भगवान शिव की विवाह। Marriage of Lord Shiva.
यह श्लोक भगवान शिव और सती देवी के विवाह के समय के बारे में है। इसमें वर्णित है कि किन्नर, नाग, सिद्ध और गंधर्व समेत सभी देवताओं ने भगवान विष्णु, ब्रह्मा और महेश के साथ यहां उपस्थित होकर उनके विवाह का आयोजन किया। सती देवी ने भी बहुत सुंदर रूप में विभूषित होकर गान गाया और सभी संगति ने उन्हें सुनकर उनकी प्रतिष्ठा की। यहाँ भी इस अनुभव में इस विचार से सती देवी ने प्रकट किया कि वह भगवान शिव की पत्नी बनने के लिए प्रेम और समर्पण भाव से तैयार हैं।किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा॥
बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई॥377
किंनर - किंनर
नाग - नाग
सिद्ध - सिद्ध
गंधर्बा - गंधर्व
बधुन्ह - समूचे
समेत - साथ
चले - चले गए
सुर - देवताओं
सर्बा - सभी
बिष्नु - विष्णु
बिरंचि - ब्रह्मा
महेसु - शिव
बिहाई - बुलाया
चले - चले गए
सकल - सभी
सुर - देवताओं
जान - जानकर
बनाई - बनाया
इस दोहे में कहा गया है कि किंनर, नाग, सिद्ध, गंधर्व और सम्पूर्ण देवताओं सहित चले गए हैं, जब विष्णु, ब्रह्मा और महेश ने सभी देवताओं को बुलाकर बनाया।
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुंदर बिधि नाना॥
सुर सुंदरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥378
सतीं - सती (सीता)
बिलोके - देखकर
ब्योम - आकाश
बिमाना - अन्धा
जात - जाकर
चले - चली
सुंदर - सुन्दर
बिधि - तरीका
नाना - अलग-अलग
सुर - देवताओं
सुंदरी - सुन्दरी
करहिं - करती हैं
कल - काना
गाना - गाना
सुनत - सुनकर
श्रवन - कान
छूटहिं - छूट जाता है
मुनि - महर्षि
ध्याना - ध्यान
इस दोहे में कहा गया है कि सीता जी ने आकाश को देखकर भी अंधेरे में जाकर अलग-अलग सुंदर तरीकों में चलना सीखा। देवताओं की सुंदरी सीता गाना गाती हैं, और महर्षियों का ध्यान सुनकर उनके कानों से निकल जाता है।
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी॥
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कछु दिन जाइ रहौं मिस एहीं॥ 379
पूछेउ - पूछो
तब - तब
सिवँ - शिव
कहेउ - कहते हैं
बखानी - बातें
पिता - पिता (दशरथ)
जग्य - जागरूक
सुनि - सुनकर
कछु - कुछ
हर्षानी - हर्ष
जौं - जब
महेसु - महादेव (शिव)
मोहि - मुझे
आयसु - आसी (मंगाई)
देहीं - देते हैं
कछु - कुछ
दिन - दिन
जाइ - जाएं
रहौं - रहूं
मिस - मिस (कंधा)
एहीं - इसी
इस दोहे में यह कहा गया है कि जब शिव से पूछता हूं, तो वे कुछ बातें कहते हैं, जिससे मेरे पिता दशरथ जागरूक होकर कुछ हर्षित होते हैं। जब महादेव मुझसे कुछ आसी देते हैं, तो मैं उसी कंधे पर थोड़े दिनों के लिए रहता हूं।
पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥
बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी॥380
पति - पति (भगवान शिव)
परित्याग - त्यागना
हृदयँ - हृदय
दुखु - दुःख
भारी - भारी
कहइ - कहती
न - नहीं
निज - अपना
अपराध - अपराध
बिचारी - समझती
बोली - बोली
सती - सती (सीता)
मनोहर - मनमोहक
बानी - वाणी (बोल)
भय - डर
संकोच - हिचकिचाहट
प्रेम - प्यार
रस - रस
सानी - समझानेवाली
इस दोहे में सती (सीता) बोलती हैं कि पति का त्याग करने से मन में दुःख भारी होता है, और वह अपना अपराध समझती है। वह अपने मनमोहक वचन से डरती हैं, लेकिन प्रेम के रस को समझती हैं।
पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ।
तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ॥ 381
"पिता भवन" (श्रीराम) के उत्सव में बहुत बड़ा आनंद होता है, और इस उत्सव को सजाकर उसे देखने के लिए प्रभु आते हैं।
उस समय, मैं भी कृपाया जाकर सादर देखने के लिए जाऊँ।
यह श्लोक भक्ति और समर्पण की भावना को व्यक्त करता है, और श्रीराम के उत्सव में प्रतिभाग करने की इच्छा को दर्शाता है।
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