पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त और महत्व पुत्रदा एकदाशी पर क्या करें

पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त और महत्व पुत्रदा एकदाशी पर क्या करें Putrada Ekadashi, auspicious time and significance, what to do on Putrada Ekadashi

पौष  पुत्रदा एकादशी

पौष पुत्रदा एकादशी, जिसे "पुत्रदा एकादशी" भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग में एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। यह एकादशी तिथि को पौष मास में आती है, जो दिसंबर-जनवरी के करीब होता है। इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा करके पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखना है।
इस व्रत का आचरण करने वाले व्रती विशेष रूप से पुत्र संप्राप्ति की कामना करते हैं और इसे विशेष धार्मिक आत्मा की समृद्धि का माध्यम मानते हैं। पुत्रदा एकादशी के दिन व्रती व्यक्ति नींद नहीं करते और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। व्रत का अधिकांश समय उपवास (व्रती की आहार-विहार से विरति रहना) के साथ बिताया जाता है।
पुत्रदा एकादशी का आचरण विशेष रूप से भारत और नेपाल में किया जाता है, लेकिन विभिन्न हिन्दू समुदायों में इसके व्रत का माहत्व अलग-अलग हो सकता है।

शुभ मुहूर्त

 पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 20 जनवरी है और संध्याकाल 07:26 प्रारंभ होकर अगले दिन 21 जनवरी को संध्याकाल में 07:26 पर समाप्त होगी। साधक 22 जनवरी को सुबह 07:14 से लेकर 09:21 के बीच पूजा-पाठ कर पारण कर सकते हैं। यह तिथि एकादशी व्रत का आचरण करने के लिए महत्वपूर्ण है, और इसके माध्यम से भक्तगण भगवान विष्णु की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति का कामना करते हैं।

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के लिए 

पौष पुत्रदा एकादशी, जिसे शुक्ल पक्ष की एकादशी भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इस एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए किया जाता है, और यह पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष रूप से माना जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन व्रती व्यक्ति उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। उन्हें एकादशी के दिन नींद नहीं करनी चाहिए और व्रत का आचरण समुद्र तुल्य माना जाता है। पुत्रदा एकादशी के दिन विशेष रूप से गौ-दान (गाय को दान देना) का पुण्य बहुत फलदायक माना जाता है।
यह एकादशी व्रत संसार में पुत्र संप्राप्ति की कामना करने वाले विशेष रूप से स्त्रियों के बीच में लोकप्रिय है, और वे इसे भक्ति भाव से आचरण करती हैं।

पौष पुत्रदा एकदाशी पर क्या करें

पौष पुत्रदा एकादशी पर व्रत रखने और इस दिन धार्मिक क्रियाएं करने के लिए कुछ आम उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं:
व्रत और उपवास:-इस दिन व्रती व्यक्ति को उपवास रखना चाहिए, जिसमें विशेष रूप से अन्न और गहने शामिल नहीं होते हैं। व्रती को एकादशी के दिन नींद नहीं करनी चाहिए।
पूजा और आराधना:-भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। इसमें तुलसी के पत्ते, फूल, चावल, दीप, गंध, और नैवेद्य शामिल हो सकते हैं। विष्णु सहस्त्रनाम या भगवद गीता का पाठ करना भी उपयुक्त हो सकता है।
दान-पुण्य:- गौदान (गाय को दान देना) का पुण्य बहुत फलदायक माना जाता है। धर्मिक और गरीबों को दान करना भी श्रेष्ठ माना जाता है।
मन्त्र-जाप:-भगवान विष्णु के मन्त्रों का जाप करना सुखद रह सकता है।
सत्संग और साधु संग:-धार्मिक सत्संग और साधु संग में समय बिताना भी श्रेष्ठ माना जाता है।
संध्या-काल पूजा:-संध्या-काल में भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदायक हो सकता है।
भजन और कीर्तन:-भजन या कीर्तन के माध्यम से भगवान की भक्ति में लीन रहना भी आत्मिक शान्ति के लिए मददगार हो सकता है।
ये उपाय आपको पौष पुत्रदा एकादशी पर धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सहायक हो सकते हैं। ध्यान रखें कि यह विभिन्न सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, इसलिए आपके आध्यात्मिक गुरु या पंडित से सलाह लेना भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

पुत्रदा एकादशी का महत्व

पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे पुत्र संप्राप्ति के लिए विशेष रूप से माना जाता है। यह एकादशी व्रत का आचरण करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
पुत्र संप्राप्ति का आशीर्वाद:-इस एकादशी का व्रत रखने से व्रती को पुत्र संप्राप्ति की कामना करने का अवसर मिलता है। इसे "पुत्रदा" एकादशी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "पुत्र देने वाली"।
धार्मिक परंपरा:-हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का आचरण करने का प्रमाण मिलता है और पुत्रदा एकादशी इसका एक प्रमुख हिस्सा है।
भगवान विष्णु की पूजा:-इस एकादशी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
कर्मों का शुद्धि:-एकादशी व्रत से साधक अपने कर्मों को शुद्धि का अवसर प्राप्त करता है और आत्मा को शुद्धि का अनुभव करता है।
सात्विक जीवनशैली:-एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति की जीवनशैली में सात्विकता बढ़ती है, जिससे उसका मानवीय और आध्यात्मिक विकास होता है।
उपास्य रूप में विष्णु:-पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को उपास्य रूप में माना जाता है, और उसकी पूजा विशेष पुण्य का स्रोत है।
दान और कर्म की महत्वपूर्णता:-इस दिन धर्मिक कार्यों जैसे दान देना, तपस्या करना, और अच्छे कर्मों में लीन रहना विशेष महत्वपूर्ण है। पुत्रदा एकादशी का महत्व विभिन्न समुदायों और परंपराओं में थोड़ी भिन्नता हो सकती है, लेकिन इसे धार्मिक और सामाजिक संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

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