जानिए कूर्म द्वादशी 2024 के बारे में पूरी जानकारी

जानिए कूर्म द्वादशी 2024 के बारे में पूरी जानकारी Janiye Complete information about Kurm Dwadashi 2024

 कूर्म द्वादशी

कूर्म द्वादशी, हिन्दू पंचांग के अनुसार हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को आता है, जो शुक्ल पक्ष के द्वादशी तिथि से भी जाना जाता है। इस तिथि को कूर्म द्वादशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुआ) अवतार लिया था।
कूर्म द्वादशी का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा करना और उनके अवतार को याद करना है। इस दिन विशेष रूप से कछुआ की पूजा की जाती है और कछुआ की मूर्ति भगवान विष्णु के रूप में सजाई जाती है।
कूर्म द्वादशी का आयोजन भगवान विष्णु के पूजा, आराधना, भक्ति गीतों की गायन और भगवद गीता के पाठ के साथ किया जाता है। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं और विष्णु जी की कहानियों का सुनने में लगे रहते हैं।
कुछ लोग इस दिन गंगा स्नान करने का भी आयोजन करते हैं और तीर्थ स्थलों पर जाकर पूजा अर्चना करते हैं। कुछ स्थानों पर लोग तुलसी के पौधों की पूजा भी करते हैं।
कूर्म द्वादशी को मनाकर भक्तगण भगवान विष्णु से कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं और अपने जीवन को धार्मिक और उद्दीपनपूर्ण बनाने का संकल्प लेते हैं।

23 जनवरी 2024 मंगलवार प्रदोष व्रत

व्रत आयोजन 

कूर्म द्वादशी व्रत 2024 का आयोजन 22 जनवरी को होगा। यह तिथि पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को संदर्भित करती है। कूर्म द्वादशी के इस दिन भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है और उनके कूर्म अवतार की कथा का सुनना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
व्रत के दौरान, भक्तगण विष्णु जी की मूर्ति की पूजा विधिवत रूप से करते हैं, और भगवद गीता के पाठ, भक्ति गीत गाना, आरती आदि का आयोजन करते हैं। इसके अलावा, कुछ लोग व्रत के दिन निराहार रहकर उपवास भी करते हैं।
इस धार्मिक अवसर पर लोग अपने जीवन को धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्धि की दिशा में बढ़ाने का संकल्प लेते हैं। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से वे सभी सुख-शांति, समृद्धि और समृद्धि के लाभ को प्राप्त करते हैं।
यह त्योहार हिन्दू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण दिन है और भगवान विष्णु के अवतार की स्मृति में आता है।

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शुभ मुहूर्त का विवरण

कूर्म द्वादशी का आयोजन इस वर्ष 22 जनवरी, 2024 को होगा। इस अवसर को शुभ मुहूर्त के साथ मनाना अधिक फलकारी माना जाता है। यहां दी गई है कूर्म द्वादशी के लिए शुभ मुहूर्त का विवरण:
कूर्म द्वादशी आरंभ:
तिथि: 21 जनवरी 2024
समय: शाम 07:26 बजकर 26 मिनट
कूर्म द्वादशी समाप्त:
तिथि: 22 जनवरी 2024
समय: शाम 07:26 बजकर 26 मिनट
इस मुहूर्त के दौरान विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा, आराधना और व्रत का आयोजन किया जा सकता है। यहां दिए गए समय में व्रत आरंभ और समाप्त होने का अर्थ है कि इस अवधि में कूर्म द्वादशी का आयोजन किया जा सकता है।
ध्यान रहे कि यह मुहूर्त स्थानीय समय और पंचांग के अनुसार भिन्न हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग या पुजारी से सुनिश्चित करें कि आपके लिए सटीक समय क्या है।

महत्व और किसको समर्पित है,

कूर्म द्वादशी व्रत भगवान विष्णु के अवतार, अर्थात् कूर्म अवतार (कछुआ) की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक है और इसे भगवान की पूजा, भक्ति, और आराधना के साथ मनाया जाता है।
इस व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा और उनके कूर्म अवतार की कथा को याद करना है। कूर्म अवतार में भगवान विष्णु ने विष (पॉइसन) को शिविर में रखकर देवताओं को अमृत (nectar) प्रदान किया था और इसके माध्यम से देवताओं को असत्यानाशी बनाया था।
कूर्म द्वादशी का आयोजन भगवान विष्णु की कृपा, आशीर्वाद, और सुरक्षा के लिए किया जाता है। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं और विष्णु जी की आराधना करते हैं। इस व्रत का पालन करने से मान्यता है कि व्यक्ति भगवान की कृपा प्राप्त करता है और उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
समर्पण और आत्मनिवेदन के भाव से कूर्म द्वादशी का आयोजन किया जाता है और भक्ति भावना को मजबूत करने में मदद करता है। यह त्योहार हिन्दू समाज में एक माध्यम है जिससे धार्मिकता, उद्दीपन, और सामर्थ्य में वृद्धि होती है।

