बजरंग बाण चालीसा
बजरंग बाण चालीसा को पढ़ने की विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: बजरंग बाण चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- हनुमान जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: हनुमान जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
- पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
- बजरंग बाण चालीसा का पाठ: बजरंग बाण चालीसा का पाठ करें भक्तिभाव से।
- मन्त्रों का जप: हनुमान जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ हं हनुमते नमः" या अन्य हनुमान मंत्र।
- आरती और भजन: हनुमान जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
- आरती और प्रशाद: हनुमान जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए।
यह विधि आपकी आदतों, परंपराओं, और स्थानीय संस्कृति के अनुसार समायोजित की जा सकती है।
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम
प्रतीति ते, विनय करें सनमान
।
तेहि के कारज सकल
शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान सन्त
हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज
हमारी।
जन के काज विलम्ब
न कीजे, आतुर दौरि महासुख दीजे
।
जैसे कूदि सिन्धु
महि पारा, सुरसा बदन पैठि विस्तारा
।
आगे जाई लंकिनी
रोका, मारेहु लात गई सुर लोका ।
जाय विभीषण को
सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद
लीन्हा ।
बाग उजारि सिंधु
मँह बोरा, अति आतुर यम कातर तोरा ।
अक्षय कुमार को
मार संहारा, लूम लपेट लंक को
जारा ।
लाह समान लंक जरि
गई, जय जय ध्वनि सुरपुर में
भई ।
अब विलम्ब केहि
कारन स्वामी, कृपा करहु उर
अन्तर्यामी ।
जय जय लक्ष्मण
प्राण के दाता, आतुर होय दुःख
हरहु निपाता।
जय गिरधर जय जय
सुखसागर, सुर समूह समरथ भटनागर ।
श्री हनु हनु हनु
हनुमंत हठीले, बैरिहिं मारु
वज्र को कीले ।
गदा वज्र लै
बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास
उबारो ।
ओंकार हुँकार
प्रभु धावो, बज्र गदा हनु
विलम्ब न लावो ।
जैसे कूदि सिन्धु
महि पारा, सुरसा बदन पैठि विस्तारा
।
आगे जाई लंकिनी
रोका, मारेहु लात गई सुर लोका ।
जाय विभीषण को
सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद
लीन्हा ।
बाग उजारि सिंधु
मँह बोरा, अति आतुर यम कातर तोरा ।
अक्षय कुमार को
मार संहारा, लूम लपेट लंक को
जारा।
लाह समान लंक जरि
गई, जय जय ध्वनि सुरपुर में
भई ।
अब विलम्ब केहि
कारन स्वामी, कृपा करहु उर
अन्तर्यामी ।
जय जय लक्ष्मण
प्राण के दाता, आतुर होय दुःख
हरहु निपाता ।
जय गिरधर जय जय
सुखसागर, सुर समूह समरथ भटनागर ।
श्री हनु हनु हनु
हनुमंत हठीले, बैरिहिं मारु
वज्र को कीले ।
गदा वज्र लै
बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास
उबारो ।
ओंकार हुँकार
प्रभु धावो, बज्र गदा हनु
विलम्ब न लावो ।
ओं ह्रीं ह्रीं
ह्रीं हनुमान कपीशा, ओं हुँ हुँ हुँ
हनु अरि उर शीशा ।
सत्य होहु हरि
शपथ पाय के, रामदूत धरु मारु
धाय के ।
जय जय जय हनुमन्त
अगाधा, दुःख पावत जन केहि अपराधा
।
पूजा जप तप नेम
अचारा, नहिं जानत हौं दास
तुम्हारा ।
वन उपवन मग,
गिरी गृह माँही, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।
पाँय परौ कर जोरि
मनावौं, यहि अवसर अब केहि
गोहरावौं ।
जय अन्जनि कुमार
बलवन्ता, शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।
बदन कराल काल कुल
घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक ।
भूत प्रेत पिशाच
निशाचर, अग्नि बैताल काल मारी मर
।
इन्हें मारु तोहि
शपथ राम की, राखु नाथ मर्यादा
नाम की ।
जनक सुता हरिदास
कहावो, ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।
जय जय जय धुनि
होत अकाशा, सुमिरत होत दुसह दुःख
नाशा ।
चरण शरण कर जोरि
मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं
।
उठु उठु चलू तोहि
राम दुहाई, पाँय परौं कर जोरि मनाई ।
ओं चं चं चं चं
चपल चलंता, ओं हनु हुन हुन हनु
हनुमन्ता ।
ओं हं हं हाँक
देत कपि चंचल, ओं सं सं सहमि
पराने खल दल ।
अपने जन को तुरत
उबारो, सुमिरत होय आनन्द हमारो ।
यह बजरङ्ग बाण
जेहि मारे, ताहि कहो फिर कौन उबारे ।
पाठ करे बजरङ्ग
बाण की, हनुमत रक्षा करें प्राण
की ।
यह बजरङ्ग बाण जो
जापै, ताते भूत प्रेत सब काँपै
।
धूप देय अरु जपैं
हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा ।
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