमत जन्म सुफल करि माना, चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना ||६||
इस चौपाई का अर्थ
 
बहु प्रकार (विभिन्न तरीकों से) सीतहि (सीता को) समुझाएहु (समझा दो), कहि (कहकर) बल (शक्ति) बिरह (विरह) बेगि (शीघ्र) तुम्ह (तुम) आएहु (आओ)। हनुमत (हनुमान) जन्म (जन्म) सुफल (सफल) करि (करके) माना (माना), चलेउ (चला गया) हृदयँ (हृदय) धरि (धारण करके) कृपानिधाना (कृपा का संग्रहण करने वाला)।६।
इस चौपाई में हनुमान जी से भक्तों से कहा जा रहा है कि वे विभिन्न तरीकों से सीता को समझाएं और अपनी शक्ति और वीरता से शीघ्र सीता के पास आएं। इसके बाद हनुमान जन्म को सफलता से पूर्ण मानकर चला गया, अपना हृदय में भगवान राम की कृपा को स्थान देने के लिए।
जद्यपि प्रभु जानत सब बाता, राजनीति राखत सुरत्राता ||७||
इस चौपाई का अर्थ 
जद्यपि (हालांकि) प्रभु (भगवान राम) जानत (जानते) सब (सभी) बाता (बातें), राजनीति (राजनीतिक नीति) राखत (रखते) सुरत्राता (सुरक्षा करने वाले)।७।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि हालांकि भगवान राम सभी बातें जानते हैं, लेकिन वह राजनीतिक नीति में सुरक्षा करने वाले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि राम भक्तों की सुरक्षा और रक्षा के लिए सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हैं।
चौपाई 
कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा, प्रान लेहिं एक एक चपेटा ||
बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं, कोउ मुनि मिलत ताहि सब घेरहिं ||१||
इस चौपाई का अर्थ 

कतहुँ (कभी-कभी) होइ (हो) निसिचर (राक्षसों) सैं (से) भेटा (मिलता), प्रान (प्राण) लेहिं (लेते) एक एक (एक-एक) चपेटा (गले में गिरा देता)। बहु प्रकार (विभिन्न प्रकार) गिरि (पर्वत) कानन (वन) हेरहिं (देखते हैं), कोउ (कोई) मुनि (मुनि) मिलत (मिलकर) ताहि (तब) सब (सभी) घेरहिं (चारों ओर घेर लेते हैं)।१।
इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि कभी-कभी वे राक्षसों से मिलते हैं और हर एक को गले में ले लेते हैं। वे विभिन्न प्रकार के पर्वतों और वनों को देखते हैं, और मुनियों से मिलकर सभी ओर से घेर लेते हैं।
लागि तृषा अतिसय अकुलाने, मिलइ न जल घन गहन भुलाने ||
मन हनुमान कीन्ह अनुमाना, मरन चहत सब बिनु जल पाना ||२||
इस चौपाई का अर्थ 

लागि (लिए हुए) तृषा (प्यास) अतिसय (बहुत) अकुलाने (तड़पाकर), मिलइ (मिलकर) न (नहीं) जल (पानी) घन (घातक) गहन (दुर्भीक्ष काल) भुलाने (भूल जाता)। मन (मन) हनुमान (हनुमान) कीन्ह (किया) अनुमाना (अनुमान), मरन (मरना) चहत (चाहता) सब (सभी) बिनु (बिना) जल (पानी) पाना (पीना)।२।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि उन्होंने बहुत तृषा की है, लेकिन दुर्भीक्ष काल में उन्होंने जल पीना नहीं भूला। हनुमान जी ने अपनी प्राणों की आपाधापी में भी जल पीने का विचार नहीं किया, क्योंकि वह सभी को बिना जल पाने के ही मरना चाहते थे।
चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा, भूमि बिबिर एक कौतुक पेखा ||
चक्रबाक बक हंस उड़ाहीं, बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीं ||३||
इस चौपाई का अर्थ 