द्वादशी क्यों और कहाँ मनाई जाती

द्वादशी एक हिन्दू पौराणिक त्योहार है जो महत्वपूर्ण धार्मिक अवसरों में से एक है। द्वादशी व्रत कई भागों में मनाया जाता है, जैसे की कृष्ण पक्ष की द्वादशी, शुक्ल पक्ष की द्वादशी, प्रतिपदा की द्वादशी, त्रयोदशी, एकादशी आदि।
द्वादशी का मुख्य महत्व भगवान विष्णु और उनके अवतारों के साथ जुड़ा हुआ है। कई व्रतों में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है, जैसे कूर्म द्वादशी, पुत्रदा एकादशी, वामन द्वादशी, आपने कृष्ण द्वादशी, हरिवल्यार द्वादशी, योगिनी एकादशी, बराही एकादशी, आपने सवत्सा द्वादशी, मोहिनी एकादशी, कामिका एकादशी आदि।
द्वादशी का आयोजन विभिन्न रूपों में किया जाता है, जैसे पूजा, व्रत, कथा कथाएँ, भजन-कीर्तन, सत्संग, दान-धर्म, अच्छे कार्यों का करना, तीर्थयात्रा आदि। इसे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी वर्गों में मनाया जाता है और यह सामाजिक एवं धार्मिक समृद्धि को प्रोत्साहित करने का कार्य करता है।
द्वादशी का मनाने का प्रमुख उद्देश्य भगवान की पूजा, भक्ति एवं श्रद्धांजलि में विश्वास रखना है, जिससे व्यक्ति अध्यात्मिक विकास में आगे बढ़ सके।

कूर्म द्वादशी पूजा विधि

कूर्म द्वादशी को ध्यान से और श्रद्धाभाव से मनाने के लिए निम्नलिखित पूजा विधि का पालन किया जा सकता है:
पूजा सामग्री:
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र कुमकुम, चंदन, रोली
दीपक और कुंडल फूल, अक्षत (रावण) और धूप
तुलसी के पत्ते पंचामृत (दही, घृत, तैल, शहद, दूध)
पूजा विधि:
  • शुद्धि करना: पूजा करने से पहले हाथ धोकर शुद्धि करें।
  • व्रत की संकल्प: सामग्री को सामने रखकर व्रत की संकल्प करें।
  • भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को साफ करें।
  • कुमकुम, चंदन, रोली से उनके चिन्हों को लगाएं।
  • तुलसी के पत्ते और फूलों का अर्पण करें।
  • पंचामृत से अभिषेक करें।
  • धूप और दीप पूजन: दूप और दीप से आरती अर्पित करें।
  • धूप से कमल गेंद में आरती उतारें।
  • कथा का पाठ: कूर्म अवतार की कथा को श्रवण करें या पढ़ें।
  • प्रार्थना और आराधना: भगवान के सामने मन की शुद्धि और आत्मनिवेदन से प्रार्थना करें।
  • मन्त्र जाप और ध्यान में रत रहें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा का प्रसाद तैयार करें और उसे भगवान को अर्पित करें।
  • व्रत का उपवास:व्रत के दिन उपवास का पालन करें और भगवान की पूजा में लगे रहें।
इस पूजा विधि का पालन करके भक्त अपने दिल से भगवान विष्णु की पूजा कर सकता है और उनकी कृपा को प्राप्त कर सकता है।

कूर्म द्वादशी की पौराणिक कथा

कूर्म द्वादशी का महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है जो हिन्दू धर्म में प्रमुख है। इस त्योहार का संबंध भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से है, जिसमें वे कछुआ (कूर्म) के रूप में प्रकट हुए थे। यह कथा भगवत पुराण, विष्णु पुराण, और भागवत गीता में मिलती है।
कूर्म अवतार की कथा:-
कई युगों पहले, देवताओं और असुरों के सामर्थ्य युद्ध का समय आया था। देवताएं और असुर देवदानव अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश मिला, लेकिन असुरों ने देवताओं से युद्ध करके उन्हें हरा दिया और अमृत को अपने पास रख लिया।
इस पर भगवान विष्णु ने देवताओं की सहायता करने का निर्णय किया और उन्होंने अपना कूर्म अवतार धारण किया। भगवान विष्णु ने कछुआ (कूर्म) के रूप में प्रकट होकर समुद्र में गये और वहां असुरों और देवताओं के बीच तेज़ युद्ध का मध्य स्थान बना।
भगवान कछुआ ने समुद्र को आपसी युद्ध में मदद करने के बदले में अपनी कीचकों में से अमृत कलश को साधने में मदद करने का उत्तरदाता बना दिया। समुद्र मंथन का कोई भी श्रेष्ठ सिर्प विष्णु अवतार कूर्म ने धारण किया।
कूर्म अवतार की यह कथा धार्मिक शिक्षाएं देती है, जैसे कि भगवान का भक्ति और आपसी साहस के माध्यम से अधर्म का समापन। इसका मनाना हिन्दू समाज में भगवान की पूजा, श्रद्धा, और उनके अनुयायियों के बीच एक विशेष प्रकार की भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है।आप लोग हमारे वेबसाइट पर आनी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपको अगर हमारी पोस्ट अच्छी लगती है अधिक से अधिक लोगों तक फेसबुक व्हाट्सएप इत्यादि पर शेयर अवश्य करें और कमेंट कर हमें बताएं कि आपको इस तरह की जानकारी चाहिए जो हिंदू धर्म से हो

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