मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत पूजा विधि दुर्गा अष्टमीस्तोत्र और कथा Monthly Durga Ashtami Vrat Puja Method Durga Ashtami Stotra and Katha
मासिक दुर्गा अष्टमी
मासिक दुर्गा अष्टमी एक विशेष दिन है जब देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, और इसे मासिक (मास) दुर्गा अष्टमी कहा जाता है। इस अष्टमी को मासिक नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है, जो किसी माह के अष्टमी तिथि से आरंभ होकर नौ दिन तक चलता है।मासिक दुर्गा अष्टमी के दौरान, भक्त देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं। इस पेरियड के दौरान व्रत, पूजा, और ध्यान का महत्त्वपूर्ण होता है। भक्त अपने आचार्य या पूज्य गुरु के मार्गदर्शन में इस दिन को ध्यान में रखते हैं और दिनभर ध्यान और धार्मिक क्रियाओं में समर्थन करते हैं।
मासिक दुर्गा अष्टमी का महत्त्वपूर्ण संदेश है कि भक्ति और ध्यान के माध्यम से मनुष्य अपने अंतरात्मा को पहचानता है और माता दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को प्रदर्शित करता है। इस दिन को ध्यान में रखकर भक्तगण अपने जीवन में नैतिकता, धर्म, और सामर्थ्य को बढ़ावा देने का संकल्प लेते हैं।
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22 जनवरी 2024 सोमवार कूर्म द्वादशी
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत पूजा विधि
मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत पूजा को भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह व्रत महिलाएं मनाती हैं और इसमें देवी दुर्गा की पूजा करती हैं। यह व्रत प्रतिमाह मासिक धर्म के पहले दिन को मनाया जाता है और नौ दिन तक चलता है। निम्नलिखित है मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत पूजा की सामान्य विधि:सामग्री सज्जीकरण:
पूजा के लिए सामग्री जैसे कि फल, फूल, निवेद्य के लिए नारियल, नींबू, नर्मदा जल, देवी की मूर्ति या चित्र, रोली, चावल, सिन्दूर, कुमकुम, गुड़, घी, और पुष्प इत्यादि को सज्जीकरन करें।
व्रत की प्रारंभ:
व्रत की शुरुआत को व्रती महिला अपने सौम्य रूप में धारण करती है और इस व्रत का संकल्प लेती है।
पूजा की शुरुआत:
पूजा की शुरुआत मां दुर्गा की पूजा के साथ होती है। मूर्ति या चित्र को सज्जीकरन करके उसे ध्यान में रखें।
मंत्र जप:
मां दुर्गा के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ दुं दुर्गायै नमः" और "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।"
आरती:
देवी की आरती गाएं और अश्वमेध यज्ञ की आरती को धरती पर बैठकर करें।
प्रसाद:
पूजा के बाद प्रसाद तैयार करें और मां दुर्गा को अर्पित करें। इसे फिर आप खा सकती हैं।
व्रत समापन:
व्रत को नौ दिनों तक आचरण करने के बाद उसे धन्यवाद देकर समापन करें।
इस रूप में, मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत पूजा को भक्ति, आदर, और पूजनीयता के साथ मनाना जाता है।
दुर्गा अष्टमीस्तोत्र:
यह स्तोत्र माता महागौरी की प्रशंसा और आराधना करने के लिए है। इस स्तोत्र में भक्त दुर्गा अष्टमी पर माँ महागौरी की कृपा, शक्ति, और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है।स्तोत्र:
सर्वसंकटहंत्रत्वमहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयीमहागौरीप्रणामाम्यहम्॥
सुखशांतिदात्रि धन धान्यप्रदायनिम्।
डमरूवाद्यप्रियआद्यमहागौरीप्रणामाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलत्वम्हितापत्रयहारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
अनुवाद:
तुम हर संकट को दूर करने वाली हो, धन और ऐश्वर्य का प्रदाता।
तुम ज्ञान की प्रतिष्ठा हो, चार वेदों की सारी जानकारी होने वाली हो, हे महागौरी, मैं तुम्हारी पूजा करता हूं॥
तुम सुख, शांति, और त्रिदेवों को प्रसन्न करने वाली हो,
तुम डमरु (डमरू वादन करने वाली) को प्रिय हो, हे महागौरी, मैं तुम्हारी पूजा करता हूं॥
तुम तीनों लोकों के मंगल का कारण हो,
तुम तीनों पापों को हरने वाली हो, हे महागौरी, मैं तुम्हारी पूजा करता हूं॥
इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त दुर्गा अष्टमी पर माँ महागौरी से आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करता है और उनकी कृपा से सर्व संकटों का नाश होता है।
दुर्गा अष्टमी कथा
दुर्गा अष्टमी कथा दुर्गा पूजा के महत्वपूर्ण दिनों में से एक पर आधारित है। यह कथा भक्तों को माँ दुर्गा के अवतार और उनकी शक्ति की महिमा का अनुभव करने में मदद करती है। यहां एक सार्गिक रूप से छोटी रूपी कथा दी जा रही है:
दुर्गा अष्टमी कथा:
कहानी एक सुखद गाँव की है, जहां एक विशेष रूप से भक्तिभावना रखने वाला शक्ति पूजक रहता था जिसका नाम धनुष था। धनुष ने अपने गाँव में दुर्गा पूजा को बड़े श्रद्धा भाव से मनाने का आयोजन किया। उसने अपनी पूरी संपत्ति से इस पूजा की व्यवस्था की और सभी गाँववालों को आमंत्रित किया।दुर्गा अष्टमी के दिन, धनुष ने माँ दुर्गा को विशेष रूप से आमंत्रित किया और उनसे अपने गाँव और उसके लोगों की रक्षा करने का वचन लिया। उसने एक उच्च स्थान पर शक्ति पूजन का आयोजन किया और वहां पर माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित की।
धनुष ने समुद्र से प्राप्त किए गए सुन्दर रत्नों से सजीवनी अभिषेक किया और माँ की कृपा के लिए प्रार्थना की। माँ दुर्गा ने धनुष की भक्ति को प्रसन्नता से स्वीकार किया और उसका आशीर्वाद दिया।
उसी समय, गाँव में आक्रमणकारी राक्षस बुरी शक्तियों ने आक्रमण किया। धनुष ने अपनी शक्ति का दिखावा करते हुए और माँ दुर्गा की कृपा से उन्हें पराजित किया। गाँव में शांति और सुरक्षा की स्थिति स्थापित हुई, और धनुष ने अपनी भक्ति और आस्था के साथ माँ दुर्गा का आभास किया।
इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि माँ दुर्गा की भक्ति और आस्था से भरा हृदय हमें समस्त संघर्षों से पार करने में सहायक हो सकता है और उसका आशीर्वाद हमें सदैव प्राप्त रहेगा।
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