चढ़ि (चढ़कर) गिरि (हिमालय) सिखर (शिखर) चहूँ (चारों) दिसि (दिशाओं) देखा (देखता), भूमि (धरती) बिबिर (बहुत आकृति) एक (एक) कौतुक (आश्चर्य) पेखा (देखा)। चक्रबाक (सुपर्ण) बक (बकुल) हंस (हंस) उड़ाहीं (उड़ाते हुए), बहुतक (बहुत) खग (पक्षी) प्रबिसहिं (सहते हुए) तेहि (उसी) माहीं (में)।३।
इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि वे हिमालय के शिखर पर चढ़कर चारों दिशाओं में देखते हैं और धरती की अनेक अद्वितीय आकृतियों को देखते हैं। सुपर्ण, बकुल, हंस, और अनेक पक्षियाँ उसी क्षण में उड़ाते हैं और उस समय में वह उनकी सहानुभूति करते हैं।
गिरि ते उतरि पवनसुत आवा, सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा ||
आगें कै हनुमंतहि लीन्हा, पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा ||४||
इस चौपाई का अर्थ 

गिरि (पर्वत) ते (से) उतरि (उतरकर) पवनसुत (हनुमान) आवा (आए), सब (सभी) कहुँ (सब कहते हैं) लै (लेकर) सोइ (वही) बिबर (बहुत आकृति) देखावा (दिखाते हैं)। आगें (आगे) कै (कोई) हनुमंतहि (हनुमान के समान) लीन्हा (लीन है), पैठे (पीछे) बिबर (बहुत आकृति) बिलंबु (बिलम्बु वृक्ष) न (नहीं) कीन्हा (किया)।४।
इस चौपाई में हनुमान जी की महिमा बताई जा रही है कि वे पर्वतों से उतरकर सभी को बहुत आकृतियों को दिखा रहे हैं। आगे कोई भी व्यक्ति हनुमान के समान उन्हें देख नहीं सकता है, और पीछे कोई भी व्यक्ति बिलम्बु वृक्ष में बहुत आकृतियों का दर्शन नहीं कर सकता है।
चौपाई 
दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा, पूछें निज बृत्तांत सुनावा ||
तेहिं तब कहा करहु जल पाना, खाहु सुरस सुंदर फल नाना ||१||
इस चौपाई का अर्थ 

दूरि (दूर से) ते (से) ताहि (तबही) सबन्हि (सभी) सिर (सिर) नावा (नमस्कार), पूछें (पूछते) निज (अपने) बृत्तांत (बृत्तांत) सुनावा (सुनाना)। तेहिं (तब) तब (तब) कहा (कहा) करहु (करो) जल (पानी) पाना (पीना), खाहु (खाओ) सुरस (स्वादिष्ट) सुंदर (सुंदर) फल (फल) नाना (नाना)।१।
इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि वे दूर से ही सभी को नमस्कार करते हैं और सभी से अपने बृत्तांत को सुनाते हैं। तब उन्होंने बताया कि तब जब उन्होंने जल पीना शुरू किया तो उन्होंने सुंदर और स्वादिष्ट फलों को भी खाया।
मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए, तासु निकट पुनि सब चलि आए ||
तेहिं सब आपनि कथा सुनाई, मैं अब जाब जहाँ रघुराई ||२||
इस चौपाई का अर्थ 

मज्जनु (मैथिली) कीन्ह (करी) मधुर (मिठा) फल (फल) खाए (खाया), तासु (तब) निकट (निकट) पुनि (फिर) सब (सभी) चलि (चले) आए (आए)। तेहिं (तब) सब (सभी) आपनि (अपनी) कथा (कहानी) सुनाई (सुनाई), मैं (मैं) अब (अब) जाब (जाऊं) जहाँ (जहाँ) रघुराई (राम)।२।
इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि उन्होंने मैथिली (सीता) को मिठे फल खिलाकर सभी को बुलाया, और फिर सभी ने उनकी कथा सुनी। अब हनुमान जी वापस जाने का निर्णय करते हैं और वहां से चले जाते हैं जहाँ भगवान राम हैं।
मूदहु नयन बिबर तजि जाहू, पैहहु सीतहि जनि पछिताहू ||
नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा, ठाढ़े सकल सिंधु कें तीरा ||३||
इस चौपाई का अर्थ 

