अरण्यकाण्ड के श्लोक सम्पूर्ण अर्थ सहित

अरण्यकाण्ड के श्लोक सम्पूर्ण अर्थ सहित  Aranyakaand's verses with complete meaning

मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं
वंदे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्री रामभूपप्रियम्॥1॥
सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं
पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे॥2॥

तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई श्लोकों का अर्थ इस प्रकार है:
"मैं नमन करता हूँ श्री राम को, जो धर्म और वैराग्य के समुद्र से भी अधिक विवेक के चंद्रमा की तरह प्रकाशमान है, जो पूर्ण आनंद को देने वाले हैं, जो मोह के अंधकार को दूर करते हैं, जो स्वयं शंकर और ब्रह्म के कुल को शुद्ध करने वाले हैं, और जो श्रीराम को प्रिय हैं।"
"मैं श्रीराम को भजता हूँ, जो सान्द्रता से भरे आनंद के समुद्र की भांति हैं, जो पीले वस्त्र में शोभा पाते हैं, जो हाथ में बाण, शर, और धनुष धारण करते हैं, जो भवरों की भारी संख्या को धारण करते हैं, जो राजीव नेत्रों वाले हैं, जो जटाओं वाले सिर पर प्रियतमता से चमक रहे हैं, और जो सीता और लक्ष्मण के साथ पथ में चलते हैं।

"मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।" इस श्लोक का अर्थ है:
"जो व्यक्ति धर्म और विवेक के समुंदर से भी अधिक पूर्ण चंद्रमा की तरह प्रकाशमान है, जो पूर्ण आनंद का स्रोत है, और जो वैराग्य के कमल की भांति चमकते हैं, वे पापों के घने अंधकार को दूर करने वाले होते हैं।"
"मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं वंदे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्री रामभूपप्रियम्॥1॥" इस श्लोक का अर्थ है: "मैं उस श्रीराम को प्रणाम करता हूँ, जो मोह के समुंदर को विचलित करने वाले हैं, जो शंकर अर्थात् शिव जी के समान हैं, जो ब्रह्म के कुल को कलंकों से मुक्त करने वाले हैं और जो रामराज्य के प्रिय हैं।"
"सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।" यह श्लोक श्रीराम के विवरण को वर्णित करता है:
"जो सात्विक आनंद के समुद्र से भरे हुए हैं, जिनके शरीर पीताम्बर (पीले वस्त्र) से धारण किये गए हैं, जो सुंदर हैं, जिनके हाथ में बाण, शर और धनुष हैं, जो कठोर संसारिक जीवन को भार नहीं मानते हैं, वही अपने अधिकार को लेकर सजग रहते हैं।"
"राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे॥" यह श्लोक श्रीराम के लिए है और इसका अर्थ है:
"मैं वह श्रीराम का ध्यान करता हूँ, जिनके राजीव नेत्र हैं, जो जटाओं वाले हैं, जो सीता और लक्ष्मण के साथ पथ में चलते हैं, और जो रामरूप में अत्यंत सुंदर हैं।"

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