मूदहु (हँसो) नयन (नेत्र) बिबर (बहुत आकृति) तजि (त्यागकर) जाहू (जाओ), पैहहु (पाओ) सीतहि (सीता) जनि (जानकर) पछिताहू (पछताओ)। नयन (नेत्र) मूदि (हँसते हुए) पुनि (पुनः) देखहिं (देखो) बीरा (वीर हनुमान), ठाढ़े (स्थिर) सकल (सभी) सिंधु (समुद्र) कें (के) तीरा (तीर)।३।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि हँसते हुए बहुत आकृतियों वाले बिबर को त्यागकर जाओ और पैरों से सीता को जानकर पछताओ। हनुमान जी कहते हैं कि फिर हँसते हुए नेत्रों से वीर हनुमान को फिर से सभी समुद्रों के तटों को स्थिरता से देखो।
सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा, जाइ कमल पद नाएसि माथा ||
नाना भाँति बिनय तेहिं कीन्ही, अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही ||४||
इस चौपाई का अर्थ 

सो (वह) पुनि (फिर से) गई (गई) जहाँ (जहाँ) रघुनाथा (रघुकुलनाथ राम), जाइ (जाकर) कमल पद (कमल के पाद) नाएसि (चुमते) माथा (माथे)। नाना (विभिन्न) भाँति (तरीके) बिनय (निवेदन) तेहिं (तब) कीन्ही (किये), अनपायनी (अविच्छेद्य) भगति (भक्ति) प्रभु (प्रभु श्रीराम) दीन्ही (दी)।४।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि वह फिर से वहीं गए हैं जहाँ रघुकुलनाथ राम हैं और वहाँ जाकर कमल के पादों को छूमकर माथे पर रखा। वह विभिन्न तरीकों से निवेदन और भक्ति का अभ्यास किया और प्रभु श्रीराम ने उन्हें अविच्छेद्य भक्ति दी।
चौपाई 
इहाँ बिचारहिं कपि मन माहीं, बीती अवधि काज कछु नाहीं ||
सब मिलि कहहिं परस्पर बाता, बिनु सुधि लएँ करब का भ्राता ||१||
इस चौपाई का अर्थ 

इहाँ (यहाँ) बिचारहिं (विचार करते हुए) कपि (हनुमान) मन (मन) माहीं (में), बीती (बीत गई) अवधि (अवधी) काज (कार्य) कछु (कुछ) नाहीं (नहीं)। सब (सभी) मिलि (मिलकर) कहहिं (कहते हैं) परस्पर (एक दूसरे) बाता (बातचीत), बिनु (बिना) सुधि (सुधार) लएँ (लिए) करब (काम) का (का) भ्राता (भाई)।१।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि उनका मन यहाँ विचार करता है, लेकिन अवधी में कुछ कार्य बाकी है नहीं। वे सभी मिलकर एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं, लेकिन सुधार के बिना कोई काम करने का योजना नहीं है।
कह अंगद लोचन भरि बारी, दुहुँ प्रकार भइ मृत्यु हमारी ||
इहाँ न सुधि सीता कै पाई, उहाँ गएँ मारिहि कपिराई ||२||
इस चौपाई का अर्थ
 
कह (कहो) अंगद (अंगद), लोचन (आँखों) भरि (भरकर) बारी (बारी-बारी से), दुहुँ (दोनों) प्रकार (तरीके) भइ (हो गए) मृत्यु (मौत) हमारी (हमारी)। इहाँ (यहाँ) न (नहीं) सुधि (सुधार) सीता (सीता) कै (के) पाई (पायी), उहाँ (वहाँ) गएँ (गए) मारिहि (मारें) कपिराई (कपिराज हनुमान)।२।
इस चौपाई में हनुमान जी अंगद से कह रहे हैं कि सीता को यहाँ नहीं मिला और उनकी मौत के दो प्रकार हो गए हैं। इसके बाद, हनुमान जी बता रहे हैं कि इस स्थिति में कपिराज हनुमान उन्हें मारेंगे।
पिता बधे पर मारत मोही, राखा राम निहोर न ओही ||
पुनि पुनि अंगद कह सब पाहीं, मरन भयउ कछु संसय नाहीं ||३||
इस चौपाई का अर्थ 

पिता (पिताजी) बधे (मर गए) पर (परंतु) मारत (मारना) मोही (मुझे), राखा (रखा) राम (भगवान राम) निहोर (नहीं है) न (नहीं) ओही (वही)। पुनि पुनि (बार-बार) अंगद (अंगद) कह (कहता) सब (सभी) पाहीं (पाता है), मरन (मरना) भयउ (भय होता है) कछु (कुछ) संसय (संदेह) नाहीं (नहीं)।३।
इस चौपाई में हनुमान जी कह रहे हैं कि पिता जी की मृत्यु के बावजूद, मैं मारा जा रहा हूँ क्योंकि राम का साहस नहीं है और बार-बार अंगद जी उन्हें कहते हैं कि भगवान राम ने उन्हें अनादि काल से ही नहीं रखा है, इसलिए मैं कुछ संदेह नहीं करता हूँ कि मुझे मरने का भय है।
अंगद बचन सुनत कपि बीरा, बोलि न सकहिं नयन बह नीरा ||
छन एक सोच मगन होइ रहे, पुनि अस वचन कहत सब भए ||४||
इस चौपाई का अर्थ 

अंगद (अंगद) बचन (वचन) सुनत (सुनकर) कपि (हनुमान) बीरा (वीर), बोलि (बोला) न (नहीं) सकहिं (सकता) नयन (नेत्र) बह (बहते) नीरा (आंसू)। छन (उन्होंने) एक (एक) सोच (सोच) मगन (मस्त) होइ (होकर) रहे (रहते) पुनि (फिर) अस (ऐसा) वचन (वचन) कहत (कहता) सब (सभी) भए (हो गए)।४।
इस चौपाई में हनुमान जी अंगद के वचन सुनकर बहुत वीरता भरे हुए बोलते हैं, और उनके नेत्रों से आंसू बहते हैं। हनुमान जी ने एक सोच में मस्त होकर उन्हें यह वचन कहने का साहस किया और इससे सभी कापियों को अच्छा लगा।
हम सीता कै सुधि लिन्हें बिना, नहिं जैंहैं जुबराज प्रबीना ||
अस कहि लवन सिंधु तट जाई, बैठे कपि सब दर्भ डसाई ||५||
इस चौपाई का अर्थ 
"हम सीता के सम्बंध में सुधि लेने के बिना, हम जबराज प्रबीर नहीं जा सकते हैं। इस प्रकार कहते हैं लवन सिंधु तट की ओर गए, जहां सभी वानर बैठे हुए दर्भ को दबा रहे थे।"
यह चौपाई तुलसीदास के एक काव्य ग्रंथ से है, और इसमें भगवान राम की सीता के प्रति प्रेम और उनकी खोज का वर्णन है।
जामवंत अंगद दुख देखी, कहिं कथा उपदेस बिसेषी ||
तात राम कहुँ नर जनि मानहु, निर्गुन ब्रम्ह अजित अज जानहु ||६||
इस चौपाई का अर्थ 

"जामवंत और अंगद ने दुख देखकर एक-दूसरे से बातचीत करते हुए कहा, 'हे राम! तुम तो मनुष्यरूपी आदमी हो, तुम्हें इस दुःख का अनुभव करना चाहिए। कृपया हमें किसी ब्रम्हा रूप और अजित (अपराजित) निर्गुण ब्रह्म के रूप में जानने का उपदेश दो।'"
इस चौपाई में जामवंत और अंगद, राम के समीप होकर, उनसे दुख का सामना करते हैं और उनसे निर्गुण ब्रह्म के रूप में ज्ञान प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।

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